मंदिरों में साधना सिखाने की आवश्यकता

‘मस्जिद और चर्च में साधना सिखाई जाती है तथा करवाकर ली जाती है । हिंदुओं के एक भी मंदिर में ऐसा न करने के कारण आज हिंदुओं की स्थिति दयनीय हो गई है ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

तन-मन-धन के त्याग का महत्त्व

‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए किसी को कुछ करने की आवश्यकता नहीं है; क्योंकि कालमहिमा के अनुसार वह होनेवाला ही है; परंतु इस कार्य में जो तन-मन-धन का त्याग कर सम्मिलित होंगे, उनकी साधना होगी और वे जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होंगे । -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

‘स्वराज्य सुराज्य न होने का कारण’

‘स्वराज्य सुराज्य नहीं होता । इसका कारण यह है कि, रज-तम प्रधान लोगों का स्वराज्य कभी सुराज्य नहीं होता । भारत ने इसका अनुभव स्वतंत्रता से लेकर अब तक के ७२ वर्षों में लिया है ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

‘धर्म त्याग सिखाता है, तो राजनीति स्वार्थ ; परिणामतः आरक्षण…

‘धर्म त्याग सिखाता है, तो राजनीति स्वार्थ ; परिणामतः आरक्षण इत्यादी प्रकार बढ़ते गए । इनका एक ही उपाय है सबको सर्वत्याग की शिक्षा देनेवाली साधना सिखाना !’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

मनुष्य को छोड़कर कोई भी प्राणी अथवा वनस्पति अवकाश नहीं…

‘मनुष्य को छोड़कर कोई भी प्राणी अथवा वनस्पति अवकाश नहीं लेता । ईश्वर भी एक सेकंड का भी अवकाश नहीं लेता । केवल मनुष्य रविवार और शनिवार को अवकाश लेता है । इतना ही नहीं, तो वर्ष में भी कई दिन अधिकार से छुट्टी लेता है । तो इस संदर्भ में मनुष्य श्रेष्ठ है अथवा … Read more

तीव्र गति से विनाश की ओर बढते हिन्दू !

”कहां अर्थ और काम पर आधारित पश्चिमी संस्कृति और कहां धर्म तथा मोक्ष पर आधारित हिन्दू संस्कृति ! हिन्दू पश्चिम का अंधानुकरण कर रहे हैं, इसलिए उनका भी विनाश की ओर मार्ग क्रमण हो रहा है!” – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

पूर्व के युगों में प्रजा सात्त्विक थी, अतः ऋषियों को…

पूर्व के युगों में प्रजा सात्त्विक थी, अतः ऋषियों को समष्टि प्रसारकार्य नहीं करना पडता था । अब कलियुग में अधिकांश लोग साधना नहीं करते, इसलिए संतों को समष्टि प्रसारकार्य करना पडता है ! -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

‘जिस प्रकार निरक्षर का कहना कि ‘सर्व भाषाओं के अक्षर…

‘जिस प्रकार निरक्षर का कहना कि ‘सर्व भाषाओं के अक्षर समान होते हैं’, उसका अज्ञान दर्शाता है, उसी प्रकार जो ‘सर्वधर्मसमभाव’ कहते हैं, वह अपना अज्ञान दर्शाते हैं । ‘सर्वधर्मसमभाव’ कहना उसी सामान है जैसे कहना कि,‘सभी औषधियां, सभी कानून समान हैं ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

व्यक्तिगत जीवन के लिए अधिक पैसे मिलते हैं; इसलिए सभी…

‘व्यक्तिगत जीवन के लिए अधिक पैसे मिलते हैं; इसलिए सभी लोग आनंद से अधिक समय (ओवर टाइम) काम करते हैं; परंतु राष्ट्र और धर्म के लिए एक घंटा सेवा करने हेतु कोई तैयार नहीं होता !’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

हिन्दुओ, राजनैतिक नहीं, अपितु धर्मसंस्थापना की विजय हेतु सीमोल्लंघन करें !

‘विजयादशमी का त्योहार शत्रु के राज्य में जाकर विजय हेतु सीमोल्लंघन करने की सनातन परंपरा बतानेवाला त्योहार है । यह दिन महिषासुर का वध करनेवाली श्री दुर्गादेवी और कौरवों का अकेले पराभव करनेवाले अज्ञातवासी अर्जुन का संस्मरण करने का दिन है । वर्तमान में विजयादशमी के दिन सीमोल्लंघन कर्मकांड के रूप में किया जाता है … Read more