वास्तविक ‘दूरदर्शिता’ !
‘स्वयं के सुख के लिए दूसरों को दुःख देकर धन का संग्रह करना पाप है; परंतु भविष्यकाल को ध्यान में रखकर उसके लिए अपनी तैयारी उचित प्रकार से करने को ‘दूरदर्शिता’ कहते हैं ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले
‘स्वयं के सुख के लिए दूसरों को दुःख देकर धन का संग्रह करना पाप है; परंतु भविष्यकाल को ध्यान में रखकर उसके लिए अपनी तैयारी उचित प्रकार से करने को ‘दूरदर्शिता’ कहते हैं ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले
‘अपने पुत्र का आगे कैसे होगा ?’, यह चिंता उसके माता-पिता को होती है । इसके विपरीत ʻराष्ट्र के सभी लोगों को संत अपनी संतान मानते हैं । इस व्यापक भाव के कारण संत सदैव आनंदी रहते हैं ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले
‘पांच ज्ञानेंद्रियों, मन और बुद्धि से परे ज्ञान देनेवाला सूक्ष्म कुछ है, यह ज्ञात न होने से विज्ञानवादियों का शोध बच्चों के खेल समान है !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले
‘भगवान विष्णु के अवतार प्रभु श्रीराम ने रावण को युद्ध में मारा ।उसी रावण के भारत में २-३ स्थानों पर ‘रावण महाराज’ के नाम से मंदिर हैं ! इसलिए हिन्दूओं को कोई सर्वधर्मसमभाव न सिखाए !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले
‘जैसे-जैसे मानव की प्रगति होती है, वैसे-वैसे उसमें नम्रता ,सब कुछ पूछकर करने की वृत्ति इत्यादि गुण निर्माण होते हैं । आधुनिकतावादियों में पूछने की और सीखने की वृत्ति नहीं होती । इसके विपरीत ‘मुझे सब पता है । जो मुझे पता है, वही उचित है’, ऐसा अहंकार होता है । इसलिए वे आदिमानव बनने … Read more
‘पश्चिम का विज्ञान कहता है, ‘आदिमानव से अभी तक मानव ने प्रगति की है ।’ वास्तव में मानव ने प्रगति नहीं की, अपितु वह उच्चतम अधोगति की ओर जा रहा है । सत्ययुग का मानव ईश्वर से एकरूप था । त्रेता और द्वापर युग में उसकी थोडी अधोगति होती गई । अब कलियुग के आरंभ … Read more
‘अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ डॉक्टर, अधिवक्ता, लेखापाल (अकाउंटेंट) इत्यादि में से कोई भी अपने क्षेत्र के प्रश्नों के उत्तर तत्काल नहीं बता सकते । ‘प्रश्न का अध्ययन कर,जांच कर, आगे उत्तर बताता हूं’, ऐसा वे कहते हैं । इसके विपरीत संत एक ही क्षण में किसी भी प्रश्न का कार्यकारण भाव तथा उपाय बताते हैं … Read more
‘जितना हास्यास्पद एक अशिक्षित का यह कहना है कि ‘सूक्ष्म जंतु नहीं होते’; उतना ही हास्यास्पद बुद्धिप्रमाणवादियों का यह कहना है कि ‘ईश्वर नहीं होता !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले
‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर उसके समर्थक आसमान सिर पर उठा लेते हैं । वे भूल जाते हैं कि प्राणी और मानव इनमें महत्त्वपूर्ण भेद यही है कि प्राणी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अनुसार अर्थात स्वेच्छा से आचरण करते हैं; इसके विपरीत मानव व्यक्तिगत स्वतंत्रता को भूलकर, क्रमशः परिवार, समाज राष्ट्र एवं धर्म के हित का … Read more
‘जिस प्रकार दृष्टिहीन की ‘मेरे पीछे चलो’ यह बात माननेवाले उसी के पीछे गड्ढे में गिरते हैं, उसी प्रकार बुद्धिप्रमाणवादियों एवं आधुनिकतावादियों के साथ है । वे दिशाहीनता के कारण स्वयं गड्ढे में गिरते हैं और उनके साथ-साथ उनके पीछे चलनेवाले भी गिरते हैं ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले