आश्चर्य
‘पैसा अर्जित करने की अपेक्षा उसका त्याग करना अधिक सुलभ है, तब भी मानव नहीं करता, यह आश्चर्य है !’ – परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘पैसा अर्जित करने की अपेक्षा उसका त्याग करना अधिक सुलभ है, तब भी मानव नहीं करता, यह आश्चर्य है !’ – परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘कुछ भी अनुचित होने पर हिन्दू प्रत्येक बार ’हमसे कहां न्यूनता रही’, इसका विचार न कर, अंग्रेजी शिक्षाप्रणाली इत्यादि को दोष देते हैं । अंग्रेजों के आने से पहले मुसलमानों ने भी भारत पर राज्य किया । ‘इसके लिए अंग्रेज नहीं, अपितु हिन्दुओं की अनुचित विचारधारा ही कारणीभूत है !’, यह वे ध्यान में नहीं … Read more
‘वर्तमान में समाज में प्रत्येक व्यक्ति मान-सम्मान और प्रतिष्ठा के लिए विविध पदवियां एवं धन अर्जित करता है। इसके विपरीत सनातन संस्था में प्रत्येक व्यक्ति किसी भी व्यावहारिक फल की अपेक्षा न रख; तन, मन एवं धन का अधिकाधिक त्याग करता है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
अन्य नियतकालिकों में बच्चों के जन्मदिन के उपलक्ष्य में छायाचित्र छापने हेतु विज्ञापन के पैसे देते हैं, जबकि ‘सनातन प्रभात’ में गुणवान बच्चों के छायाचित्रों के साथ उनकी आध्यात्मिक गुणविशेषताएं भी छापते हैं ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘गरीबी होना अथवा न होना, इसके पीछे ‘प्रारब्ध’ ऐसा कुछ कारण है’, यह न जाननेवाले साम्यवाद की डींगे हांकते है और जो गरीब हैं अथवा नहीं है, उनमें समानता लाने का प्रयत्न करते हैं !’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘पश्चिमी शिक्षण किसी भी समस्या के मूल कारण तक, उदा. प्रारब्ध, अनिष्ट शक्ति, कालमहात्म्य तक नहीं जाता । क्षयरोग होने पर क्षयरोग के कीटाणु मारने की औषधि न देकर केवल खांसी की औषधि देने जैसा उनका उपाय है !’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘जहां विज्ञान पृथ्वीतत्त्व के अंतर्गत विषयों से संबंधित है, वहीं अध्यात्म ‘पृथ्वी, आप, तेज, वायु तथा आकाश’ इन पंचमहाभूतों और निर्गुण तत्त्व से संबंधित है । इस कारण ही विज्ञान पृथ्वी के बाहर स्थित अन्य पृथ्वी का ही अध्यन करता है; जबकि अध्यात्म पंचमहाभूतों के परे निर्गुण तत्त्वों का अध्यन भी करता है और अनुभूति … Read more
‘जनता की शिक्षा, आरोग्य, रुचि-अरुचि में भी साम्यवादी समानता नहीं ला सकते, ऐसी स्थिति में राष्ट्र में साम्यवाद क्या लाएंगे ?’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘हमारी पीढी ने वर्ष १९७० तक सात्त्विकता का अनुभव किया; अगली पीढ़ियों ने वर्ष २०१८ तक उसका अनुभव अल्प मात्रा में किया परंतु वर्ष २०२३ तक अनुभव नहीं करेंगे । उसके पश्चात की पीढ़ियां हिन्दू राष्ट्र में भारत में पुनः सात्त्विकता का अनुभव करेंगी !’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘नोबेल पुरस्कार प्राप्त करनेवालों के नाम कुछ वर्षों में ही भुला दिए जाते हैं; परंतु धर्मग्रंथ लिखनेवाले वाल्मिकी ऋषि, महर्षि व्यास, वसिष्ठ ऋषि आदि के नाम युगों तक चिरंतन रहते हैं ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले