चुनाव बने बच्चों के खेल !
‘चुनाव के विषय में प्रतिदिन आनेवाले समाचार देखकर लगता है, ‘ अब चुनाव बच्चों के खेल बन गए हैं !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
‘चुनाव के विषय में प्रतिदिन आनेवाले समाचार देखकर लगता है, ‘ अब चुनाव बच्चों के खेल बन गए हैं !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
‘बुद्धिप्रमाणवादी आधुनिकतावादी नहीं; अधोगामी होते हैं । इसलिए वे अधोगति को प्राप्त करते हैं ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
‘मानव के अतिरिक्त अन्य कोई प्राणी अथवा वनस्पति छुट्टी नहीं लेता । ईश्वर भी एक भी सेकंड की छुट्टी नहीं लेते । मानव मात्र शनिवार एवं रविवार छुट्टी लेता है । इतना ही नहीं वर्ष में भी कुछ दिन अधिकारपूर्वक छुट्टी लेता है । ऐसे में इस विषय में मानव श्रेष्ठ है या प्राणी एवं … Read more
‘समाज में, कार्यालय में तथा अन्यत्र अहंकार, झूठ बोलना भ्रष्टाचार इत्यादि का अनुकरण किया जाता है; जबकि सनातन के आश्रमों में सद्गुणों का अनुकरण किया जाता है !’ – (परात्पर गुरु ) डॉ. आठवले
‘बाहर का शृंगार (मेक-अप) अन्यों को आकर्षित करता है । इसके विपरीत भीतरी शृंगार (मेक-अप) अर्थात स्वभावदोष एवं अहं का निर्मूलन ईश्वर को आकर्षित करता है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
साधना कर सूक्ष्म स्तरीय ज्ञान होने पर यज्ञ का महत्त्व समझ में आता है । वह न समझने के कारण ही अति सयाने बुद्धिजीवी कहते हैं, ‘यज्ञ में वस्तुएं जलाने के स्थान पर उन्हें गरीबों में बाटें ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
‘बुद्धिप्रमाणवादियों को अहंकार होता है, ‘मानव ने नए-नए यंत्र खोजे ।’ उन्हें यह समझ में नहीं आता कि ईश्वर ने जीवाणु, पशु-पक्षी, ७०-८० वर्ष चलनेवाला एक यंत्र अर्थात मानव शरीर जैसी अरबों वस्तुएं बनाई हैं । उनमें से एक भी वस्तु क्या वैज्ञानिक बना पाए हैं ?’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
‘भारत की पाठशाला में तामसिक अंग्रेजी भाषा सिखाई जाती है; परंतु सात्त्विक संस्कृत भाषा नहीं सिखाई जाती । यह स्वाभाविक ही है; क्योंकि स्वतंत्रता से लेकर अभी तक भारत पर राज्य करनेवाले सभी तामसिक राजनीतिक दलों को तामसिक अंग्रेजी अपनी लगती है !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
‘जैसे प्राथमिक कक्षा में पढनेवाला बच्चा स्नातकोत्तर अथवा डॉक्टरेट कर चुके व्यक्ति से विवाद करेगा, वैसे बुद्धिप्रमाणवादी अध्यात्म के अधिकारी व्यक्ति से विवाद करते हैं !’ – परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘शरीर की बनावट, स्वभाव के गुण-दोष, कला, बुद्धि, धन इत्यादी घटकोंं में ७५० करोड़ में से २ व्यक्तियों में भी समानता नहीं है । ऐसे में ‘साम्यवाद’ शब्द का कुछ अर्थ है क्या ?’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले