तथाकथित सर्वधर्म समभाव !

‘बाल मंदिर में पढनेवाला बच्चा और स्नातकोत्तर शिक्षा लेनेवाला युवक, इन दोनों की शिक्षा समान है ; ऐसा हम नहीं कह सकते। ऐसी ही स्थिति अन्य तथाकथित धर्म एवं हिन्दू धर्म के बीच भी है, तब भी ‘सर्वधर्म समभाव’ की घोषणा करना, इससे बडा अज्ञान कोई नहीं । यह बात विभिन्न पन्थों का अध्ययन करने … Read more

विविध विषयों के विशेषज्ञ एवं संत

‘व्यावहारिक जीवन में आंखों के विशेषज्ञ को आंखों के रोग होते हैं । हृदय- विशेषज्ञ को हृदय का विकार होता है। मनोचिकित्सक को मानसिक विकार होते पाए जाते हैं; परंतु अध्यात्म में संतों को अन्यों के आध्यात्मिक कष्ट दूर करने पर आध्यात्मिक कष्ट नहीं होते । कुछ संतों को शारीरिक कष्ट हो रहे हों, तब … Read more

धर्म में बताई गई आश्रमप्रणाली का अर्थ !

‘हिन्दू धर्म में ‘वर्णाश्रम’, अर्थात वर्ण तथा आश्रम यह जीवनपद्धति बताई गई है । उनमें से वर्ण अर्थात जाति नहीं, अपितु साधना का मार्ग । आश्रम चार हैं – १. ब्रह्मचर्याश्रम, २. गृहस्थाश्रम, ३. वाणप्रस्थाश्रम तथा ४. सन्यासाश्रम । जिनके अर्थ क्रमशः इस प्रकार हैं – १. ब्रह्मचर्यपालन, २. गृहस्थजीवन का पालन, ३. गृहस्थाश्रम का … Read more

अत्यंत दयनीय हो चुकी हिन्दुओं की स्थिति !

‘धर्मशिक्षा के अभाववश तथा बुद्धिप्रमाणवादियों द्वारा निर्मित संदेह के कारण हिन्दुओं को हिन्दू धर्म की अद्वितीयता ज्ञात नहीं । इस कारण उनमें धर्माभिमान नहीं । परिणामस्वरूप उनकी स्थिति संसार के अन्य पंथियों की अपेक्षा आज अधिक दयनीय हो चुकी है !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

बुद्धिप्रमाणवादी और अंधश्रद्धा

‘जिस प्रकार जन्म से दृष्टिहीन कोई व्यक्ति कहे, ‘देखना, दृष्टि, ऐसा कुछ होता है’, यह मानना अंधश्रद्धा है’; उसी प्रकार बुद्धिप्रमाणवादी कहते हैं, ‘सूक्ष्म दृष्टि जैसा कुछ है’, यह मानना अंधश्रद्धा है !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

संपूर्ण सृष्टि के कर्ता-करावनहार भगवान का ही अस्तित्व नकारनेवाले बुद्धिप्रमाणवादी !

‘कर्ता द्वारा बनाई गई वस्तु कभी भी कर्ता से श्रेष्ठ नहीं हो सकती, उदा. बढई द्वारा बनाई गई कुर्सी कभी भी बढई से श्रेष्ठ नहीं हो सकती । ऐसा होते हुए भी भगवान ही द्वारा निर्मित कुछ मनुष्य संपूर्ण सृष्टि के कर्ता-करावनहार भगवान के ही अस्तित्व को नकार कर उन्हें तुच्छ घोषित करने का प्रयास … Read more

अहंकारी बुद्धिप्रमाणवादी !

‘बुद्धिप्रमाणवादियों को यह अहंकार होता है कि ‘मुझे सब ज्ञात है ।’ फलस्वरूप कुछ जानने की जिज्ञासा न होने के कारण बुद्धि के परे का अध्यात्मशास्त्र उन्हें बिलकुल ज्ञात नहीं होता । तब भी वे अध्यात्म के अधिकारी संतों पर भी टीका करने से नहीं चूकते !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

राष्ट्रविरोधी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के समर्थक !

‘व्यक्ति की अपेक्षा समाज और समाज की अपेक्षा राष्ट्र अधिक महत्त्वपूर्ण है, यह न समझनेवाले व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थन करनेवाले देश को विनाश की ओर ले जा रहे हैं !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

तृतीय विश्वयुद्ध के काल में स्वयं को बचाने के लिए अभी से साधना करें !

‘कोई भी राजनीतिक दल तृतीय विश्वयुद्ध के समय हिन्दुओं की रक्षा नहीं कर पाएगा; क्योंकि उनके पास आध्यात्मिक बल नहीं है । उस काल में स्वयं को बचाने के लिए अभी से साधना करें !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

बुद्धिप्रमाणवाद न होने के लाभ

‘आदि शंकराचार्य तथा समर्थ रामदास स्वामी के समय बुद्धिप्रमाणवादी नहीं थे, यह अच्छा हुआ ,अन्यथा वे बच्चों द्वारा घर-परिवार छोडकर आश्रम में जाकर साधना करने का विरोध करते और संसार उनके अनुपम ज्ञान से सदा के लिए वंचित रह जाता ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले