लोकतांत्रिक व्यवस्था में संतों को किसी भी प्रकार के वैधानिक अधिकार न होना ही लोकतंत्र के अधःपात का कारण ! – चेतन राजहंस, प्रवक्ता, सनातन संस्था
प्राचीन काल में भारत में राजा को राजगुुरु तथा विद्वत्सभा के माध्यम से संतपरंपरा द्वारा सदाचार तथा नैतिकता की शिक्षा दी जाती थी । इस परंपरा को धर्मनिष्ठ विद्वत्सभा की मान्यता थी ।