महाशिवरात्रि क्यों मनाते है ?
‘महाशिवरात्रि’ के काल में भगवान शिव रात्रि का एक प्रहर विश्राम करते हैं । महाशिवरात्रि दक्षिण भारत एवं महाराष्ट्र में शक संवत् कालगणनानुसार माघ कृष्ण चतुर्दशी तथा उत्तर भारत में विक्रम संवत् कालगणनानुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को मनाई जाती है । इस वर्ष महाशिवरात्रि 8 मार्च 2024 को है ।
महाशिवरात्रि का महत्त्व क्या है ?
महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव जितना समय विश्राम करते हैं, उस काल को ‘प्रदोष’ अथवा ‘निषिथकाल’ कहते है । पृथ्वी का एक वर्ष स्वर्गलोक का एक दिन होता है । पृथ्वी स्थूल है । स्थूल की गति अल्प होती है अर्थात स्थूल को ब्रह्मांड में यात्रा करने के लिए अधिक समय लगता है । देवता सूक्ष्म होते हैं, इसलिए उनकी गति अधिक होती है । यही कारण है कि, पृथ्वी एवं देवताओं के कालमान में एक वर्ष का अंतर होता है । पृथ्वी पर यह काल सर्वसामान्यतः एक से डेढ घंटे का होता है । इस समय भगवान शिव ध्यानावस्था से समाधि-अवस्था में जाते हैं । इस काल में किसा भी मार्ग से, ज्ञान न होते हुए, जाने-अनजाने में उपासना होने पर भी अथवा उपासना में कोई दोष अथवा त्रुटी भी रह जाए, तो भी उपासना का १०० प्रतिशत लाभ होता है । इस दिन शिव-तत्त्व अन्य दिनोंकी तुलना में एक सहस्र गुना अधिक होता है । इस दिन की गई भगवान शिव की उपासना से शिव-तत्त्व अधिक मात्रा में ग्रहण होता है । शिव-तत्त्व के कारण अनिष्ट शक्तियों से हमारी रक्षा होती है ।
महाशिवरात्रि व्रत विधि कैसे करें ?
संपूर्ण देश में महाशिवरात्रि बडे उत्साह से मनाई जाती है । फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को भगवान शिव का महाशिवरात्रि व्रत करते हैं । उपवास, पूजा और जागरण महाशिवरात्रि व्रत के ३ अंग हैं । ‘फाल्गुन कृष्ण पक्ष त्रयोदशी को एक समय उपवास करें । चतुर्दशी को सवेरे महाशिवरात्रि व्रत का संकल्प करें । सायंकाल नदी अथवा तालाब के किनारे जाकर शास्त्रोक्त स्नान करें । भस्म और रुद्राक्ष धारण करें । प्रदोषकाल पर शिवजी के देवालय में जाकर भगवान शिव का ध्यान करें । तत्पश्चात षोडशोपचार पूजन करें । भवभवानीप्रित्यर्थ तर्पण करें । भगवान शिव को एक सौ आठ कमल अथवा बिल्वपत्र नाममंत्र सहित चढाएं । तत्पश्चात पुष्पांजली अर्पण कर अर्घ्य दें । पूजासमर्पण, स्तोत्रपाठ और मूलमंत्र का जप होने के उपरांत भगवान शिव के मस्तक पर चढाया हुआ एक फूल उठाकर स्वयं के मस्तक पर रखें और क्षमायाचना करें’, ऐसा महाशिवरात्रि का व्रत है ।
महाशिवरात्रि के दिन ये अवश्य करें !
महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव के ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप अधिकाधिक करें
कलियुग में नामस्मरण साधना बताई गई है । महाशिवरात्रि को शिवजी का तत्त्व १ सहस्र गुना अधिक कार्यरत होता है, उसका हमें अधिक लाभ हो इसलिए भगवान शिव के ‘ॐ नम: शिवाय ।’ मंत्र का जाप दिन भर करें ।
ॐ नमः शिवाय मंत्र जप सुनें !
भक्तिसत्संग – महाशिवरात्रि
श्री सत्शक्ति (श्रीमती) बिंदा सिंगबाळजी की चैतन्यदायी वाणी में भक्तिसत्संग का भावपूर्ण श्रवण करें । महाशिवरात्रि के अवसर पर भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति बढाएं । इस विशेष भक्तिसत्संग में हम सुनेंगे, १२ ज्योतिर्लिंगों की दिव्य महिमा तथा आदिशक्ति पार्वती मां द्वारा भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए की गई कठोर तपस्या के विषय में ।
महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव का तत्त्व अधिक मात्रा में कार्यरत होने से आध्यात्मिक साधना करनेवालोंको विविध प्रकार की अनुभूतियां होती हैं । विविध त्यौहार कैसे मनाएं, हमारे इष्टदेवता की उपासना कैसे करें, साधना कैसे करें, यह जानने के लिए हमारे ऑनलाईन सत्संग में सहभागी हों !
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शिवपिंडी का अभिषेक करें
महाशिवरात्रि पर कार्यरत शिव-तत्त्व का अधिकाधिक लाभ लेने हेतु शिवभक्त शिवपिंडी पर अभिषेक करते है । इसके रुद्राभिषेक, लघुरुद्र, महारुद्र, अतिरुद्र ऐसे प्रकार होते हैं । रुद्राभिषेक अर्थात रुद्र का एक आवर्तन, लघुरुद्र अर्थात रुद्र के १२१ आवर्तन, महारुद्र अर्थात ११ लघुरुद्र एवं अतिरुद्र अर्थात ११ महारुद्र होते है ।
अभिषेक करते समय शिवपिंडी को ठंडे जल, दूध एवं पंचामृत से स्नान कराते हैं । चौदहवीं शताब्दि से पूर्व शिवजी की पिंडी को केवल जल से स्नान करवाया जाता था; दूध एवं पंचामृत से नहीं । दूध एवं घी ‘स्थिति’ के प्रतीक हैं, इसलिए ‘लय’ के देवता शिवजी की पूजा में उनका उपयोग नहीं किया जाता था । चौदहवीं शताब्दि में दूध को शक्ति का प्रतीक मानकर प्रचलित पंचामृतस्नान, दुग्धस्नान इत्यादि अपनाए गए ।
शिवपिंडी को हलदी-कुमकुम की अपेक्षा भस्म लगाएं
किसी भी देवतापूजन में मूर्ति को स्नान कराने के उपरांत हलदी-कुमकुम चढाया जाता है । परंतु शिवजी की पिंडी की पूजा में हलदी एवं कुमकुम निषिद्ध माना गया है । हल्दी मिट्टी में उगती है । यह उत्पत्ति का प्रतीक है । कुमकुम भी हल्दी से ही बनाया जाता है, इसलिए वह भी उत्पत्ति का ही प्रतीक है । शिवजी ‘लय’ के देवता हैं, इसीलिए ‘उत्पत्ति’ के प्रतीक हल्दी-कुमकुम का प्रयोग शिव पूजन में नहीं किया जाता । शिवपिंडी पर भस्म लगाते हैं, क्योंकि वह लय का प्रतीक है । पिंडी के दर्शनीय भाग से भस्म की तीन समांतर धारियां बनाते हैं । उन पर मध्य में एक वृत्त बनाते हैं, जिसे शिवाक्ष कहते हैं ।
शिव पूजन करते समय शिवपिंडी पर श्वेत अक्षत अर्पण करें
श्वेत अक्षत वैराग्य के, अर्थात निष्काम साधना के द्योतक हैं । श्वेत अक्षत की ओर निर्गुण से संबंधित मूल उच्च देवताओंकी तरंगें आकृष्ट होती हैं । भगवान शिव एक उच्च देवता हैं तथा वे अधिकाधिक निर्गुण से संबंधित है । इसलिए श्वेत अक्षत पिंडी के पूजन में प्रयुक्त होने से शिव-तत्त्व का अधिक लाभ मिलता है ।
भगवान शिव को श्वेत पुष्प अर्पण करें
भगवान शिव को श्वेत रंग के पुष्प ही चढाएं । उनमें रजनीगंधा, जाही, जुही एवं बेला के पुष्प अवश्य हों । ये पुष्प दस अथवा दस की गुना में हों । तथा इन पुष्पोंको चढाते समय उनका डंठल शिवजी की ओर रखकर चढाएं । पुष्पोंमें धतूरा, श्वेत कमल, श्वेत कनेर, आदी पुष्पोंका चयन भी कर सकते हैं । भगवान शिव को केवडा निषिद्ध है, इसलिए वह न चढाएं, किन्तु केवल महाशिवरात्रि के दिन केवडा चढाएं ।
भगवान शिव का प्रिय बेल पत्र चढाएं
इस कालावधि में शिव-तत्त्व अधिक से अधिक आकृष्ट करनेवाले बेल पत्र, श्वेत पुष्प इत्यादि शिवपिंडी पर चढाए जाते हैं । इनके द्वारा वातावरण में विद्यमान शिव-तत्त्व आकृष्ट किया जाता है । भगवान शिव के नाम का जाप करते हुए अथवा उनका एक-एक नाम लेते हुए शिवपिंडी पर बेल पत्र अर्पण करने को बिल्वार्चन कहते हैं । इस विधि में शिवपिंडी को बेल पत्रोंसे संपूर्ण आच्छादित करते हैं ।
शिवपिंडी पर बेल पत्र कैसे चढाए तथा बेल पत्र तोडने के नियम
बेल के वृक्ष में देवता निवास करते हैं । इस कारण बेल वृक्ष के प्रति अतीव कृतज्ञता का भाव रख कर उससे मन ही मन प्रार्थना करने के उपरांत उससे बेल पत्र तोडना आरंभ करना चाहिए । शिवपिंडी की पूजा के समय बेल पत्र को औंधे रख एवं उसके डंठल को अपनी ओर कर पिंडी पर चढाते हैं । शिवपिंडी पर बेल पत्र को औंधे चढाने से उससे निर्गुण स्तर के स्पंदन अधिक प्रक्षेपित होते हैं । इसलिए बेल पत्र से श्रद्धालु को अधिक लाभ मिलता है । सोमवार का दिन, चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी तथा अमावस्या, ये तिथियां एवं संक्रांति का काल बेल पत्र तोडने के लिए निषिद्ध माना गया है । बेल पत्र शिवजी को बहुत प्रिय है, अतः निषिद्ध समय में पहले दिन का रखा बेल पत्र उन्हें चढा सकते हैं । बेल पत्र में देवतातत्त्व अत्यधिक मात्रा में विद्यमान होता है । वह कई दिनों तक बना रहता है ।
बिल्वपत्र का सूक्ष्म-चित्र
महाशिवरात्रि के दिन शिवजी के लिए कौनसे गंध की अगरबत्ती जलाएं ?
शिवजी को अगरबत्ती दिखाते समय तारक उपासना के लिए चमेली एवं हीना गंधोंकी अगरबत्तियोंका उपयोग किया जाता है तथा इन्ही सुगंधोंका इत्र अर्पण करते है । परंतु महाशिवरात्रि के पर्व पर शिवजी को केवडे के सुगंधवाला इत्र एवं अगरबत्ती का उपयोग बताया गया है ।
भगवान शिव के मंदिर में दर्शन लेने जाएं !
ऐसे करें शिवपिंडी के दर्शन !
शिवालयमें प्रवेश करतेही हमें पहले दर्शन होते हैं, नंदीके । शिवजीके दर्शनसे पूर्व नंदीके दर्शन किए जाते हैं । उसके उपरांत शृंगदर्शन अर्थात नंदीके सींगोंके बीचसे शिवपिंडीके दर्शन किए जाते हैं ।
श्री गुरुचरित्रमें बताए अनुसार शृंगदर्शन करते समय, नंदीके पिछले पैरोंके निकट बैठकर अथवा खडे रहकर बाएं हाथको नंदीके वृषणपर रखें । उसके उपरांत दाहिने हाथकी तर्जनी अर्थात अंगूठेके निकटकी उंगली एवं अंगूठा नंदीके दो सींगोंपर रखें । दोनों सींग एवं उसपर रखी दो उंगलियोंके बीचके रिक्त स्थानसे शिवलिंगको निहारें । नंदीके वृषणको हाथ लगानेका अर्थ है, कामवासनापर नियंत्रण रखना । ‘सींग’ अहंकार, पौरुष एवं क्रोधका प्रतीक है । सींगोंको हाथ लगाना अर्थात अहंकार, पौरुष एवं क्रोधपर नियंत्रण रखना । शृंगदर्शनके समय होनेवाले सूक्ष्म-परिणामोंको समझ लेते है एक सू्क्ष्म-चित्रद्वारा :
भगवान शिव की परिक्रमा कैसे करें ?
भगवान शिव की परिक्रमा चंद्रकला के समान अर्थात सोमसूत्री होती है । सूत्र का अर्थ है, नाला । सूत्र, अर्थात् धारा, जो अरघा से उत्तर दिशा में, अर्थात् सोम की ओर, मंदिर के विस्तार (परिसर) तक जाती है, उसे सोमसूत्र कहते हैं । शिवपिंडी को देखते हुए, उसके सामने खडे रहने पर हमारी दाईं ओर अभिषेक का जल जाने के लिए बनाई गई जलप्रणालिका (शालुंका से आनेवाला जल आगे ले जानेवाला स्रोत) होती है । परिक्रमा का मार्ग यहां से प्रारंभ होता है । हमारी बाईं ओर से आरंभ कर जलप्रणालिका के दूसरे छोर तक जाना हैं (घडी की दिशा में) । फिर बिना जलप्रणालिका को लांघते, मुडकर पुनः जलप्रणालिका के प्रथम छोर तक आना हैं । ऐसा करने से एक परिक्रमा पूर्ण होती है । यह नियम केवल मानव-स्थापित अथवा मानव-निर्मित शिवलिंग के लिए ही लागू होता है; स्वयंभू लिंग या चल अर्थात पूजाघर में स्थापित लिंग के लिए नहीं ।
भगवान शिव से संबंधित अन्य जानकारी
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संकटकाल में महाशिवरात्रि कैसे मनाएं ?
संकटकाल अथवा आपातकाल में (जैसे कोरोना महामारी के समय) यह व्रत करने में मर्यादाएं हो सकती हैं । ऐसे समय में महाशिवरात्रि को शिवतत्त्व का लाभ प्राप्त करने के लिए क्या करें ? इससे संबंधित कुछ उपयुक्त सूत्र और दृष्टिकोण यहां दे रहे हैं ।
१. शिवपूजा के लिए विकल्प
अ. कोरोना की पृष्ठभूमि पर लागू किए गए प्रतिबंधो के कारण जिनके लिए महाशिवरात्रि पर शिवमंदिर में जाना संभव नहीं है, वे अपने घर के शिवलिंग की पूजा करें ।
आ. यदि शिवलिंग उपलब्ध न हो, तो शिवजी के चित्र की पूजा करें ।
इ. शिवजी का चित्र भी उपलब्ध न हो, तो पीढे पर शिवलिंग अथवा शिवजी का चित्र बनाकर उसकी पूजा करें ।
ई. इनमें से कुछ भी संभव न हो, तो शिवजी का ‘ॐ नमः शिवाय ।’ यह नाममंत्र लिखकर उसकी भी पूजा कर सकते हैं ।’ सावन के सोमवार को उपवास कर शिवजी की विधिवत पूजा करने के इच्छुक लोगों के लिए भी ये सूत्र लागू हैं ।
उ. मानसपूजा : ‘स्थूल से सूक्ष्म श्रेष्ठ’, यह अध्यात्म का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है । स्थूल से सूक्ष्म अधिक शक्तिशाली होता है । इस तत्त्व के अनुसार प्रत्यक्ष शिवपूजा करना संभव न हो, तो मानसपूजा भी कर सकते हैं ।
आपातकाल से पार पाना हो, तो साधना का बल आवश्यक है । व्रत करने में मर्यादाएं होते हुए भी निराश न होते हुए अधिकाधिक साधना करने की ओर ध्यान दें । महाशिवरात्रि के निमित्त भगवान शिवजी को शरण जाकर प्रार्थना करें, ‘हे महादेव, साधना करने के लिए हमें शक्ति, बुद्धि और प्रेरणा दीजिए । हमारी साधना में आनेवाली बाधाओंका लय होने दीजिए, ऐसी हम शरणागतभाव से प्रार्थना करते हैं ।’
हर हर महादेव