ईश्वरप्राप्ति पूर्णकालीन साधना है !

‘ईश्वरप्राप्ति आधे समय का काम (पार्ट टाइम जॉब) नहीं है; अपितु पूर्णकालीन साधना है । इसलिए हमारी प्रत्येक कृति हमें भक्तिभाव से करनी चाहिए ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले

संतों ने ही भारत का मान बनाए रखा !

भारत की स्वतंत्रता से लेकर ७५ वर्ष भारत पर राज्य करनेवाली अभी तक की सरकारों ने नहीं, अपितु संतों ने ही संसार में भारत का मान बनाए रखा है । – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

भारतीयो, साधना का महत्त्व समझो !

‘आजकल पश्चिमी देशों में अधिकांशतः लडने के लिए कोई अपना चाहिए; इसलिए विवाह करते हैं । आगे लडाई-झगडे से ऊब जाने पर संबंध विच्छेद करते हैं । पुनः विवाह करते हैं और पुनः संबंध विच्छेद करते हैं । यह चक्र जारी रहता है । हमारे यहां ऐसी स्थिति न हो, इसके लिए साधना करें !’ … Read more

हिन्दू राष्ट्र की आवश्यकता समझें !

‘भ्रष्टाचार, बलात्कार, बुद्धिप्रमाणवाद, अनैतिकता, गुंडागिरी, देशद्रोह, धर्मद्रोह इत्यादि वर्तमान में जो इतना बढ गया है, उसका कारण हैं, स्वतंत्रता से लेकर अभी तक, ७५ वर्ष ,जनता को साधना, नैतिकता इत्यादि न सिखानेवाली अभी तक की सरकारें । इसी से हिन्दू राष्ट्र की अपरिहार्यता समझ में आती है !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

हिन्दू राष्ट्र की अपरिहार्यता समझें !

‘एक कपाटिका में (अलमारी में) कितना सामान रह सकता है, इसका विचार सामान्य व्यक्ति करता है ; परंतु देश में कितने करोड व्यक्ति सुख से रह सकते हैं, उन्हें पर्याप्त अन्न-जल मिल सकता है, इसका विचार न करने वाली अभी तक की सरकारों के कारण देश की जनसंख्या जो स्वतंत्रता के समय ३५ करोड थी, … Read more

आगामी पीढियों के कल्याण हेतु हिन्दू राष्ट्र आवश्यक है !

‘आधुनिकतावादी एवं बुद्धिप्रमाण वादी आगे ‘विवाहित स्त्रियां मंगलसूत्र न पहनें, कुमकुम न लगाएं, गौरी पूजन अथवा वट सावित्री का व्रत न करें’, इत्यादि फतवे निकालने लगें, तो आश्चर्य नहीं होगा ! इसलिए आगे की पीढियों के कल्याण हेतु हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करें !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

आदिमानव बनने की ओर बढते आधुनिकतावादी !

‘जैसे-जैसे मानव की प्रगति होती है, वैसे-वैसे उसमें नम्रता ,सब कुछ पूछकर करने की वृत्ति इत्यादि गुण निर्माण होते हैं । आधुनिकतावादियों में पूछने की और सीखने की वृत्ति नहीं होती । इसके विपरीत ‘मुझे सब पता है । जो मुझे पता है, वही उचित है’, ऐसा अहंकार होता है । इसलिए वे आदिमानव बनने … Read more

मानव की प्रगति किसे कहते हैं यह भी विज्ञान को ज्ञात नहीं !

‘पश्चिम का विज्ञान कहता है, ‘आदिमानव से अभी तक मानव ने प्रगति की है ।’ वास्तव में मानव ने प्रगति नहीं की, अपितु वह उच्चतम अधोगति की ओर जा रहा है । सत्ययुग का मानव ईश्वर से एकरूप था । त्रेता और द्वापर युग में उसकी थोडी अधोगति होती गई । अब कलियुग के आरंभ … Read more

कहां विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ और कहां संत !

‘अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ डॉक्टर, अधिवक्ता, लेखापाल (अकाउंटेंट) इत्यादि में से कोई भी अपने क्षेत्र के प्रश्नों के उत्तर तत्काल नहीं बता सकते । ‘प्रश्न का अध्ययन कर,जांच कर, आगे उत्तर बताता हूं’, ऐसा वे कहते हैं । इसके विपरीत संत एक ही क्षण में किसी भी प्रश्न का कार्यकारण भाव तथा उपाय बताते हैं … Read more