बुद्धिप्रमाणवादियों एवं विज्ञान निष्ठों का ज्ञान अति सीमित होने के कारण

‘बुद्धिप्रमाणवादियों एवं विज्ञान निष्ठों में यह अहंकार होता है कि ‘मुझे जो पता है, वही सत्य है’ और नया कुछ समझने की उनमें जिज्ञासा नहीं होती । इसके विपरीत ऋषियों में अहंकार न होने के कारण तथा जिज्ञासा होने के कारण उनके ज्ञान की श्रेणी बढती जाती है और वे अनंत कोटि ब्रह्मांड के असीमित … Read more

वैश्विक जनसंख्या वृद्धि का परिणाम

‘किसी थाली में कीटाणुओं की वृद्धि सीमा से अधिक हो जाए, तो थाली में रखा भोजन कीटाणुओं के लिए पर्याप्त नहीं होता । इस कारण वे मर जाते हैं । ऐसी ही अब पृथ्वी की स्थिति हो गई है । पृथ्वी की क्षमता ३०० करोड़ लोगों का पालन पोषण करने की है । अब पृथ्वी … Read more

मंदिर का धन लूटनेवाले नेता !

‘भक्तों द्वारा भक्तिभाव से मंदिरों में अर्पण किए धन को मंदिरों का सरकारीकरण कर लूटनेवाले सर्वदलीय नेता, अर्थात माता-पिता की संपत्ति हडपकर उसे खर्च कर देनेवाले निकम्मे बच्चे !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले

विज्ञान की तुलना में अध्यात्म की श्रेष्ठता !

‘संसार के वैद्य, अभियंता, अधिवक्ता, वास्तु विशारद इत्यादि विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ; उसी प्रकार गणित, भूगोल, इतिहास, विज्ञान इत्यादि कोई भी विषय दूसरे विषय के संदर्भ में एक वाक्य भी नहीं बता सकता । केवल अध्यात्म ही एकमात्र ऐसा विषय है, जो विश्व के सभी विषयों से संबंधित त्रिगुण, पंचमहाभूत तथा शक्ति भाव, चैतन्य, आनंद … Read more

शासनकर्ता ऐसा हो !

‘भगवान को देखने के लिए चश्मे की आवश्यकता नहीं और भगवान की बात सुनने के लिए कान में यंत्र लगाने की आवश्यकता नहीं; इसके लिए केवल शुद्ध अंतःकरण ही आवश्यक है । प्रजा वत्सल शासनकर्ता भी ऐसा ही होता है । उसे दुखी जनता को देखने के लिए चश्मा लगाने और जनता की समस्याएं सुनने … Read more

संसार की सभी भाषाओं में केवल संस्कृत में ही उच्चारण सर्वत्र एक समान होना

‘लिखते समय अक्षर का रूप महत्वपूर्ण होता है, उसी प्रकार उच्चारण करते समय वह महत्त्वपूर्ण होता है । संसार की सभी भाषाओं में केवल संस्कृत में ही इसे महत्व दिया गया है; इसलिए भारत में सर्वत्र वेदों का उच्चारण समान और परिणामकारक है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

धन का त्याग अधिक सुलभ !

‘धन अर्जित करने की अपेक्षा उसका त्याग करना अधिक सुलभ है, तब भी मानव वह नहीं करता, यह आश्चर्य की बात है !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

विज्ञान और बुद्धिप्रमाणवादी !

‘विज्ञान का वास्तव में अध्ययन करनेवाले ही विज्ञान की सीमाएं जानते हैं । अन्य तथाकथित बुद्धिप्रमाणवादी विज्ञान को सिर पर चढाते हैं !’ – (परात्पर गुरु)डॉ. आठवले

बुद्धिप्रमाणवादियों का अध्यात्म के विषय में हास्यास्पद अहंकार !

बुद्धिप्रमाणवादी चिकित्सा, अभियंत्रिकी इत्यादि बौद्धिक स्तर के विषयों पर आधुनिक वैद्य (डॉक्टर), अभियंता इत्यादि से वाद-विवाद नहीं करते; परंतु बुद्धि के परे के और जिसमें उनको स्वयं शून्य ज्ञान है, ऐसे अध्यात्मशास्त्र के विषय में ‘मैं सर्वज्ञ हूं’, इस विचार से संतों पर टीका-टिप्पणी करते हैं ! – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

बुद्धिप्रमाणवादी एवं संत में भेद !

‘कहां स्वेच्छा से आचरण करने को प्रोत्साहित कर मानव की अधोगति करनेवाले बुद्धिप्रमाणवादी, और कहां मानव को स्वेच्छा का त्याग करना सिखाकर ईश्वरप्राप्ति करानेवाले संत !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले