अध्यात्मसंबंधी वेद-उपनिषद इत्यादि ग्रंथों का महत्त्व

‘युद्ध तात्कालिक समाचार होता है । आगे ५० – ६० वर्षों में बडे बडे युद्धों के इतिहास का भी विस्मरण हो जाता है , उदा. पहला एवं दूसरा महायुद्ध और इनसे पूर्व हुए सभी युद्ध भी । इसके विपरीत अध्यात्मसंबंधी वेद-उपनिषद इत्यादि ग्रंथ चिरकाल से टिके हुए हैं ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

‘साधना करने से कुण्डलिनी शक्ति जागृत होती है । यह…

‘साधना करने से कुण्डलिनी शक्ति जागृत होती है । यह अबतक के युगों में लाखों साधकों ने अनुभव किया है; पर जिन्हें साधना पर विश्वास ही नहीं है ऐसे बुद्धिवादी साधना न करते हुए भी बोलते हैं कि, ‘ कुण्डलिनी दिखाओ, नहीं तो वह नहीं है ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

क्षात्रतेज की अपेक्षा साधना में ब्राह्मतेज का महत्व है !

‘ किसी सात्विक राजा का चरित्र पढ़कर थोड़े समय के लिए उत्साह लगता है; पर ऋषिमुनियों के चरित्र और उनका दिया ज्ञान पढ़कर अधिक समय तक उत्साह लगता है और साधना को दिशा मिलती है !’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

विज्ञान को अधिकतर कुछ ज्ञात न होने के कारण किसी…

‘विज्ञान को अधिकतर कुछ ज्ञात न होने के कारण किसी सिद्धांत को सिद्ध करने के लिए शोध करना पड़ता है । इसके विपरीत अध्यात्म में सर्व ज्ञान होने के कारण वैसा नहीं करना पड़ता । अध्यात्म में संशोधन इस वैज्ञानिक युग में वर्तमान पीढ़ी का अध्यात्म पर विश्वास बिठाने और उसे अध्यात्म की ओर अग्रसर … Read more

कीर्तनकार और प्रवचनकार तात्विक जानकारी बताते हैं, पर सच्चे…

‘ कीर्तनकार और प्रवचनकार तात्विक जानकारी बताते हैं, पर सच्चे गुरु प्रायोगिक स्तर पर कृति करवा कर शिष्य की प्रगति करवाते हैं।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

युगों युगों से संस्कृत व्याकरण वैसी ही है ।…

‘ युगों युगों से संस्कृत व्याकरण वैसी ही है । इसका कारण वह पहले से ही परिपूर्ण है । इसके विपरीत संसार की सभी भाषाओं के व्याकरण में परिवर्तन होता है ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

ईश्वरप्राप्ति के लिए तन-मन-धन का त्याग करना पड़ता है ।…

‘ईश्वरप्राप्ति के लिए तन-मन-धन का त्याग करना पड़ता है । इसलिए धनप्राप्ति के लिए जीवन व्यर्थ करने की अपेक्षा सेवा करके धन के साथ तन और मन का भी त्याग किया, तो ईश्वरप्राप्ति शीघ्र होती है ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

’माया में शिक्षा तन मन धन का उपयोग कर धन…

‘माया में शिक्षा तन मन धन का उपयोग कर धन प्राप्ति करना सिखाती है, पर साधना में तन मन धन का त्याग कर ईश्वर प्राप्ति करना सिखाते हैं।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

तीव्र गति से विनाश की ओर बढते हिन्दू !

”कहां अर्थ और काम पर आधारित पश्चिमी संस्कृति और कहां धर्म तथा मोक्ष पर आधारित हिन्दू संस्कृति ! हिन्दू पश्चिम का अंधानुकरण कर रहे हैं, इसलिए उनका भी विनाश की ओर मार्ग क्रमण हो रहा है!” – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

अधोगति को प्राप्त समाज का प्रतिबिंब कथा, नाटक, उपन्यास, चलचित्र,…

‘अधोगति को प्राप्त समाज का प्रतिबिंब कथा, नाटक, उपन्यास, चलचित्र, दूरदर्शन के धारावाहिक इत्यादि में न दिखाते हुए; इनमें समाज को दिशा दिखानेवाले आदर्श समाज का चित्रण सभी से अपेक्षित है।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले