प्राणरक्षा हेतु साधना ही टीका है
‘रोगों से बचाव हेतु टीकाकरण होता है; उसी प्रकार तीसरे विश्वयुद्ध के समय प्राणरक्षा हेतु साधना ही टीका है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
‘रोगों से बचाव हेतु टीकाकरण होता है; उसी प्रकार तीसरे विश्वयुद्ध के समय प्राणरक्षा हेतु साधना ही टीका है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
‘धर्मांतरण कराने के लिए ईसाईयों को प्रलोभन देना पडता है, मुसलमानों को धमकाना पडता है, जबकि हिन्दू धर्म के ज्ञान के कारण अन्य पंथीय हिन्दू धर्म की ओर आकर्षित होते हैं !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘पृथ्वी के काम भी बिना किसी के परिचय के नहीं होते; तब प्रारब्ध, अनिष्ट शक्तिजनित पीडा इत्यादि समस्याएं बिना ईश्वर से परिचय हुए बिना, क्या ईश्वर दूर करेंगे ?’ – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘साधना से सूक्ष्म ज्ञान होने पर यज्ञ का महत्त्व समझ में आता है । महत्त्व न समझने के कारण ‘अधिक समझदार बुद्धिजीवी’, ‘यज्ञ में वस्तुएं जलाने की अपेक्षा गरीबों को दें’ का राग आलापते हैं !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
अन्य हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों के पास लाखों कार्यकर्ता होंगे, परंतु उनसे अपेक्षित धर्मसेवा नहीं होती; क्योंकि उनके पास, साधना न करने के कारण, आध्यात्मिक बल नहीं होता । – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
बुद्धिजीवियों का बुद्धि से परे के भगवान नहीं होते’, यह कहना वैसा ही है, जैसे आंगनवाडी के बालक का यह कहना कि ‘डॉक्टर, अधिवक्ता आदि नहीं होते !’’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘ईश्वर और साधना पर विश्वास न हो, तब भी चिरंतन आनंद प्रत्येक को चाहिए । वह आनंद केवल साधना से ही मिलता है । एक बार यह ध्यान में आने पर, साधना का कोई विकल्प न होने के कारण मानव साधना हेतु प्रवृत्त होता है ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘जिस प्रकार शरीर के कीटाणु शरीर में ली गई औषधियों से मरते हैं । उसी प्रकार वातावरण में विद्यमान नकारात्मक रज-तम यज्ञ के स्थूल और सूक्ष्म धुएं से नष्ट होते हैं ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘हिन्दू राष्ट्र में (ईश्वरीय राज्य में) समाचार पत्रिकाएं, दूरचित्रवाहिनियां, संकेतस्थल इत्यादि का उपयोग केवल धर्मशिक्षा और साधना हेतु किया जाएगा । इस कारण अपराधी नहीं होंगे और सभी ईश्वर के अनुसंधान में रहने के कारण आनंदी होंगे ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले
‘निर्गुण ईश्वरीय तत्त्व से एकरूप होने पर ही खरी शांति का अनुभव होता है । तब भी शासनकर्ता जनता को साधना न सिखाकर ऊपरी मानसिक स्तर के उपाय करते हैं, उदा. जनता की अडचनें दूर करने के लिए ऊपरी प्रयत्न करना, मानसिक चिकित्सालय स्थापित करना इत्यादि ।’ -(परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले