सनातन का धर्मरथ तो चैतन्य का प्रवाह है ! – ह.भ.प. कृष्णराव क्षीरसागर महाराज
राजवाडा परिसर में अजिंक्य गणपति के सामने सनातन द्वारा निर्मित धर्मरथ लगाया गया है । इस धर्मरथ के उद्घाटन के समय वे ऐसा बोल रहे थे ।
राजवाडा परिसर में अजिंक्य गणपति के सामने सनातन द्वारा निर्मित धर्मरथ लगाया गया है । इस धर्मरथ के उद्घाटन के समय वे ऐसा बोल रहे थे ।
रामनवमी, साथ ही परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में पुणे में विविध उपक्रमों का आयोजन किया गया ।
महाराष्ट्र के रत्नागिरी जनपद के नाणीज के जगद्गुरु नरेंद्राचार्य महाराज संस्थान के स्वीय साहायक श्री. सुनील ठाकुर तथा कार्यकर्ता श्री. राजन बोडेकर ने यहां की सनातन की ग्रंथप्रदर्शनी का अवलोकन किया ।
महंत नरेंद्रगिरी महाराज एवं श्रीहरिगिरीजी महाराज ने प्रशंसा करते हुए कहा,‘‘सनातन संस्था बहुत अच्छा कार्य कर रही है ।’’
‘यदि व्यक्ति के जीवन में धर्म नाम के चैतन्य का अभाव रहेगा, तो असुरी वृत्ति की एक प्रभावळ इस विश्व में निर्माण होगी । यह प्रभावळ देशविघातक सिद्ध होगी, उसके लिए परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी की प्रेरणा से निर्माण हुए सनातन संस्था के समान एक विशाल कल्पवृक्ष की इस विश्व को अत्यंत आवश्यकता है ।
यहां के एन्.के.टी. विद्यालय के अध्यक्ष शेठ नानजीभाई खिमाजीभाई ठाणवाला ने गौरवोद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि परात्पर गुरु डॉ. जयंत बाळाजी आठवले संपूर्ण भारत में पहले क्रम का कार्य कर रहे हैं ।
पंढरपुर के शासकीय वसाहत के श्री गणेश मंदिर ट्रस्ट में ह.भ.प. प्रकाश निकते गुरुजी द्वारा संपादित किए गए ‘संत नामदेव अभंग चिंतनिका’ इस ग्रंथ का प्रकाशन समारोह संपन्न हुआ ।
श्री दुर्गामाता मंदिर के सामने सनातन द्वारा आयोजित ग्रंथप्रदर्शनी का अनावरण शिवसेना शहरप्रमुख श्री. मयुर घोडके के हाथों किया गया । उस समय उन्होंने यह वक्तव्य किया कि, ‘समाज को आज अध्यात्म तथा धर्म की अत्यंत आवश्यकता है ।
गणेशोत्सव निमित्त हिन्दू जनजागृति समिति द्वारा आयोजित किए गए प्रबोधन कक्ष का उद्घाटन बाजीराव पथ नातुबाग मित्र मंडल के अध्यक्ष तथा कसबा मतदारसंघ के भाजपा सरचिटणीस श्री. प्रमोद कोंढरे के हाथों नारियल फोडकर किया गया |
आज जानबूझकर, आस्था के साथ एवं ईश्वरीय प्रेरणा से जागृति करनेवाली व्यक्ति यदि कोई होगा, तो वे हैं डॉ. जयंत आठवलेजी ! उनको आद्य शंकराचार्यजी अथवा समर्थ रामदासजी का अवतार ही कहना होगा । आज की भाषा में डॉ. आठवलेजी को केवल संत कहना अनुचित होगा ।