ईश्वर द्वारा अपना चुनाव हो, ऐसी साधकों की इच्छा
कलियुग के मनुष्यों द्वारा नहीं, अपितु ईश्वर द्वारा अपना चुनाव हो, ऐसी साधकों की इच्छा होती है । – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
कलियुग के मनुष्यों द्वारा नहीं, अपितु ईश्वर द्वारा अपना चुनाव हो, ऐसी साधकों की इच्छा होती है । – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
किसी संत के पास जानेपर कुछ लोगों को अच्छा लगता है अथवा उनमें भाव जागृत होता है, तो कुछ लोगों को कुछ भी नहीं लगता । उसमें से कुछ लोगों को कुछ भी न लगने से बुरा लगता है । अनुभूति प्राप्त होना अथवा न प्राप्त होने के कारण निम्न प्रकार से हैं – १. … Read more
नित्य जीवन में जहां अधिक वेतन मिलता है, वहां व्यक्ति नौकरी करता है । इसके विपरीत साधना में शिष्य अपने सर्वस्व का त्याग कर लेनेवाले गुरु की सेवा करता है ! -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
काले धनपर उपाय के रूप में ५०० एवं १००० रुपए के नोटोंपर प्रतिबंध लगाने का अर्थ फेफडे के क्षयरोग से ग्रस्त रोगी को केवल खांसी की औषधि देना ! यदि जनता को साधना सीखाकर सात्त्विक बनाया गया, तो सभी प्रकार की व्यक्तिगत एवं राष्ट्रीय समस्याएं दूर होंगी, यह भी शासन की ध्यान में कैसे नहीं … Read more
जनता को पैसे देकर अथवा उसको झूठे आश्वासन देकर चुनाव जीतने की अपेक्षा ईश्वर को प्रसन्न कर उनके आशीर्वाद से चुनाव जीता गया, तो केवल जनता को ही नहीं, अपितु प्राणिमात्रों को भी वास्तविकरूप में सुखी बनाना संभव होगा ।
जिनके संदर्भ में ईश्वर को ऐसा प्रतीत होगा कि, ये ईश्वरीय अर्थात रामराज्य में रहने के पात्र हैं, उनकी ही वे रक्षा करेंगे एवं अन्य लोग मर जाएंगे ।
हिन्दू धर्म का मूल्य न जाननेवाले भारत के हिन्दू उच्च शिक्षा हेतु अमेरिका को प्रयाण करते हैं । उसी प्रकार साधना एवं हिन्दू धर्म की शिक्षा ग्रहण करने हेतु पूरे विश्व के जिज्ञासु एवं साधक भारत में आते हैं । ऐसा होते हुए भी भारत के हिन्दुओं को हिन्दू धर्म का मूल्य नहीं है ।
जिस प्रकार अंधों को स्थूल विश्व दिखाई नहीं देता, उसी प्रकार साधना न करनेवालों एवं बुद्धिवादियों को सूक्ष्म विश्व दिखाई नहीं देता । विश्व दिखाई नहीं देता, इस बात को अंधे स्वीकार करते हैें; परंतु बुद्धवादी अहंकार से कहते हैं कि, सूक्ष्म विश्व ऐसा कुछ नहीं होता !
सर्वत्र व्याप्त भ्रष्टाचार एवं अनैतिकता क्या केवल नोटबंदी कर रुकनेवाली है क्या ? उसके मूलतक जाने का अर्थ है नैतिकता एवं साधना सिखाना । एेसा करने से सर्वत्र व्याप्त आर्थिक अराजक मूल से बंद हो जाएगा ।
कहां केवल अपने परिजन अथवा अपनी जातिबंधुआें के हित को देखनेवाले संकीर्ण वृत्ति का मनुष्य, तो कहां अनंक कोटि ब्रह्मांड में व्याप्त प्राणिमात्रों के कल्याण की चिंता करनेवाले ईश्वर !