मनमुक्तता का महत्त्व

अ. जब (खेत में) नदी का पानी आता है, तब उसे पाट बनाकर दिशा देनी पडती है; अन्यथा वह समस्त (खेत) नष्ट कर देता है । उसीप्रकार मन में आ रहे विचारों को दिशा देनी पडती है । आ. ‘मन खोलना’, अर्थात ईश्वर द्वारा सुझाया गया बोलना एवं बताना । मन खाली करने के उपरांत … Read more

ईश्वर के विश्व में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण क्या है ?

‘भारत में ‘भारतरत्न’ सर्वोच्च पद है । विश्व में ‘नोबेल प्राइज’ सर्वोच्च पद है, जबकि सनातन द्वारा उद्घोषित ‘जन्म-मृत्यु से मुक्ति’ तथा ‘संत’, ये पद ईश्‍वर के विश्‍व में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

एकरूपता की प्रक्रिया !

एक बूंद पानी समुद्र में डालें, तो वह समुद्र से एकरूप हो जाता है । उसी प्रकार राष्ट्रभक्त राष्ट्र से एकरूप होता है तथा साधक परमात्मा से एकरूप होता है । – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

गुरुकृपायोग के अनुसार साधना की श्रेष्ठता

गुरुकृपायोग विशेष सैद्धांतिक जानकारी न देकर केवल प्रत्यक्ष साधना कर उन्नति कैसे करें, यह सिखाता है ! ‘गुरुकृपायोग में विशेष सैद्धांतिक जानकारी नहीं है; क्योंकि यह योग कर्मयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग इत्यादि योगों पर आधारित है । विविध योगों की विस्तृत तात्त्विक जानकारी निश्चित रूप से अनेक ग्रंथों में उपलब्ध है । गुरुकृपायोग केवल प्रायोगिक साधना … Read more

समाजसेवक, देशभक्त तथा धर्मनिष्ठ (हिन्दुत्वनिष्ठ) के साधना करने का महत्त्व !

साधना करने से हिन्दू धर्म का महत्त्व समझ में आता है तथा हिन्दू धर्म समझ में आने पर ही वास्तव में समाज, राष्ट्र तथा धर्म का कल्याण करने हेतु प्रयत्न हो पाते हैं । – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

अपेक्षा करना अहं है !

अपेक्षा करना अहं का लक्षण है । अपेक्षापूर्ति होने पर तात्कालिक सुख मिलता है; परंतु इससे अहं का पोषण होता है और यदि अपेक्षा के अनुरूप नहीं होता तो दुःख होता है, अर्थात दोनों ही प्रसंगों में साधना की दृष्टि से हानि ही होती है ।’ – (सद्गुरु) श्री. राजेंद्र शिंदे

भक्ति का महत्व !

‘पृथ्वी के काम भी बिना किसी के परिचय के नहीं होते, तो प्रारब्ध अनिष्ट शक्ति की पीडा आदि समस्याएं भगवान के परिचय के बिना भगवान दूर करेंगे क्या ?’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

ईश्वर की कृपा का महत्व !

‘ईश्वर की कृपा अनुभव करने के उपरांत समाज में कोई प्रशंसा करे, तो उसका मूल्य शून्य प्रतीत होता है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले