साधना में शिष्य अपने सर्वस्व का त्याग कर लेनेवाले गुरु की सेवा करता है !

नित्य जीवन में जहां अधिक वेतन मिलता है, वहां व्यक्ति नौकरी करता है । इसके विपरीत साधना में शिष्य अपने सर्वस्व का त्याग कर लेनेवाले गुरु की सेवा करता है ! -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

केवल उपरी उपाय नहीं, अपितु समस्या के मूलपर ही उपाय किए जाने चाहिएं, यह भी समझ में न आनेवाला शासन !

काले धनपर उपाय के रूप में ५०० एवं १००० रुपए के नोटोंपर प्रतिबंध लगाने का अर्थ फेफडे के क्षयरोग से ग्रस्त रोगी को केवल खांसी की औषधि देना ! यदि जनता को साधना सीखाकर सात्त्विक बनाया गया, तो सभी प्रकार की व्यक्तिगत एवं राष्ट्रीय समस्याएं दूर होंगी, यह भी शासन की ध्यान में कैसे नहीं … Read more

ईश्‍वर को प्रसन्न कर उनके आशीर्वाद से चुनाव जीता गया, तो केवल जनता को ही नहीं, अपितु प्राणिमात्रों को भी वास्तविकरूप में सुखी बनाना संभव होगा ।

जनता को पैसे देकर अथवा उसको झूठे आश्‍वासन देकर चुनाव जीतने की अपेक्षा ईश्‍वर को प्रसन्न कर उनके आशीर्वाद से चुनाव जीता गया, तो केवल जनता को ही नहीं, अपितु प्राणिमात्रों को भी वास्तविकरूप में सुखी बनाना संभव होगा ।

घरानेशाही की न्यायव्यवस्था देनेवाला लोकतंत्र क्या कभी न्याय देगा ?

हम जोधपुर, राजस्थान के एक अधिकक्ता से भेंट करने गए थे । उस समय उन्होंने हमें न्यायाधीश के विषय में किए गए एक सर्वेक्षण की जानकारी दी । उन्होंने कहा कि लगभग ३५० से अधिक न्यायाधीश ऐसे हैं कि जिनकी दो-तीन पीढियां न्यायाधीश अथवा न्यायालय से संबंधित उच्च पदों पर है । यह कोई योगायोग … Read more

साधना एवं हिन्दू धर्म की शिक्षा ग्रहण करने हेतु पूरे विश्व के जिज्ञासु एवं साधक भारत में आते हैं

हिन्दू धर्म का मूल्य न जाननेवाले भारत के हिन्दू उच्च शिक्षा हेतु अमेरिका को प्रयाण करते हैं । उसी प्रकार साधना एवं हिन्दू धर्म की शिक्षा ग्रहण करने हेतु पूरे विश्व के जिज्ञासु एवं साधक भारत में आते हैं । ऐसा होते हुए भी भारत के हिन्दुओं को हिन्दू धर्म का मूल्य नहीं है ।

साधना न करनेवालों एवं बुद्धिवादियों को सूक्ष्म विश्व दिखाई नहीं देता

जिस प्रकार अंधों को स्थूल विश्व दिखाई नहीं देता, उसी प्रकार साधना न करनेवालों एवं बुद्धिवादियों को सूक्ष्म विश्व दिखाई नहीं देता । विश्व दिखाई नहीं देता, इस बात को अंधे स्वीकार करते हैें; परंतु बुद्धवादी अहंकार से कहते हैं कि, सूक्ष्म विश्व ऐसा कुछ नहीं होता !

क्षयरोग में केवल खांसी की औषधि देने जैसे उपरी उपाय भ्रष्टाचार के संदर्भ में भी करनेवाला शासन !

सर्वत्र व्याप्त भ्रष्टाचार एवं अनैतिकता क्या केवल नोटबंदी कर रुकनेवाली है क्या ? उसके मूलतक जाने का अर्थ है नैतिकता एवं साधना सिखाना । एेसा करने से सर्वत्र व्याप्त आर्थिक अराजक मूल से बंद हो जाएगा ।

ब्रह्मांड में व्याप्त प्राणिमात्रों के कल्याण की चिंता करनेवाले ईश्‍वर

कहां केवल अपने परिजन अथवा अपनी जातिबंधुआें के हित को देखनेवाले संकीर्ण वृत्ति का मनुष्य, तो कहां अनंक कोटि ब्रह्मांड में व्याप्त प्राणिमात्रों के कल्याण की चिंता करनेवाले ईश्‍वर !

बाल्यावस्था जैसी पाश्‍चात्त्य शिक्षा !

पाश्‍चात्त्यों द्वारा दी जानेवाली सभी शिक्षा बाल्यावस्था जैसी है । यहां उसके केवल ३ उदाहरण दिए गए हैं, अपितु प्रत्येक क्षेत्र में यही बात है । १. आधुनिक वैद्यों को रोगी की प्रकृति वात, पित्त अथवा कफप्रधान है, यह ज्ञात नहीं होता । अतः वो सभी प्रकृतिवाले रोगियों को एक जैसी ही औषधियां देते हैं … Read more