‘राजनेता तथा आरक्षणकर्ता स्वार्थ सिखाते हैं, तो गुरु केवल स्वार्थत्याग…

‘राजनेता तथा आरक्षणकर्ता स्वार्थ सिखाते हैं, तो गुरु केवल स्वार्थत्याग ही नहीं, अपितु सर्वस्व का त्याग करना सिखाते हैं !’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

भक्तियोग में होनेवाली समष्टि साधना !

अत्यधिक लोगों को ऐसा प्रतीत होता है कि, भक्तियोग में केवल व्यष्टि साधना होती है । परंतु प्रत्यक्ष में वैसा नहीं है, अपितु भक्त की ओर अन्य लोग आकर्षित होते हैं एवं उनके मार्गदर्शनानुसार साधना करने लगते हैं । इसलिए उनकी समष्टि साधना भी होती है । – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन काे कलियुग में प्राधान्य रहेगा !

स्वभावदोष एवं अहं का निर्मूलन करने पर किसी भी साधनामार्ग से साधना कर शीघ्र उन्नति करना संभव होता है । पूर्व के युग में स्वभावदोष एवं अहं का प्रमाण अधिक न होने से स्वभावदोष एवं अहं का निर्मूलन करने की आवश्यकता नहीं थी, वे अपने आप नष्ट होते थे । – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत … Read more

संत जन्म-मृत्यु के फेरे से मुक्त करते हैं !

डॉक्टर केवल अस्वस्थता को न्यून करते हैं; परंतु मृत्यु को नहीं टाल सकते । इसके विपरीत संत जन्म-मृत्यु के फेरे से मुक्त करते हैं ! – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

साधना के संदर्भ में मार्गदर्शन करने का अधिकार किस व्यक्ति को है ?

जिस व्यक्ति को साधना के दृष्टिकोण अच्छी तरह से परिचित है, जिसकी कुछ भी अपने पास रखने की अपेक्षा दूसरे को ज्ञान देने की निरपेक्ष वृत्ति है तथा मार्गदर्शक सूत्रों के अनुसार जो प्रथम स्वयं अच्छी तरह से साधना करता है, उस व्यक्ति को ही अन्य लोगों को साधना के संदर्भ में मार्गदर्शन करने का अधिकार है । अतएवं … Read more

संत सदैव आनंदी होते हैं !

अपने बच्चे का आगे क्या होगा ?, ऐसी चिंता उसके मां-बाप को होती है । इसके विपरीत राष्ट्र के सभी अपने बच्चे ही हैं, ऐसे व्यापक भाव के कारण संत सदैव आनंदी होते हैं । -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

बुद्धि से अध्ययन करने पर, उसकी गहराई समझ में नहीं आतीं

सागर को केवल देखने अथवा उसके विषय में बुद्धि से अध्ययन करने पर, उसकी गहराई एवं वहां की बातें समझ में नहीं आतीं । उसी प्रकार, स्थूल विषय का बुद्धि से अध्ययन करने पर, उसमें विद्यमान सूक्ष्म आध्यात्मिक जगत् समझ में नहीं आता । – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

भक्तिमार्ग में व्याप्त व्यष्टि एवं समष्टि साधना

१. व्यष्टि साधना : यह व्यक्तिगत जीवन से संबंधित होती है । इस साधनामार्ग में धार्मिक विधि, पूजा-अर्चना, पोथीपठन, नामजप, मंत्रजप, भाव की स्थिति में रहना इत्यादी साधनाएं होती हैं । २. समष्टि साधना : यह साधना समष्टि अर्थात समाजजीवन से संबंधित होती है । कालमहिमानुसार समाजपर जो अनिष्ट परिणाम होनेेवाले होते हैं, उनकी तीव्रता … Read more

अध्यात्म में किसी भी प्रश्‍न का उत्तर तत्काल ज्ञात होता है ।

विज्ञान को जानकारी को एकत्रित कर किसी प्रश्‍न का उत्तर ढूंढना पडता है । इसके विपरीत अध्यात्म में जानकारी एकत्रित नहीं करनी पडती । इसमें किसी भी प्रश्‍न का उत्तर तत्काल ज्ञात होता है । -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

सूक्ष्म में व्याप्त अनिष्ट शक्तियों को नष्ट करने हेतु साधना की आवश्यकता !

कोई मनुष्य चाहे कितना भी बलवान हो अथवा उसके पास शस्त्र हों, तो भी उसे कीटाणुनाशक औषधियां लेनी पडती हैं; क्योंकि यह कीटाणु सूक्ष्म होते हैं । उसी प्रकार से अनिष्ट शक्तियों को नष्ट करने हेतु साधना करनी पडती है । पाश्‍चात्त्यों को केवल कीटाणु ज्ञात हुए, तो हमारे संत एवं ऋषियों को सूक्ष्मातिसूक्ष्म विश्‍व … Read more