संत जन्म-मृत्यु के फेरे से मुक्त करते हैं !
डॉक्टर केवल अस्वस्थता को न्यून करते हैं; परंतु मृत्यु को नहीं टाल सकते । इसके विपरीत संत जन्म-मृत्यु के फेरे से मुक्त करते हैं ! – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
डॉक्टर केवल अस्वस्थता को न्यून करते हैं; परंतु मृत्यु को नहीं टाल सकते । इसके विपरीत संत जन्म-मृत्यु के फेरे से मुक्त करते हैं ! – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
भारत में हिन्दू राष्ट्र की अर्थात सनातन धर्मराज्य की पुनर्स्थापना करने हेतु समय के अनुसार प्रयास करना भी एक प्रकार से समष्टि गुरुकार्य ही है । आज के दिन धर्मनिरपेक्षतावादी, वामपंथी, बुद्धीजीवी एवं अहिन्दू राजनेता हिन्दू राष्ट्र इस शब्द का ही विरोध कर रहे हैं । अध्यात्म का अध्ययन न होने से उनको काल की … Read more
अपने बच्चे का आगे क्या होगा ?, ऐसी चिंता उसके मां-बाप को होती है । इसके विपरीत राष्ट्र के सभी अपने बच्चे ही हैं, ऐसे व्यापक भाव के कारण संत सदैव आनंदी होते हैं । -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
सागर को केवल देखने अथवा उसके विषय में बुद्धि से अध्ययन करने पर, उसकी गहराई एवं वहां की बातें समझ में नहीं आतीं । उसी प्रकार, स्थूल विषय का बुद्धि से अध्ययन करने पर, उसमें विद्यमान सूक्ष्म आध्यात्मिक जगत् समझ में नहीं आता । – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
१. व्यष्टि साधना : यह व्यक्तिगत जीवन से संबंधित होती है । इस साधनामार्ग में धार्मिक विधि, पूजा-अर्चना, पोथीपठन, नामजप, मंत्रजप, भाव की स्थिति में रहना इत्यादी साधनाएं होती हैं । २. समष्टि साधना : यह साधना समष्टि अर्थात समाजजीवन से संबंधित होती है । कालमहिमानुसार समाजपर जो अनिष्ट परिणाम होनेेवाले होते हैं, उनकी तीव्रता … Read more
विज्ञान को जानकारी को एकत्रित कर किसी प्रश्न का उत्तर ढूंढना पडता है । इसके विपरीत अध्यात्म में जानकारी एकत्रित नहीं करनी पडती । इसमें किसी भी प्रश्न का उत्तर तत्काल ज्ञात होता है । -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
कोई मनुष्य चाहे कितना भी बलवान हो अथवा उसके पास शस्त्र हों, तो भी उसे कीटाणुनाशक औषधियां लेनी पडती हैं; क्योंकि यह कीटाणु सूक्ष्म होते हैं । उसी प्रकार से अनिष्ट शक्तियों को नष्ट करने हेतु साधना करनी पडती है । पाश्चात्त्यों को केवल कीटाणु ज्ञात हुए, तो हमारे संत एवं ऋषियों को सूक्ष्मातिसूक्ष्म विश्व … Read more
कलियुग के मनुष्यों द्वारा नहीं, अपितु ईश्वर द्वारा अपना चुनाव हो, ऐसी साधकों की इच्छा होती है । – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
किसी संत के पास जानेपर कुछ लोगों को अच्छा लगता है अथवा उनमें भाव जागृत होता है, तो कुछ लोगों को कुछ भी नहीं लगता । उसमें से कुछ लोगों को कुछ भी न लगने से बुरा लगता है । अनुभूति प्राप्त होना अथवा न प्राप्त होने के कारण निम्न प्रकार से हैं – १. … Read more
नित्य जीवन में जहां अधिक वेतन मिलता है, वहां व्यक्ति नौकरी करता है । इसके विपरीत साधना में शिष्य अपने सर्वस्व का त्याग कर लेनेवाले गुरु की सेवा करता है ! -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले