हिन्दू राष्ट्र में अपराधी नहीं होंगे !

समाज सात्विक होने के लिए धर्मशिक्षा न देकर केवल अपराधियों को दंड देने से अपराध नहीं घटते, यह भी समझ न पानेवाले आज तक के शासकर्ता। हिन्दू राष्ट्र में सभी को धर्मशिक्षा दी जाएगी। जिससे अपराधी ही नहीं रहेंगे ! – परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

धर्मशिक्षा के अभाव में हुई हिन्दुओं की दुर्दशा !

‘स्वतंत्रता से लेकर आज तक किसी भी दल के राज्यकर्ता और हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन ने हिन्दुओं को धर्मशिक्षा नहीं दी । इस कारण अब हिन्दुओं को ‘रामायण, महाभारत’, ये शब्द ही ज्ञात हैं । उनकी किसी भी शिक्षा का उन्हें स्मरण नहीं होता ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

अपनी अनमोल धरोहर को विस्मृत करनेवाले हिन्दू !

‘हिन्दू धर्मग्रंथों में ज्ञान की अनमोल धरोहर है । उनमें जीवन की सभी समस्याओं के उपाय दिए हैं । तब भी आज हिन्दू पश्चिमी विचारधारा और तकनीक के माध्यम से अपने जीवन की समस्याएं दूर करने के प्रयत्न करते हैं ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

हिन्दुओं अब तो जाग जाओ और इतिहास से शिक्षा लो !

‘कुछ भी अनुचित होने पर हिन्दू प्रत्येक बार ’हमसे कहां न्यूनता रही’, इसका विचार न कर, अंग्रेजी शिक्षाप्रणाली इत्यादि को दोष देते हैं । अंग्रेजों के आने से पहले मुसलमानों ने भी भारत पर राज्य किया । ‘इसके लिए अंग्रेज नहीं, अपितु हिन्दुओं की अनुचित विचारधारा ही कारणीभूत है !’, यह वे ध्यान में नहीं … Read more

अध्यात्म में स्त्रियां पुरुषों की तुलना में एक स्तर आगे होने का कारण

‘अधिकांश पुरुष कार्य के निमित्त रज-तमप्रधान समाज में रहते हैं । इसका उनपर परिणाम होने से वे भी रज-तमयुक्त होते हैं । इसके विपरीत, अधिकांश स्त्रियां घर में रहती हैं । उनका समाज के रज-तम से संपर्क नहीं होता । इसलिए वे साधना में शीघ्र प्रगति करती हैं ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (१४.११.२०२१)

सिखानेवाले और निरंतर सीखने की स्थिति में रहनेवाले सनातन के संत !

‘अधिकांश संत उन्हें ‘संत’ की उपाधि प्राप्त होने के उपरांत सिखाने की स्थिति में रहते हैं । इसलिए उनसे ‘अगले स्तर की साधना सीखना, साधना के विविध पहलू और उनकी सूक्ष्मता पूछकर आत्मसात करना’, ऐसी कृतियां नहीं होतीं । इसके विपरीत, सनातन के संतों को ‘अध्यात्म अनंत का शास्त्र है’, यह ज्ञात होने से वे … Read more

मनोलय हुए संतों की कृति का मानसिक स्तर पर अर्थ न निकालें !

‘अनेक बार कुछ संतों का आचरण देखकर कुछ लोगों को लगता है, ‘क्या वे मनोविकार से पीडित हैं ?’, ऐसे समय में यह ध्यान रखना चाहिए कि संतों का मनोलय हो चुका होता है । इसलिए उन्हें कभी भी मनोविकार नहीं होते । उनका आचरण उस परिस्थिति के लिए आवश्यक अथवा उनकी प्रकृतिनुसार होता है … Read more

भगवान से आंतरिक सान्निध्य बनाए रखने से प्रारब्ध पर मात की जा सकती है ।

प्रारब्ध कितना भी कठिन हो, भगवान से आंतरिक सान्निध्य बनाए रख, उचित क्रियमाण का उपयोग कर कर्म करनेसे उस पर मात की जा सकती है । श्रीचित्‌‌शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ

जीवन कैसे सरल सुंदर बनता है ?

‘सामने आनेवाला प्रत्येक मनुष्य को उस पल के लिए भगवान ने ही हमारे सामने भेजा है’, ऐसा विचार कर उसके लिए जितना कर पाएं, करना चाहिए । इससे जीवन सरल सुंदर बनता है । श्रीचित्‌‌शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ