कौन सा जप करना चाहिए ?

‘व्यष्टि साधना के लिए कुलदेवता का(अर्थात कुलदेव एवं कुलदेवी दोनों ही रहने पर कुलदेवी का एवं उन में एक रहने पर देवी अथवा देवता का), वह भी ज्ञात न रहने पर ‘श्री कुलदेवतायै नमः ।’, ऐसा नामजप करें । गुरुमंत्र मिला, तो उसका नामजप करें । समष्टि के लिए अर्थात ‘हिन्दू राष्ट्र’ स्थापित करने हेतु … Read more

‘कहां है आप का भगवान ?’, ऐसा कहनेवाले उचित भाष्य करते हैं..

‘कहां है आप का भगवान ?’, ऐसा कहनेवाले उचित भाष्य करते हैं; क्योंकि मृत्यु के पश्चात वे एक तो भगवान के, अन्यथा असुर के घर अथवा पाताल अथवा नरक में जाते हैं । इसलिए उन्हें ईश्वर कभी नहीं मिलता । -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

अध्यात्म में आयु का नहीं, अपितु आध्यात्मिक स्तर का महत्त्व होता है !

‘व्यावहारिक जीवन में हमसे अधिक आयु के व्यक्ति को हम नमस्कार करते हैं । इसके विपरीत अध्यात्म में आयु का नहीं, अपितु आध्यात्मिक स्तर का महत्त्व होता है ! छोटी आयु के संतों को भी बडे व्यक्ति सम्मान के साथ नमस्कार करते हैं ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

भाजपा शासन को यह बात ध्यान में रखना आवश्यक है कि महाविद्यालय में रामायण, महाभारत तथा गीता पढाने के साथ ही छात्रों द्वारा साधना भी करवाना आवश्यक

‘१०.९.२०१५ को केंद्र के भाजपा शासन के सांस्कृतिक राज्यमंत्री महेश शर्मा ने यह वक्तव्य दिया कि, ‘‘महाविद्यालय में रामायण, महाभारत तथा गीता पढाएंगे !’’ किंतु उन्हें यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि ये विषय केवल तात्त्विकदृष्टि से पढाने की अपेक्षा छात्रों द्वारा जिस प्रकार कसरत (व्यायाम) करवाते हैं, उसी प्रकार साधना भी करवाना आवश्यक … Read more

‘विज्ञान केवल स्थूल पंचज्ञानेंद्रियों के संदर्भ में ही संशोधन करता…

‘विज्ञान केवल स्थूल पंचज्ञानेंद्रियों के संदर्भ में ही संशोधन करता है, किंतु अध्यात्म केवल स्थूल एवं सूक्ष्म ही नहीं, अपितु सूक्ष्मतर एवं सूक्ष्मतम का भी विचार करता है !’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

‘राजनेता तथा आरक्षणकर्ता स्वार्थ सिखाते हैं, तो गुरु केवल स्वार्थत्याग…

‘राजनेता तथा आरक्षणकर्ता स्वार्थ सिखाते हैं, तो गुरु केवल स्वार्थत्याग ही नहीं, अपितु सर्वस्व का त्याग करना सिखाते हैं !’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

भक्तियोग में होनेवाली समष्टि साधना !

अत्यधिक लोगों को ऐसा प्रतीत होता है कि, भक्तियोग में केवल व्यष्टि साधना होती है । परंतु प्रत्यक्ष में वैसा नहीं है, अपितु भक्त की ओर अन्य लोग आकर्षित होते हैं एवं उनके मार्गदर्शनानुसार साधना करने लगते हैं । इसलिए उनकी समष्टि साधना भी होती है । – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन काे कलियुग में प्राधान्य रहेगा !

स्वभावदोष एवं अहं का निर्मूलन करने पर किसी भी साधनामार्ग से साधना कर शीघ्र उन्नति करना संभव होता है । पूर्व के युग में स्वभावदोष एवं अहं का प्रमाण अधिक न होने से स्वभावदोष एवं अहं का निर्मूलन करने की आवश्यकता नहीं थी, वे अपने आप नष्ट होते थे । – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत … Read more

संत जन्म-मृत्यु के फेरे से मुक्त करते हैं !

डॉक्टर केवल अस्वस्थता को न्यून करते हैं; परंतु मृत्यु को नहीं टाल सकते । इसके विपरीत संत जन्म-मृत्यु के फेरे से मुक्त करते हैं ! – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

गुरुपूर्णिमा : हिन्दुओ, भविष्य के भीषण समय में जीवित रहने हेतु संत एवं गुुरुदेवजी के मार्गदर्शन में साधना कीजिए !

भारत में हिन्दू राष्ट्र की अर्थात सनातन धर्मराज्य की पुनर्स्थापना करने हेतु समय के अनुसार प्रयास करना भी एक प्रकार से समष्टि गुरुकार्य ही है । आज के दिन धर्मनिरपेक्षतावादी, वामपंथी, बुद्धीजीवी एवं अहिन्दू राजनेता हिन्दू राष्ट्र इस शब्द का ही विरोध कर रहे हैं । अध्यात्म का अध्ययन न होने से उनको काल की … Read more