ईश्वरीय कानून एवं जमा खर्च का महत्त्व !
‘पृथ्वी के कानून और जमा-खर्च आदि सब व्यर्थ हैं । अंत में प्रत्येक को ईश्वरीय कानून एवं जमा-खर्च इत्यादि का सामना करना पडता है ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले
‘पृथ्वी के कानून और जमा-खर्च आदि सब व्यर्थ हैं । अंत में प्रत्येक को ईश्वरीय कानून एवं जमा-खर्च इत्यादि का सामना करना पडता है ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले
‘प्रत्येक चूक से कुछ सीख पाएं, तो चूक के कारण दुख नहीं होता। सीखने का आनंद मिलता है।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले,
‘क्रियमाण कर्म का पूरा उपयोग कर पराकाष्ठा के प्रयास करें; परंतु फल प्रारब्ध पर अथवा ईश्वर पर छोडें!’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवले
‘वृद्ध होने पर ही वृद्धावस्था का अनुभव होता है तथा तब लगता है कि वृद्धावस्था देनेवाला पुनर्जन्म न मिले; परंतु तब तक साधना कर पुनर्जन्म टालने का समय बीत चुका होता है । ऐसा न हो, इसलिए युवावस्था से ही साधना करें ।’ -सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले
‘स्थूल का, अर्थात देह तथा वस्तुओं द्वारा किए तात्कालिक प्रदूषण की तुलना में सूक्ष्म स्तर का, अर्थात मन एवं बुद्धि से किया प्रदूषण अनेक गुना लम्बे समय के लिए हानिकारक होता है, इस ओर ध्यान रखें !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले
‘ज्ञानयोग के अनुसार साधना करने पर वह प्रमुख रूप से बुद्धि से होती है । कर्मयोग के अनुसार साधना करने पर, वह शरीर और बुद्धि से होती है; जबकि भक्तियोग के अनुसार साधना करने पर, वह मन, बुद्धि और शरीर से होती है।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले
‘किसी भी राजनीतिक दल का पदाधिकारी बनने की अपेक्षा साधक अथवा शिष्य बनना लाखों गुना श्रेष्ठ है; क्योंकि राजनीतिक दल में रज-तम गुण बढते हैं, जबकि साधक अथवा शिष्य बनने पर सत्त्वगुण बढता है । इससे ईश्वर की दिशा में आगे बढते हैं ।’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले
‘मैं भी ४१ वर्ष की आयु तक ईश्वर को नहीं मानता था । आगे सम्मोहन उपचारशास्त्र की सीमा ज्ञात होने पर मैंने साधना आरंभ की । तब जिज्ञासावश संतों से सहस्रो प्रश्न पूछकर तथा साधना कर अध्यात्मशास्त्र समझ लिया । अन्यथा मैं भी एक बुद्धिहीन बुद्धिप्रमाणवादी बन जाता !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले
कुछ अन्य धर्मीय हिन्दुओं को चिढाते हैं ‘भगवान एक ही है, तो आपके धर्म में अनेक देवी-देवता क्यों है ?’ ऐसे अध्ययनशून्य व्यक्तियों के ध्यान में यह बात नहीं आती की हिन्दू धर्म सर्वाधिक परिपूर्ण धर्म है । यदि पश्चिमी चिकित्सा शास्त्र का उदाहरण देखें, तो यह ध्यान में आएगा कि पूर्व में विविध रोगों … Read more
‘बुद्धिप्रमाणवादी हिन्दू धर्म के कर्मकांड को ‘कर्मकांड’ कहकर नीचा दिखाते हैं; परंतु कर्मकांड का अध्ययन करें, तो यह समझ में आता है कि उसमें प्रत्येक बात का कितना गहन अध्ययन किया गया है !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले