केवल उपरी उपाय नहीं, अपितु समस्या के मूलपर ही उपाय किए जाने चाहिएं, यह भी समझ में न आनेवाला शासन !

काले धनपर उपाय के रूप में ५०० एवं १००० रुपए के नोटोंपर प्रतिबंध लगाने का अर्थ फेफडे के क्षयरोग से ग्रस्त रोगी को केवल खांसी की औषधि देना ! यदि जनता को साधना सीखाकर सात्त्विक बनाया गया, तो सभी प्रकार की व्यक्तिगत एवं राष्ट्रीय समस्याएं दूर होंगी, यह भी शासन की ध्यान में कैसे नहीं … Read more

ईश्‍वर को प्रसन्न कर उनके आशीर्वाद से चुनाव जीता गया, तो केवल जनता को ही नहीं, अपितु प्राणिमात्रों को भी वास्तविकरूप में सुखी बनाना संभव होगा ।

जनता को पैसे देकर अथवा उसको झूठे आश्‍वासन देकर चुनाव जीतने की अपेक्षा ईश्‍वर को प्रसन्न कर उनके आशीर्वाद से चुनाव जीता गया, तो केवल जनता को ही नहीं, अपितु प्राणिमात्रों को भी वास्तविकरूप में सुखी बनाना संभव होगा ।

साधना एवं हिन्दू धर्म की शिक्षा ग्रहण करने हेतु पूरे विश्व के जिज्ञासु एवं साधक भारत में आते हैं

हिन्दू धर्म का मूल्य न जाननेवाले भारत के हिन्दू उच्च शिक्षा हेतु अमेरिका को प्रयाण करते हैं । उसी प्रकार साधना एवं हिन्दू धर्म की शिक्षा ग्रहण करने हेतु पूरे विश्व के जिज्ञासु एवं साधक भारत में आते हैं । ऐसा होते हुए भी भारत के हिन्दुओं को हिन्दू धर्म का मूल्य नहीं है ।

साधना न करनेवालों एवं बुद्धिवादियों को सूक्ष्म विश्व दिखाई नहीं देता

जिस प्रकार अंधों को स्थूल विश्व दिखाई नहीं देता, उसी प्रकार साधना न करनेवालों एवं बुद्धिवादियों को सूक्ष्म विश्व दिखाई नहीं देता । विश्व दिखाई नहीं देता, इस बात को अंधे स्वीकार करते हैें; परंतु बुद्धवादी अहंकार से कहते हैं कि, सूक्ष्म विश्व ऐसा कुछ नहीं होता !

क्षयरोग में केवल खांसी की औषधि देने जैसे उपरी उपाय भ्रष्टाचार के संदर्भ में भी करनेवाला शासन !

सर्वत्र व्याप्त भ्रष्टाचार एवं अनैतिकता क्या केवल नोटबंदी कर रुकनेवाली है क्या ? उसके मूलतक जाने का अर्थ है नैतिकता एवं साधना सिखाना । एेसा करने से सर्वत्र व्याप्त आर्थिक अराजक मूल से बंद हो जाएगा ।

ब्रह्मांड में व्याप्त प्राणिमात्रों के कल्याण की चिंता करनेवाले ईश्‍वर

कहां केवल अपने परिजन अथवा अपनी जातिबंधुआें के हित को देखनेवाले संकीर्ण वृत्ति का मनुष्य, तो कहां अनंक कोटि ब्रह्मांड में व्याप्त प्राणिमात्रों के कल्याण की चिंता करनेवाले ईश्‍वर !

बाल्यावस्था जैसी पाश्‍चात्त्य शिक्षा !

पाश्‍चात्त्यों द्वारा दी जानेवाली सभी शिक्षा बाल्यावस्था जैसी है । यहां उसके केवल ३ उदाहरण दिए गए हैं, अपितु प्रत्येक क्षेत्र में यही बात है । १. आधुनिक वैद्यों को रोगी की प्रकृति वात, पित्त अथवा कफप्रधान है, यह ज्ञात नहीं होता । अतः वो सभी प्रकृतिवाले रोगियों को एक जैसी ही औषधियां देते हैं … Read more

अध्यात्म का महत्त्व न जाननेवाले राज्यकर्ताआें के कारण देश का विनाश हुआ है !

अध्यात्म को छोडकर कोई भी विषय सात्त्विक, सज्जन, धर्मप्रेमी एवं राष्ट्रप्रेमी कैसे होना है, यह सिखाता है क्या ? ऐसा न होते हुए भी स्वतंत्रता के पश्‍चात के ७० वर्षों की अवधि में राज्य करनेवाले सर्वदलीय राज्यकर्ताआें ने अध्यात्म को छोडकर अन्य सभी विषयों को सिखाकर इस देश का विनाश किया है ।

हिन्दू राष्ट्र में साधना कैसे की जाती है ?

हिन्दू राष्ट्र में स्थित विद्यालयों में भूगोल, गणित, रसायनशास्त्र इत्यादि जीवन के लिए निरूपयोगी विषयों की अपेक्षा बच्चे सात्त्विक कैसे होंगे, अर्थात साधना कैसे की जाती है ?, इसकी शिक्षा दी जाएगी । उससे रामराज्य की भांति भ्रष्टाचार, बलात्कार, गुंडागर्दी, हत्याआें की संभावना ही न होने से पुलिसकर्मियों की आवश्यकता ही नहीं रहेगी !