मनोलय हुए संतों की कृति का मानसिक स्तर पर अर्थ न निकालें !

‘अनेक बार कुछ संतों का आचरण देखकर कुछ लोगों को लगता है, ‘क्या वे मनोविकार से पीडित हैं ?’, ऐसे समय में यह ध्यान रखना चाहिए कि संतों का मनोलय हो चुका होता है । इसलिए उन्हें कभी भी मनोविकार नहीं होते । उनका आचरण उस परिस्थिति के लिए आवश्यक अथवा उनकी प्रकृतिनुसार होता है … Read more

भगवान से आंतरिक सान्निध्य बनाए रखने से प्रारब्ध पर मात की जा सकती है ।

प्रारब्ध कितना भी कठिन हो, भगवान से आंतरिक सान्निध्य बनाए रख, उचित क्रियमाण का उपयोग कर कर्म करनेसे उस पर मात की जा सकती है । श्रीचित्‌‌शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ

जीवन कैसे सरल सुंदर बनता है ?

‘सामने आनेवाला प्रत्येक मनुष्य को उस पल के लिए भगवान ने ही हमारे सामने भेजा है’, ऐसा विचार कर उसके लिए जितना कर पाएं, करना चाहिए । इससे जीवन सरल सुंदर बनता है । श्रीचित्‌‌शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळ

प्राणरक्षा हेतु साधना ही टीका है

‘रोगों से बचाव हेतु टीकाकरण होता है; उसी प्रकार तीसरे विश्‍वयुद्ध के समय प्राणरक्षा हेतु साधना ही टीका है ।’ – (परात्‍पर गुरु) डॉ. आठवले

ईश्वर से परिचय

‘पृथ्‍वी के काम भी बिना किसी के परिचय के नहीं होते; तब प्रारब्‍ध, अनिष्‍ट शक्‍तिजनित पीडा इत्‍यादि समस्‍याएं बिना ईश्‍वर से परिचय हुए बिना, क्‍या ईश्‍वर दूर करेंगे ?’ – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

अधिक समझदार बुद्धिजीवी

‘साधना से सूक्ष्म ज्ञान होने पर यज्ञ का महत्त्व समझ में आता है । महत्त्व न समझने के कारण ‘अधिक समझदार बुद्धिजीवी’, ‘यज्ञ में वस्‍तुएं जलाने की अपेक्षा गरीबों को दें’ का राग आलापते हैं !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

बुद्धिजीवियों का अज्ञान

बुद्धिजीवियों का बुद्धि से परे के भगवान नहीं होते’, यह कहना वैसा ही है, जैसे आंगनवाडी के बालक का यह कहना कि ‘डॉक्टर, अधिवक्ता आदि नहीं होते !’’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

चिरंतन आनंद केवल साधना से ही मिलता है ।

‘ईश्वर और साधना पर विश्‍वास न हो, तब भी चिरंतन आनंद प्रत्येक को चाहिए । वह आनंद केवल साधना से ही मिलता है । एक बार यह ध्यान में आने पर, साधना का कोई विकल्प न होने के कारण मानव साधना हेतु प्रवृत्त होता है ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

यज्ञ के स्थूल और सूक्ष्म धुएं से होनेवाला परिणाम 

‘जिस प्रकार शरीर के कीटाणु शरीर में ली गई औषधियों से मरते हैं । उसी प्रकार वातावरण में विद्यमान नकारात्मक रज-तम यज्ञ के स्थूल और सूक्ष्म धुएं से नष्ट होते हैं ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले