‘संत’ पद ईश्वर के विश्व में सर्वाधिक महत्त्व का है !

‘भारत में ‘भारतरत्न’ सर्वाेच्च पद है । संसार में ‘नोबेल प्राईज’ सर्वाेच्च पद है, और सनातन में उद्घोषित किया जानेवाला ‘जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति’ और ‘संत’ पद ईश्वर के विश्व में सर्वाधिक महत्त्व का है !’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

साम्यवाद की समानता

‘गरीबी होना अथवा न होना, इसके पीछे ‘प्रारब्ध’ ऐसा कुछ कारण है’, यह न जाननेवाले साम्यवाद की डींगे हांकते है और जो गरीब हैं अथवा नहीं है, उनमें समानता लाने का प्रयत्न करते हैं !’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

हास्यास्पद पश्चिमी शिक्षणप्रणाली !

‘पश्चिमी शिक्षण किसी भी समस्या के मूल कारण तक, उदा. प्रारब्ध, अनिष्ट शक्ति, कालमहात्म्य तक नहीं जाता । क्षयरोग होने पर क्षयरोग के कीटाणु मारने की औषधि न देकर केवल खांसी की औषधि देने जैसा उनका उपाय है !’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

विज्ञान और अध्यात्म में अंतर

‘जहां विज्ञान पृथ्वीतत्त्व के अंतर्गत विषयों से संबंधित है, वहीं अध्यात्म ‘पृथ्वी, आप, तेज, वायु तथा आकाश’ इन पंचमहाभूतों और निर्गुण तत्त्व से संबंधित है । इस कारण ही विज्ञान पृथ्वी के बाहर स्थित अन्य पृथ्वी का ही अध्यन करता है; जबकि अध्यात्म पंचमहाभूतों के परे निर्गुण तत्त्वों का अध्यन भी करता है और अनुभूति … Read more

‘बुद्धिप्रमाणवादियों का विचार 

‘बुद्धिप्रमाणवादियों का यह कहना कि बुद्धि के परे ईश्वर नहीं होते हैं’, यह नर्सरी के बच्चों का डॉक्टर, अधिवक्ता इत्यादि नहीं होते हैं’, ऐसे बोलने जैसा है !’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

विज्ञान का मूल्य

मानव को मानवता न सिखानेवाला, उसके विपरीत विध्वंसक अस्त्र, शस्त्र देनेवाला विज्ञान का मूल्य शून्य है ! – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

चिरंतन आनंद की सीख

‘राजकीय पक्ष ‘ये देंगे, वो देंगे’, ऐसे कहकर जनता को स्वार्थी और अंत में उन्हें दुःखी बना देते हैं । इसके विपरीत साधना हमें धीरे धीरे सर्वस्व का त्याग करना सीखाकर चिरंतन आनंद की, ईश्‍वर की प्राप्ति कैसे करनी है, यह सिखाता है ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

हास्यास्पद साम्यवाद !

‘जनता की शिक्षा, आरोग्य, रुचि-अरुचि में भी साम्यवादी समानता नहीं ला सकते, ऐसी स्थिति में राष्ट्र में साम्यवाद क्या लाएंगे ?’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

साधना के संग्रह की आवश्यकता

‘जिस प्रकार अडचन के समय सहायता मिलने के लिए हम अधिकोष में (बैंक में ) पैसे रखते हैं । उसी प्रकार संकटकाल में हमें सहायता मिल सके, इस हेतु हमारे पास साधना का संग्रह होना आवश्यक है । इससे हमें संकट के समय सहायता मिलती है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

असली सुख का मार्ग

‘असली सुख केवल साधना से ही मिलता है, भ्रष्ट मार्ग से कमाए हुए धन से नहीं !’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले