भारत की दुर्दशा !
‘पूर्व काल में भारत का परिचय था, ‘अध्यात्मशास्त्र और संसार को साधना सिखानेवाला साधु- संतों का देश ।’ आज वही पहचान ‘राष्ट्राभिमान और धर्माभिमान रहित भ्रष्टाचारी लोगों का देश’ ऐसी बन गई है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
‘पूर्व काल में भारत का परिचय था, ‘अध्यात्मशास्त्र और संसार को साधना सिखानेवाला साधु- संतों का देश ।’ आज वही पहचान ‘राष्ट्राभिमान और धर्माभिमान रहित भ्रष्टाचारी लोगों का देश’ ऐसी बन गई है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
जिन्होंने सर्व धर्मों का अध्ययन तो क्या वे पढे भी नहीं है, वही सर्वधर्म समभाव कहते हैं । – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
‘प्रथम मुगल, आगे अंग्रेज और अब राष्ट्रप्रेम रहित विभिन्न राजनीतिक दलों के कारण देश रसातल में पहुंच गया है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
‘जैसे जो डॉक्टर नहीं है, वह रोगी पर उपचार करे, तो स्थिति दयनीय होती है । वैसे ही जिसे राष्ट्र और धर्म के प्रति प्रेम नहीं है, उस जनता को ‘राष्ट्र और धर्म के विषय में प्रेम ना रखनेवाले’ राजनीतिक दलों को चुनने का अधिकार देने के कारण, देश की सभी क्षेत्रों में दयनीय स्थिति … Read more
‘ईश्वर सर्वत्र हैं, प्रत्येक में हैं’, यह हिन्दू धर्म की शिक्षा होने के कारण हिन्दुओं को अन्य धर्मियों का द्वेष करना नहीं सिखाया जाता ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
‘स्वतंत्रता से लेकर अभी तक चुनकर आए राजनीतिक दल ‘अच्छे हैं’, इसलिए नहीं चुने गए । इसके विपरीत वह अन्य दलों की तुलना में कम बुरे हैं, इसलिए चुने गए हैं ! (अंग्रेजी में एक वाक्य है ‘The Lesser of two evils.’ जिसका अर्थ है, ‘उपलब्ध दो अनुचित विकल्पों में से न्यूनतम हानि करनेवाला विकल्प … Read more
‘कहां इंग्लैंड से आए मुट्ठीभर अंग्रेज संपूर्ण भारत पर कुछ ही वर्षों में राज्य करने लगे और कहां स्वतंत्रता के उपरांत 74 वर्ष की अवधि में विभाजित भारत पर भी राज्य न कर पानेवाले, प्रतिदिन हिंसाचार के समाचारों से युक्त अभी तक के शासनकर्त्ताओं का राज्य ! इसका एक ही उपाय है और वह है … Read more
‘उत्पत्ति स्थिति और लय’, इस सिद्धांत के अनुसार विविध संप्रदायों की स्थापना होती है और कुछ काल के उपरांत उनका लय होता है, अर्थात उनका अस्तित्त्व नहीं बचता । इसके विपरीत सनातन हिन्दू धर्म की उत्पत्ति न होने के कारण, अर्थात वह अनादि होने के कारण; वह अनंत काल तक रहता है । यह हिन्दू … Read more
‘सभी धर्मों का अध्ययन किए बिना संसार में केवल हिन्दू ही सर्वधर्म समभाव कहते हैं । अन्य किसी भी धर्म का एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं कहता । हिन्दुओं को यह ध्यान में नहीं आता कि ‘सर्वधर्म समभाव’ कहना, अज्ञान की उच्चतम सीमा है, यह ‘प्रकाश और अंधकार एक समान है’, ऐसा कहने जैसा है … Read more