विज्ञान की सीमा !

‘विज्ञान का अध्यात्म के सिद्धांतों के विषय में कुछ कहना वैसा ही है, जैसा नन्हें बालक का बडों के विषय में कुछ कहना !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

अध्यात्म सम्बन्धी शोधकार्य का महत्त्व !

‘विज्ञान को अधिकांशतः कुछ भी ज्ञात नहीं रहता, इसलिए किसी सिद्धांत को सिद्ध करने के लिए निरंतर शोध करना पडता है । इसके विपरीत अध्यात्म में सब कुछ ज्ञात होने के कारण वैसा नहीं करना पडता । अध्यात्म सम्बन्धी शोधकार्य विज्ञानयुग की वर्तमान पीढी को अध्यात्म पर विश्‍वास हो तथा वह अध्यात्म की ओर प्रवृत्त … Read more

अध्यात्म में शोध कार्य नहीं करना पडता

‘विज्ञान को अधिकांशतः कुछ भी ज्ञात न होने के कारण, बार-बार शोध कार्य करना पड़ता है । इसके विपरीत अध्यात्म में सब कुछ ज्ञात होने के कारण शोध कार्य नहीं करना पडता ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

साधना के कारण किसी से ईर्ष्या, मत्सर अथवा द्वेष नही लगता

‘साधना के कारण ‘ईश्वर चाहिए’, ऐसा लगने लगे, तो ‘पृथ्वी की कोई वस्तु चाहिए’, ऐसा नही लगता । इस कारण किसी से ईर्ष्या, मत्सर अथवा द्वेष नही लगता, साथ ही अन्यों के साथ दूरी, झगडे नही होते.’ – परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले

खरा रामराज्य

‘रामराज्य केवल हिन्दू राष्ट्र में ही होगा !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

प्रत्येक में ईश्वर के अस्तित्व की शिक्षा देनेवाला हिन्दू धर्म !

‘ईश्वर सर्वत्र हैं, प्रत्येक में हैं’, यह हिन्दू धर्म की शिक्षा होने के कारण हिन्दुओं को अन्य धर्मियों का द्वेष करना नहीं सिखाया जाता ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

अध्यात्म में साधना का आरंभ कैसे होता है ?

‘अध्यात्म में साधना का आरंभ अर्थात ‘अ’(A) ऐसा कुछ नहीं होता । प्रत्येक के आध्यात्मिक स्तर एवं साधनामार्ग के अनुसार उसकी साधना आरंभ होती है ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. जयंत आठवले (२९.१२.२०२१)

साधक और नेताओं में भेद !

‘नेता अपने लाभ के लिए समाज से ‘मुझे मत (वोट) दो’, ऐसा कहते हैं , इसके विपरीत साधक समाज से अपने लिए कुछ नहीं मांगते; अपितु ‘ईश्वरप्राप्ति के लिए साधना करो’, ऐसा कहते हैं !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

कहां आदर्श प्रभु श्रीराम और कहां आज के अकार्यक्षम नेता !

कहां सहस्रो दावे लंबित होने पर भी कुछ ना करनेवाली आज तक की सरकारें और कहां जनता में से एक व्यक्ति द्वारा केवल संदेह व्यक्त करने पर सीता का त्याग करनेवाले प्रभु श्रीराम ! इस कारण प्रभु श्रीराम अजर अमर हैं, जबकि नेताओं को जनता कुछ वर्षों में ही भूल जाती है । – (परात्पर … Read more