सिखानेवाले और निरंतर सीखने की स्थिति में रहनेवाले सनातन के संत !

‘अधिकांश संत उन्हें ‘संत’ की उपाधि प्राप्त होने के उपरांत सिखाने की स्थिति में रहते हैं । इसलिए उनसे ‘अगले स्तर की साधना सीखना, साधना के विविध पहलू और उनकी सूक्ष्मता पूछकर आत्मसात करना’, ऐसी कृतियां नहीं होतीं । इसके विपरीत, सनातन के संतों को ‘अध्यात्म अनंत का शास्त्र है’, यह ज्ञात होने से वे … Read more

मनोलय हुए संतों की कृति का मानसिक स्तर पर अर्थ न निकालें !

‘अनेक बार कुछ संतों का आचरण देखकर कुछ लोगों को लगता है, ‘क्या वे मनोविकार से पीडित हैं ?’, ऐसे समय में यह ध्यान रखना चाहिए कि संतों का मनोलय हो चुका होता है । इसलिए उन्हें कभी भी मनोविकार नहीं होते । उनका आचरण उस परिस्थिति के लिए आवश्यक अथवा उनकी प्रकृतिनुसार होता है … Read more

हिन्दुओ व्यापक बनो !

‘हिन्दुओ, स्वयं के साथ-साथ राष्ट्र एवं धर्म का भी विचार करो !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

राष्ट्र-धर्माभिमानियों, व्यापक बनो !

‘राष्ट्र-धर्म अभिमानियों, केवल अपने ही क्षेत्र का नहीं; अपितु व्यापक होने हेतु चिकित्सा, न्याय, पुलिस, शासकीय कार्यालय इत्यादि सभी क्षेत्रों में हो रहे अन्याय को खोजकर, उसके विरुद्ध वैध मार्ग से आवाज उठाओ !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

भारत की अधोगति का कारण

‘स्वतंत्रता के उपरांत आज तक की पीढियों को ‘ईश्वर के अस्तित्व का’ सही ज्ञान न देने के कारण वे भ्रष्टाचारी, वासनांध, राष्ट्र एवं धर्म प्रेम रहित हो गई हैं ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

सनातन संस्था का अनोखापन !

‘वर्तमान में समाज में प्रत्येक व्यक्ति मान-सम्मान और प्रतिष्ठा के लिए विविध पदवियां एवं धन अर्जित करता है। इसके विपरीत सनातन संस्था में प्रत्येक व्यक्ति किसी भी व्यावहारिक फल की अपेक्षा न रख; तन, मन एवं धन का अधिकाधिक त्याग करता है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

शोकांतिका !

‘व्यक्तिगत जीवन हेतु अधिक पैसे मिलते हैं; इसलिए सभी आनंद से अधिक समय (ओवरटाइम) काम करते हैं; परन्तु राष्ट्र और धर्म के लिए १ घंटा सेवा करने के लिए कोई तैयार नहीं होता !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

अरबपति का फिजूलखर्च बेटा और हिन्दू !

‘एक अरबपति का बेटा अपनी पूरी संपत्ती गंवा दे, उस प्रकार हिन्दुओं की पिछली पीढ़ियों ने पूरी धर्मसंपत्ती मिट्टी में मिला दी है !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

प्राणरक्षा हेतु साधना ही टीका है

‘रोगों से बचाव हेतु टीकाकरण होता है; उसी प्रकार तीसरे विश्‍वयुद्ध के समय प्राणरक्षा हेतु साधना ही टीका है ।’ – (परात्‍पर गुरु) डॉ. आठवले

हिन्दू धर्म की महानता

‘धर्मांतरण कराने के लिए ईसाईयों को प्रलोभन देना पडता है, मुसलमानों को धमकाना पडता है, जबकि हिन्‍दू धर्म के ज्ञान के कारण अन्‍य पंथीय हिन्‍दू धर्म की ओर आकर्षित होते हैं !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले