‘हिन्दू (ईश्वरीय) राष्ट्र की शिक्षा प्रणाली में प्रत्येक विषय के अध्ययन साथ ही ‘ईश्वरप्राप्ति करना भी सिखाया जाएगा ।’

‘कुछ लोग प्रश्न करते हैं कि हिन्दू (ईश्‍वरीय) राष्ट्र की शिक्षा प्रणाली कैसी होगी ?’, उसका उत्तर है , ‘नालंदा और तक्षशिला विश्वविद्यालयों में जिस प्रकार १४ विद्या और ६४ कला सिखाते थे, उस प्रकार की शिक्षा दी जाएगी; परंतु उन माध्यमों से ईश्‍वरप्राप्ति करना भी सिखाया जाएगा ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

हिन्दू राष्ट्र की स्थापना होने के लिए हमें भक्त बनना आवश्यक है !

‘श्रीराम स्वयं ईश्‍वर का अवतार थे । पांडवों के समय पूर्णावतार श्रीकृष्ण थे । छत्रपति शिवाजी महाराजजी के समय समर्थ रामदासस्वामी थे । इससे यह ध्यान में आएगा कि ईश्‍वरीय राज्य की स्थापना ईश्‍वर स्वयं करते हैं अथवा संतों से करवा लेते हैं । अब हिन्दू राष्ट्र की स्थापना ईश्‍वर करें अथवा संतों द्वारा करवा … Read more

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘हमारी पीढी ने वर्ष १९७० तक सात्त्विकता का अनुभव किया; अगली पीढ़ियों ने वर्ष २०१८ तक उसका अनुभव अल्प मात्रा में किया परंतु वर्ष २०२३ तक अनुभव नहीं करेंगे । उसके पश्चात की पीढ़ियां हिन्दू राष्ट्र में भारत में पुनः सात्त्विकता का अनुभव करेंगी !’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

पाश्चात्य शिक्षा की सीमा ।

‘पाश्चात्य शिक्षा किसी भी समस्या के मूल कारण तक नहीं जाती, उदा. प्रारब्ध, बुरी शक्ति, कालमहात्म्य । उनके उपाय उसी प्रकार हैं जैसे किसी क्षयरोगी को क्षयरोग के कीटाणु मारने की औषधि न देकर केवल खांसी की औषधि देना । -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

परमात्मा से एकरूपता ।

‘एक बूंद पानी समुद्र में डालने पर, वह समुद्र से एकरूप हो जाता है । वैसे ही राष्ट्रभक्त राष्ट्र से एकरूप हो जाता है और साधक परमात्मा से एकरूप होता है ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

ईश्वर के राज्य का कल्पनातीतपन ।

”अनेक गुन्हा करके आत्महत्या करनेवाले को सरकार कैसे सजा देगी ? केवल ईश्‍वर दे सकते हैं । इससे ध्यान में आता है कि ईश्‍वर का राज्य कितना कल्पनातीत है । इसलिए ईश्वरीय राज्य की स्थापना हेतु प्रयत्नरत रहें । -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

हिंदुओं की और भारत की दयनीय स्थिति होने का कारण 

‘मंदिरों में देवता के कर्मचारी दर्शनार्थियों को दर्शन देने के अतिरिक्त और क्या करते हैं ? उन्होंने दर्शनार्थियों को धर्मशिक्षा दी होती, उन्हें साधना सिखाई होती, तो हिंदुओं की और भारत की ऐसी दयनीय स्थिति नहीं हुई होती ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

ईश्वर की प्राप्ति के लिए जीवन समर्पण !

‘नौकरी में थोडे से वेतन के लिए ७ – ८ घंटे नौकरी करनी पड़ती है, तो सर्वज्ञ, सर्वव्यापी और सर्व सामर्थ्यवान ईश्‍वर की प्राप्ति के लिए क्या जीवन नहीं देना चाहिए ?’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

मंदिरों में साधना सिखाने की आवश्यकता

‘मस्जिद और चर्च में साधना सिखाई जाती है तथा करवाकर ली जाती है । हिंदुओं के एक भी मंदिर में ऐसा न करने के कारण आज हिंदुओं की स्थिति दयनीय हो गई है ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

तन-मन-धन के त्याग का महत्त्व

‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए किसी को कुछ करने की आवश्यकता नहीं है; क्योंकि कालमहिमा के अनुसार वह होनेवाला ही है; परंतु इस कार्य में जो तन-मन-धन का त्याग कर सम्मिलित होंगे, उनकी साधना होगी और वे जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होंगे । -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले