ईश्वर बुद्धिप्रमाणवादियों को दर्शन क्यों नहीं देते ?

‘जब शिष्य को गुरु की बात सुनने का अभ्यास हो जाता है, तभी शिष्य ईश्वर की बातें सुनता है । ऐसा होने के कारण ऐसे शिष्य को ही ईश्वर दर्शन देते हैं । इसलिए वे बुद्धिप्रमाणवादियों को दर्शन नहीं देते ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

अति सयाने बुद्धिजीवी !

साधना कर सूक्ष्म स्तरीय ज्ञान होने पर यज्ञ का महत्त्व समझ में आता है । वह न समझने के कारण ही अति सयाने बुद्धिजीवी कहते हैं, ‘यज्ञ में वस्तुएं जलाने के स्थान पर उन्हें गरीबों में बाटें ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

अच्छे प्रत्याशी मिलना दुर्लभ !

‘मतदान में हिन्दू उसे अपना मत देते हैं, जो पैसे देता है अथवा जो २ प्रत्याशियों में कम बुरा होता है; क्योंकि अधिकांशतः अच्छे प्रत्याशी कहीं नहीं मिलते !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

बुद्धिप्रमाणवादियों की सीमा !

‘बुद्धिप्रमाणवादियों को अहंकार होता है, ‘मानव ने नए-नए यंत्र खोजे ।’ उन्हें यह समझ में नहीं आता कि ईश्वर ने जीवाणु, पशु-पक्षी, ७०-८० वर्ष चलनेवाला एक यंत्र अर्थात मानव शरीर जैसी अरबों वस्तुएं बनाई हैं । उनमें से एक भी वस्तु क्या वैज्ञानिक बना पाए हैं ?’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

हिन्दुओं, साधना करो !

‘हमें ईश्वर की सहायता क्यों नहीं मिलती ?, इसका हिन्दुओं को विचार करना चाहिए और सहायता मिलने के लिए साधना आरंभ करनी चाहिए ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

संस्कृत को अंग्रेजी के समान महत्व क्यों नहीं मिलता ?

‘भारत की पाठशाला में तामसिक अंग्रेजी भाषा सिखाई जाती है; परंतु सात्त्विक संस्कृत भाषा नहीं सिखाई जाती । यह स्वाभाविक ही है; क्योंकि स्वतंत्रता से लेकर अभी तक भारत पर राज्य करनेवाले सभी तामसिक राजनीतिक दलों को तामसिक अंग्रेजी अपनी लगती है !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

विविधता के कारण भारत की परम अधोगति !

‘अनेक से एक की ओर जाना हिन्दू धर्म सिखाता है । इसके विपरीत ‘विविधता भारत का बल है’, ऐसा अनेक राजनीतिक नेता कहते हैं । विविधता के कारण ही आज भारत की परम अधोगति हुई है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

राष्ट्र-धर्म कार्य हेतु आध्यात्मिक स्तर पर कार्य करना भी अत्यावश्यक !

‘शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक स्तर पर राष्ट्र-धर्म हेतु कार्य करने से कुछ साध्य नहीं होता, यह विगत ७४ वर्षों में अनेक बार सिद्ध हुआ है । ‘अत: इनके साथ ही आध्यात्मिक स्तर पर भी कार्य करना अत्यावश्यक है’, यह सभी को ध्यान में रखना होगा ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

अध्यात्म की श्रेष्ठता !

‘विज्ञान पंचज्ञानेंद्रिय, मन तथा बुद्धि से समझाता है; इसलिए उसकी सीमाएं हैं । इसके विपरीत अध्यात्म पंचज्ञानेंद्रिय, मन तथा बुद्धि के पर का होने के कारण असीमित है !’ – परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

सर्वज्ञ ऋषियों का श्रेष्ठत्व !

‘कहां किसी विषय पर कुछ वर्ष शोध कर संख्याशास्त्र के आधार पर (Statistics से) निष्कर्ष निकालनेवाले पश्चिमी शोधकर्ता, और कहां किसी भी प्रकार का शोध किए बिना मिलनेवाले ईश्‍वरीय ज्ञान के कारण किसी भी विषय का निष्कर्ष तत्काल बतानेवाले ऋषि !’ – परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले