असली सुख का मार्ग
‘असली सुख केवल साधना से ही मिलता है, भ्रष्ट मार्ग से कमाए हुए धन से नहीं !’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘असली सुख केवल साधना से ही मिलता है, भ्रष्ट मार्ग से कमाए हुए धन से नहीं !’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘कुछ लोग प्रश्न करते हैं कि हिन्दू (ईश्वरीय) राष्ट्र की शिक्षा प्रणाली कैसी होगी ?’, उसका उत्तर है , ‘नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालयों में जिस प्रकार १४ विद्या और ६४ कला सिखाते थे, उस प्रकार की शिक्षा दी जाएगी; परंतु उन माध्यमों से ईश्वरप्राप्ति करना भी सिखाया जाएगा ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘श्रीराम स्वयं ईश्वर का अवतार थे । पांडवों के समय पूर्णावतार श्रीकृष्ण थे । छत्रपति शिवाजी महाराजजी के समय समर्थ रामदासस्वामी थे । इससे यह ध्यान में आएगा कि ईश्वरीय राज्य की स्थापना ईश्वर स्वयं करते हैं अथवा संतों से करवा लेते हैं । अब हिन्दू राष्ट्र की स्थापना ईश्वर करें अथवा संतों द्वारा करवा … Read more
‘पाश्चात्य शिक्षा किसी भी समस्या के मूल कारण तक नहीं जाती, उदा. प्रारब्ध, बुरी शक्ति, कालमहात्म्य । उनके उपाय उसी प्रकार हैं जैसे किसी क्षयरोगी को क्षयरोग के कीटाणु मारने की औषधि न देकर केवल खांसी की औषधि देना । -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘एक बूंद पानी समुद्र में डालने पर, वह समुद्र से एकरूप हो जाता है । वैसे ही राष्ट्रभक्त राष्ट्र से एकरूप हो जाता है और साधक परमात्मा से एकरूप होता है ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
”अनेक गुन्हा करके आत्महत्या करनेवाले को सरकार कैसे सजा देगी ? केवल ईश्वर दे सकते हैं । इससे ध्यान में आता है कि ईश्वर का राज्य कितना कल्पनातीत है । इसलिए ईश्वरीय राज्य की स्थापना हेतु प्रयत्नरत रहें । -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘मंदिरों में देवता के कर्मचारी दर्शनार्थियों को दर्शन देने के अतिरिक्त और क्या करते हैं ? उन्होंने दर्शनार्थियों को धर्मशिक्षा दी होती, उन्हें साधना सिखाई होती, तो हिंदुओं की और भारत की ऐसी दयनीय स्थिति नहीं हुई होती ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘नौकरी में थोडे से वेतन के लिए ७ – ८ घंटे नौकरी करनी पड़ती है, तो सर्वज्ञ, सर्वव्यापी और सर्व सामर्थ्यवान ईश्वर की प्राप्ति के लिए क्या जीवन नहीं देना चाहिए ?’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘सत्ययुग में नियतकालिक, दूरचित्रवाहिनियां, जालस्थल आदि की आवश्यकता ही नहीं थी; क्योंकि बुरे समाचार नहीं होते थे और सभी ईश्वर के आंतरिक सान्निध्य में होने के कारण आनंदी थे।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘कर्मयोग, ज्ञानयोग, हठयोग आदि योगों में ईश्वर का विचार न होने के कारण ईश्वर से कुछ मांग नहीं पाते; परंतु भक्तियोग का साधक ईश्वर से मांग सकता है । ऐसा है तब भी अन्य योग के साधकों को ईश्वर ने सुविधा उपलब्ध करवाई है । यदि गुरु हों, तो वे गुरू से सब कुछ मांग … Read more