तथाकथित बुद्धिवादी
वास्तविक बुद्धिवादी प्रयोग कर निष्कर्ष तक पहुंचते हैं । इसके विपरीत स्वयं को बुद्धिवादी कहलानेवाले साधना का, अध्यात्म का प्रयोग किए बिना ही कहते हैं, ‘वह झूठा है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
वास्तविक बुद्धिवादी प्रयोग कर निष्कर्ष तक पहुंचते हैं । इसके विपरीत स्वयं को बुद्धिवादी कहलानेवाले साधना का, अध्यात्म का प्रयोग किए बिना ही कहते हैं, ‘वह झूठा है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
‘कहां परग्रह पर जानेवाले यान की खोज करने पर विज्ञान की प्रशंसा करनेवाले बुद्धिप्रमाणवादी ; और कहां केवल विश्व में ही नहीं अपितु सप्तलोक एवं सप्त पाताल में भी क्षणार्द्ध में सूक्ष्म से पहुंच पानेवाले ऋषि-मुनि !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
‘पहले घूस (रिश्वत) लेनेवाले को खोजना पडता था, अब घूस न लेनेवाले को खोजना पडता है !’ – परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘नेता अपने लाभ के लिए समाज से ‘मुझे मत (वोट) दो’, ऐसा कहते हैं , इसके विपरीत साधक समाज से अपने लिए कुछ नहीं मांगते; अपितु ‘ईश्वरप्राप्ति के लिए साधना करो’, ऐसा कहते हैं !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
कहां सहस्रो दावे लंबित होने पर भी कुछ ना करनेवाली आज तक की सरकारें और कहां जनता में से एक व्यक्ति द्वारा केवल संदेह व्यक्त करने पर सीता का त्याग करनेवाले प्रभु श्रीराम ! इस कारण प्रभु श्रीराम अजर अमर हैं, जबकि नेताओं को जनता कुछ वर्षों में ही भूल जाती है । – (परात्पर … Read more
‘वर्तमान काल के स्त्री-पुरुष के बीच का प्रेम अधिकतर केवल शारीरिक प्रेम होता है । इसलिए उन्हें विवाह करने की भी आवश्यकता नहीं लगती और उन्होंने विवाह किया, तो वह टूट जाता है । उनकी एक-दूसरे से नहीं बनी, तो वे मानसिक प्रेम न होने से जोडीदार बदलते रहते हैं । विवाह किया हो, तो … Read more
‘स्वतंत्रता से लेकर अभी तक के कितने राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों के नाम कितने लोगों को ज्ञात हैं ?’ इसके विपरीत ऋषि मुनियों के नाम सहस्त्रों वर्षों से स्मरणीय हैं । – परात्पर गुरु डॉ. आठवले
‘पूर्वकाल में आयुर्वेद के कारण भी संसार में सर्वत्र भारत का नाम था । आगामी तृतीय विश्वयुद्ध के काल में औषधियां तथा डॉक्टर उपलब्ध नहीं होंगे । उस समय भारत को छोडकर अन्य देशों के नागरिकों के सामने ‘रोगग्रस्त रहना अथवा मरना’, इसके अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं होगा । इसके विपरीत भारत में औषधीय वनस्पति … Read more
साधना करने पर कुंडलिनी शक्ति जागृत होती है । अभी तक के युगों में लाखों साधकों ने यह अनुभव किया है; परंतु साधना पर विश्वास न रखनेवाले बुद्धिप्रमाणवादी साधना किए बिना ही कहते हैं, ‘कुंडलिनी दिखाओ, नहीं तो वह है ही नहीं !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
‘धन प्राप्त करने के लिए भारतीय अमेरिका जाते हैं, जबकि ईश्वरप्राप्ति के लिए पूरे विश्व से लोग भारत में आते हैं ! इनमें से बुद्धिमान कौन है, यह आप ही निश्चित करें ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले