‘प्रत्येक पीढ़ी का कर्तव्य !’

‘प्रत्येक पीढ़ी अगली पीढ़ी की ओर समाज, राष्ट्र और धर्म के संदर्भ में अपेक्षा से देखती है । इसके स्थान पर प्रत्येक पीढ़ी ने ‘हम क्या कर सकते हैं ?’, ऐसा विचार कर ऐसे कार्य करने चाहिए जिससे, अगली पीढ़ी को इस संदर्भ में कुछ भी करने की आवश्यकता न रहे और वह अपना सारा … Read more

कहां कुछ ही वर्षों में विस्मरण हो जानेवाले माया के विषय, तो कहां युगोंयुगों तक अभ्यास किए जाने वाले अध्यात्म के ग्रंथ !’

‘माया के विषय शीघ्र ही विस्मरण हो जाते हैं । इस कारण पहला और दूसरा महायुद्ध ही नहीं अपितु नोबल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिकों के भी नाम 25-50 वर्षों में किसी को ज्ञात नहीं रहते । इसके विपरीत अध्यात्म अन्तर्गत इतिहास और ग्रंथ युगोंयुगों तक मानव को स्मरण रहते हैं; कारण वह मार्गदर्शन करते हैं !’ … Read more

अध्यात्मसंबंधी वेद-उपनिषद इत्यादि ग्रंथों का महत्त्व

‘युद्ध तात्कालिक समाचार होता है । आगे ५० – ६० वर्षों में बडे बडे युद्धों के इतिहास का भी विस्मरण हो जाता है , उदा. पहला एवं दूसरा महायुद्ध और इनसे पूर्व हुए सभी युद्ध भी । इसके विपरीत अध्यात्मसंबंधी वेद-उपनिषद इत्यादि ग्रंथ चिरकाल से टिके हुए हैं ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

‘साधना करने से कुण्डलिनी शक्ति जागृत होती है । यह…

‘साधना करने से कुण्डलिनी शक्ति जागृत होती है । यह अबतक के युगों में लाखों साधकों ने अनुभव किया है; पर जिन्हें साधना पर विश्वास ही नहीं है ऐसे बुद्धिवादी साधना न करते हुए भी बोलते हैं कि, ‘ कुण्डलिनी दिखाओ, नहीं तो वह नहीं है ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

क्षात्रतेज की अपेक्षा साधना में ब्राह्मतेज का महत्व है !

‘ किसी सात्विक राजा का चरित्र पढ़कर थोड़े समय के लिए उत्साह लगता है; पर ऋषिमुनियों के चरित्र और उनका दिया ज्ञान पढ़कर अधिक समय तक उत्साह लगता है और साधना को दिशा मिलती है !’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

विज्ञान को अधिकतर कुछ ज्ञात न होने के कारण किसी…

‘विज्ञान को अधिकतर कुछ ज्ञात न होने के कारण किसी सिद्धांत को सिद्ध करने के लिए शोध करना पड़ता है । इसके विपरीत अध्यात्म में सर्व ज्ञान होने के कारण वैसा नहीं करना पड़ता । अध्यात्म में संशोधन इस वैज्ञानिक युग में वर्तमान पीढ़ी का अध्यात्म पर विश्वास बिठाने और उसे अध्यात्म की ओर अग्रसर … Read more

कीर्तनकार और प्रवचनकार तात्विक जानकारी बताते हैं, पर सच्चे…

‘ कीर्तनकार और प्रवचनकार तात्विक जानकारी बताते हैं, पर सच्चे गुरु प्रायोगिक स्तर पर कृति करवा कर शिष्य की प्रगति करवाते हैं।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

युगों युगों से संस्कृत व्याकरण वैसी ही है ।…

‘ युगों युगों से संस्कृत व्याकरण वैसी ही है । इसका कारण वह पहले से ही परिपूर्ण है । इसके विपरीत संसार की सभी भाषाओं के व्याकरण में परिवर्तन होता है ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

ईश्वरप्राप्ति के लिए तन-मन-धन का त्याग करना पड़ता है ।…

‘ईश्वरप्राप्ति के लिए तन-मन-धन का त्याग करना पड़ता है । इसलिए धनप्राप्ति के लिए जीवन व्यर्थ करने की अपेक्षा सेवा करके धन के साथ तन और मन का भी त्याग किया, तो ईश्वरप्राप्ति शीघ्र होती है ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

’माया में शिक्षा तन मन धन का उपयोग कर धन…

‘माया में शिक्षा तन मन धन का उपयोग कर धन प्राप्ति करना सिखाती है, पर साधना में तन मन धन का त्याग कर ईश्वर प्राप्ति करना सिखाते हैं।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले