विज्ञान की सीमा !

‘विज्ञान का अध्यात्म के सिद्धांतों के विषय में कुछ कहना वैसा ही है, जैसा नन्हें बालक का बडों के विषय में कुछ कहना !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

अध्यात्म सम्बन्धी शोधकार्य का महत्त्व !

‘विज्ञान को अधिकांशतः कुछ भी ज्ञात नहीं रहता, इसलिए किसी सिद्धांत को सिद्ध करने के लिए निरंतर शोध करना पडता है । इसके विपरीत अध्यात्म में सब कुछ ज्ञात होने के कारण वैसा नहीं करना पडता । अध्यात्म सम्बन्धी शोधकार्य विज्ञानयुग की वर्तमान पीढी को अध्यात्म पर विश्‍वास हो तथा वह अध्यात्म की ओर प्रवृत्त … Read more

अध्यात्म में शोध कार्य नहीं करना पडता

‘विज्ञान को अधिकांशतः कुछ भी ज्ञात न होने के कारण, बार-बार शोध कार्य करना पड़ता है । इसके विपरीत अध्यात्म में सब कुछ ज्ञात होने के कारण शोध कार्य नहीं करना पडता ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

साधना के कारण किसी से ईर्ष्या, मत्सर अथवा द्वेष नही लगता

‘साधना के कारण ‘ईश्वर चाहिए’, ऐसा लगने लगे, तो ‘पृथ्वी की कोई वस्तु चाहिए’, ऐसा नही लगता । इस कारण किसी से ईर्ष्या, मत्सर अथवा द्वेष नही लगता, साथ ही अन्यों के साथ दूरी, झगडे नही होते.’ – परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

अध्यात्म में साधना का आरंभ कैसे होता है ?

‘अध्यात्म में साधना का आरंभ अर्थात ‘अ’(A) ऐसा कुछ नहीं होता । प्रत्येक के आध्यात्मिक स्तर एवं साधनामार्ग के अनुसार उसकी साधना आरंभ होती है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले (२९.१२.२०२१)

सात्त्विक व्यक्तियों का ध्येय !

‘सात्त्विक व्यक्तियों के व्यष्टि जीवन का ध्येय होता है ईश्वरप्राप्ति, जबकि समष्टि जीवन का ध्येय होता है रामराज्य !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

ईश्वर के समष्टि कार्य का महत्त्व

‘एक-एक भक्त की सहायता करनेवाले भगवान की अपेक्षा समष्टि की सहायता करनेवाले भगवान के राम, कृष्ण जैसे अवतार सभी को प्रिय होते हैं ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

अध्यात्मशास्त्र का महत्त्व !

‘सच्चिदानंद ईश्वर की प्राप्ति कैसे करें, यह अध्यात्मशास्त्र बताता है । इसके विपरीत ‘ईश्वर हैं ही नहीं’, ऐसा कुछ विज्ञानवादी अर्थात बुद्धिप्रमाणवादी चीख चीख कर कहते हैं !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

सनातन के आश्रम में कौन रह सकता है ?

सनातन का आश्रम देखने के लिए आनेवाले कुछ लोग पूछते हैं, “आश्रम में कौन रह सकता है ?” इस प्रश्न का उत्तर है, ‘ईश्वरप्राप्ति के लिए अखंड साधना करने का इच्छुक कोई भी व्यक्ति आश्रम में रह सकता है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

चुनाव में खडे प्रत्याशियों, यह बात ध्यान में रखो !

‘राष्ट्रप्रेम और धर्मप्रेम रहित प्रत्याशी से पैसे लेकर उसे मत देनेवाली जनता का जनप्रतिनिधि बनकर चुने जाने की तुलना में ‘ईश्वर द्वारा भक्त के रूप में चुना जाना अनंत गुना अधिक महत्वपूर्ण है’, यह ध्यान में रखें !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले