संत सदैव आनंदी होते हैं !

अपने बच्चे का आगे क्या होगा ?, ऐसी चिंता उसके मां-बाप को होती है । इसके विपरीत राष्ट्र के सभी अपने बच्चे ही हैं, ऐसे व्यापक भाव के कारण संत सदैव आनंदी होते हैं । -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

बुद्धि से अध्ययन करने पर, उसकी गहराई समझ में नहीं आतीं

सागर को केवल देखने अथवा उसके विषय में बुद्धि से अध्ययन करने पर, उसकी गहराई एवं वहां की बातें समझ में नहीं आतीं । उसी प्रकार, स्थूल विषय का बुद्धि से अध्ययन करने पर, उसमें विद्यमान सूक्ष्म आध्यात्मिक जगत् समझ में नहीं आता । – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

भक्तिमार्ग में व्याप्त व्यष्टि एवं समष्टि साधना

१. व्यष्टि साधना : यह व्यक्तिगत जीवन से संबंधित होती है । इस साधनामार्ग में धार्मिक विधि, पूजा-अर्चना, पोथीपठन, नामजप, मंत्रजप, भाव की स्थिति में रहना इत्यादी साधनाएं होती हैं । २. समष्टि साधना : यह साधना समष्टि अर्थात समाजजीवन से संबंधित होती है । कालमहिमानुसार समाजपर जो अनिष्ट परिणाम होनेेवाले होते हैं, उनकी तीव्रता … Read more

अध्यात्म में किसी भी प्रश्‍न का उत्तर तत्काल ज्ञात होता है ।

विज्ञान को जानकारी को एकत्रित कर किसी प्रश्‍न का उत्तर ढूंढना पडता है । इसके विपरीत अध्यात्म में जानकारी एकत्रित नहीं करनी पडती । इसमें किसी भी प्रश्‍न का उत्तर तत्काल ज्ञात होता है । -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

सूक्ष्म में व्याप्त अनिष्ट शक्तियों को नष्ट करने हेतु साधना की आवश्यकता !

कोई मनुष्य चाहे कितना भी बलवान हो अथवा उसके पास शस्त्र हों, तो भी उसे कीटाणुनाशक औषधियां लेनी पडती हैं; क्योंकि यह कीटाणु सूक्ष्म होते हैं । उसी प्रकार से अनिष्ट शक्तियों को नष्ट करने हेतु साधना करनी पडती है । पाश्‍चात्त्यों को केवल कीटाणु ज्ञात हुए, तो हमारे संत एवं ऋषियों को सूक्ष्मातिसूक्ष्म विश्‍व … Read more

संतों के दर्शन से कुछ अच्छा लगना अथवा कुछ भी न लगना

किसी संत के पास जानेपर कुछ लोगों को अच्छा लगता है अथवा उनमें भाव जागृत होता है, तो कुछ लोगों को कुछ भी नहीं लगता । उसमें से कुछ लोगों को कुछ भी न लगने से बुरा लगता है । अनुभूति प्राप्त होना अथवा न प्राप्त होने के कारण निम्न प्रकार से हैं – १. … Read more

साधना में शिष्य अपने सर्वस्व का त्याग कर लेनेवाले गुरु की सेवा करता है !

नित्य जीवन में जहां अधिक वेतन मिलता है, वहां व्यक्ति नौकरी करता है । इसके विपरीत साधना में शिष्य अपने सर्वस्व का त्याग कर लेनेवाले गुरु की सेवा करता है ! -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

केवल उपरी उपाय नहीं, अपितु समस्या के मूलपर ही उपाय किए जाने चाहिएं, यह भी समझ में न आनेवाला शासन !

काले धनपर उपाय के रूप में ५०० एवं १००० रुपए के नोटोंपर प्रतिबंध लगाने का अर्थ फेफडे के क्षयरोग से ग्रस्त रोगी को केवल खांसी की औषधि देना ! यदि जनता को साधना सीखाकर सात्त्विक बनाया गया, तो सभी प्रकार की व्यक्तिगत एवं राष्ट्रीय समस्याएं दूर होंगी, यह भी शासन की ध्यान में कैसे नहीं … Read more

ईश्‍वर को प्रसन्न कर उनके आशीर्वाद से चुनाव जीता गया, तो केवल जनता को ही नहीं, अपितु प्राणिमात्रों को भी वास्तविकरूप में सुखी बनाना संभव होगा ।

जनता को पैसे देकर अथवा उसको झूठे आश्‍वासन देकर चुनाव जीतने की अपेक्षा ईश्‍वर को प्रसन्न कर उनके आशीर्वाद से चुनाव जीता गया, तो केवल जनता को ही नहीं, अपितु प्राणिमात्रों को भी वास्तविकरूप में सुखी बनाना संभव होगा ।