भगवान का भक्त बनना सर्वश्रेष्ठ !
‘राजनीतिक दल अथवा किसी बडे संगठन में पद पाने की अपेक्षा भगवान का भक्त बनना अधिक श्रेष्ठ है !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
‘राजनीतिक दल अथवा किसी बडे संगठन में पद पाने की अपेक्षा भगवान का भक्त बनना अधिक श्रेष्ठ है !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
‘भारत में ‘भारतरत्न’ सर्वोच्च पद है । विश्व में ‘नोबेल प्राइज’ सर्वोच्च पद है, जबकि सनातन द्वारा उद्घोषित ‘जन्म-मृत्यु से मुक्ति’ तथा ‘संत’, ये पद ईश्वर के विश्व में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
‘ईश्वर में स्वभावदोष एवं अहं नहीं होता । उनसे एकरूप होना हो, तो हममें भी उनका अभाव आवश्यक है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
एक बूंद पानी समुद्र में डालें, तो वह समुद्र से एकरूप हो जाता है । उसी प्रकार राष्ट्रभक्त राष्ट्र से एकरूप होता है तथा साधक परमात्मा से एकरूप होता है । – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
गुरुकृपायोग विशेष सैद्धांतिक जानकारी न देकर केवल प्रत्यक्ष साधना कर उन्नति कैसे करें, यह सिखाता है ! ‘गुरुकृपायोग में विशेष सैद्धांतिक जानकारी नहीं है; क्योंकि यह योग कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग इत्यादि योगों पर आधारित है । विविध योगों की विस्तृत तात्त्विक जानकारी निश्चित रूप से अनेक ग्रंथों में उपलब्ध है । गुरुकृपायोग केवल प्रायोगिक साधना … Read more
साधना करने से हिन्दू धर्म का महत्त्व समझ में आता है तथा हिन्दू धर्म समझ में आने पर ही वास्तव में समाज, राष्ट्र तथा धर्म का कल्याण करने हेतु प्रयत्न हो पाते हैं । – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
अपेक्षा करना अहं का लक्षण है । अपेक्षापूर्ति होने पर तात्कालिक सुख मिलता है; परंतु इससे अहं का पोषण होता है और यदि अपेक्षा के अनुरूप नहीं होता तो दुःख होता है, अर्थात दोनों ही प्रसंगों में साधना की दृष्टि से हानि ही होती है ।’ – (सद्गुरु) श्री. राजेंद्र शिंदे
‘पृथ्वी के काम भी बिना किसी के परिचय के नहीं होते, तो प्रारब्ध अनिष्ट शक्ति की पीडा आदि समस्याएं भगवान के परिचय के बिना भगवान दूर करेंगे क्या ?’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले
‘ईश्वर की कृपा अनुभव करने के उपरांत समाज में कोई प्रशंसा करे, तो उसका मूल्य शून्य प्रतीत होता है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
‘राजनीतिक पक्ष दल ‘हम यह देंगे, वह देंगे’ ऐसा कहकर जनता को स्वार्थी बनाते हैं और स्वार्थ के कारण जनता में वाद विवाद होते हैं । इसके विपरीत साधना त्याग करना सिखाती हैं; इस कारण जनता में वाद विवाद नहीं होते और सभी मिलकर एक परिवार के रूप में आनंद से रहते हैं ।’ – … Read more