‘बुद्धिप्रमाणवादियों का विचार
‘बुद्धिप्रमाणवादियों का यह कहना कि बुद्धि के परे ईश्वर नहीं होते हैं’, यह नर्सरी के बच्चों का डॉक्टर, अधिवक्ता इत्यादि नहीं होते हैं’, ऐसे बोलने जैसा है !’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘बुद्धिप्रमाणवादियों का यह कहना कि बुद्धि के परे ईश्वर नहीं होते हैं’, यह नर्सरी के बच्चों का डॉक्टर, अधिवक्ता इत्यादि नहीं होते हैं’, ऐसे बोलने जैसा है !’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
मानव को मानवता न सिखानेवाला, उसके विपरीत विध्वंसक अस्त्र, शस्त्र देनेवाला विज्ञान का मूल्य शून्य है ! – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले
‘राजकीय पक्ष ‘ये देंगे, वो देंगे’, ऐसे कहकर जनता को स्वार्थी और अंत में उन्हें दुःखी बना देते हैं । इसके विपरीत साधना हमें धीरे धीरे सर्वस्व का त्याग करना सीखाकर चिरंतन आनंद की, ईश्वर की प्राप्ति कैसे करनी है, यह सिखाता है ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘जनता की शिक्षा, आरोग्य, रुचि-अरुचि में भी साम्यवादी समानता नहीं ला सकते, ऐसी स्थिति में राष्ट्र में साम्यवाद क्या लाएंगे ?’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘जिस प्रकार अडचन के समय सहायता मिलने के लिए हम अधिकोष में (बैंक में ) पैसे रखते हैं । उसी प्रकार संकटकाल में हमें सहायता मिल सके, इस हेतु हमारे पास साधना का संग्रह होना आवश्यक है । इससे हमें संकट के समय सहायता मिलती है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘असली सुख केवल साधना से ही मिलता है, भ्रष्ट मार्ग से कमाए हुए धन से नहीं !’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘कुछ लोग प्रश्न करते हैं कि हिन्दू (ईश्वरीय) राष्ट्र की शिक्षा प्रणाली कैसी होगी ?’, उसका उत्तर है , ‘नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालयों में जिस प्रकार १४ विद्या और ६४ कला सिखाते थे, उस प्रकार की शिक्षा दी जाएगी; परंतु उन माध्यमों से ईश्वरप्राप्ति करना भी सिखाया जाएगा ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘श्रीराम स्वयं ईश्वर का अवतार थे । पांडवों के समय पूर्णावतार श्रीकृष्ण थे । छत्रपति शिवाजी महाराजजी के समय समर्थ रामदासस्वामी थे । इससे यह ध्यान में आएगा कि ईश्वरीय राज्य की स्थापना ईश्वर स्वयं करते हैं अथवा संतों से करवा लेते हैं । अब हिन्दू राष्ट्र की स्थापना ईश्वर करें अथवा संतों द्वारा करवा … Read more
‘हमारी पीढी ने वर्ष १९७० तक सात्त्विकता का अनुभव किया; अगली पीढ़ियों ने वर्ष २०१८ तक उसका अनुभव अल्प मात्रा में किया परंतु वर्ष २०२३ तक अनुभव नहीं करेंगे । उसके पश्चात की पीढ़ियां हिन्दू राष्ट्र में भारत में पुनः सात्त्विकता का अनुभव करेंगी !’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘पाश्चात्य शिक्षा किसी भी समस्या के मूल कारण तक नहीं जाती, उदा. प्रारब्ध, बुरी शक्ति, कालमहात्म्य । उनके उपाय उसी प्रकार हैं जैसे किसी क्षयरोगी को क्षयरोग के कीटाणु मारने की औषधि न देकर केवल खांसी की औषधि देना । -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले