श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पूजाविधि

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भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करना

श्रावण कृष्ण पक्ष अष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ । यह दिन श्रीकृष्णजयंती के रूप में मनाया जाता है । प्रस्तुत लेख में श्रीकृष्ण की पूजाविधि दी है । पूजा के मंत्रों का अर्थ समझ में आने पर, भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अधिक भावपूर्ण होने में सहायता होती है । इस दृष्टि से जहां भी संभव हुआ है, वहां मंत्र के आगे उसका हिन्दी भाषा में अर्थ अथवा भावार्थ दिया है ।

आचमन

बाएं हाथ से आचमनी से जल लेकर दाएं हाथ की हथेली पर रखें और निम्नांकित तीन नाम (मंत्र) क्रमानुसार पढकर, प्रत्येक बार जल पीएं –

श्री केशवाय नमः ।
श्री नारायणाय नमः ।
श्री माधवाय नमः ।

अब निम्नांकित नामोच्चार के साथ आचमनी से दायीं हथेली पर जल लेकर नीचे रखी थाली में छोड दें –

श्री गोविन्दाय नमः ।

तदुपरांत निम्नांकित नामों का क्रमानुसार उच्चार करें –

विष्णवे नमः । मधुसूदनाय नमः । त्रिविक्रमाय नमः । वामनाय नमः । श्रीधराय नमः । हृषीकेशाय नमः । पद्मनाभाय नमः । दामोदराय नमः । संकर्षणाय नमः । वासुदेवाय नमः । प्रद्युम्नाय नमः । अनिरुद्धाय नमः । पुरुषोत्तमाय नमः । अधोक्षजाय नमः । नारसिंहाय नमः । अच्युताय नमः । जनार्दनाय नमः । उपेन्द्राय नमः । हरये नमः । श्रीकृष्णाय नमः ।

(हाथ जोडें ।)

प्रार्थना

श्रीमन्महागणाधिपतये नमः ।
(गणों के नायक, श्री गणपति को मैं नमस्कार करता हूं ।)

इष्टदेवताभ्यो नमः ।
(इष्टदेवता को नमस्कार करता हूं ।)

कुलदेवताभ्यो नमः ।
(कुलदेवता को नमस्कार करता हूं ।)

ग्रामदेवताभ्यो नमः ।
(ग्रामदेवता को नमस्कार करता हूं ।)

स्थानदेवताभ्यो नमः ।
(यहां के स्थानदेवता को नमस्कार करता हूं ।)

वास्तुदेवताभ्यो नमः ।
(यहां के वास्तुदेवता को नमस्कार करता हूं ।)

आदित्यादिनवग्रहदेवताभ्यो नमः ।
(सूर्यादि नौ-ग्रह देवताओं को नमस्कार करता हूं ।)

सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः ।
(सर्व देवताओं को नमस्कार करता हूं ।)

सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमो नमः ।
(सर्व ब्राह्मणों को (ब्रह्म जाननेवालों को) नमस्कार करता हूं ।)

अविघ्नमस्तु ।
(पूजा निर्विघ्न संपन्न हो ।)

सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः ।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः ।।
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः ।
द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि ।।
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा ।
सङ्ग्रामे सज्र्टेचैव विघ्नस्तस्य न जायते ।।

(जिसका मुख सुंदर है, जिसे एक ही दांत है, जिसका वर्ण फिका भुरा है, कान हाथीसमान हैं, उदर विशाल है, (दुर्जनों के विनाश हेतु) जिसने विक्राल रूप धारण किया है, जो संकटों का नाश करता है, जो गणों का नायक है तथा उसका वर्ण धम्र जैसा है, गणों का प्रमुख है, जिसने मस्तक पर चंद्र धारण किया है और जिसकी सूंड हाथीसमान है; ऐसे श्री गणपति के बारह नामों का विवाहसमय, विद्याभ्यास आरंभ करते समय, (घर में) प्रवेश करते समय अथवा (घर से) बाहर निकलते समय, युद्ध पर जाते समय अथवा संकटसमय में जो पठन अथवा श्रवण करेगा उसे विघ्नों का सामना नहीं करना पडेगा ।)

शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।
प्रस वदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ।।

(सर्व संकटों के विनाश हेतु शुभ्र वस्त्र परिधान किए, शुभवर्णयुक्त, चार हाथवाले तथा प्रसन्न मुख, ऐसे भगवान का (भगवान श्रीविष्णु का) मैं ध्यान करता हूं ।)

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते ।।

(सर्व मंगलों में मंगल, पवित्र, सबका कल्याण करनेवाली, त्रिनेत्र, सभी का शरण स्थान, शुभ्रवर्ण, ऐसी हे नारायणीदेवी, मैं तुम्हें नमस्कार करता हूं ।)

सर्वदा सर्वकार्येषु नास्ति तेषाममङ्गलम् ।
येषां हृदिस्थो भगवान्मङ्गलायतनं हरिः ।।

(मंगल ऐसे निवास में (वैकुंठ में) रहनेवाले भगवान श्रीविष्णु जिनके हृदय में वास करते हैं, उनके सर्व कार्य सदैव मंगल होते हैं ।)

तदेव लग्नं सुदिनं तदेव ताराबलं चन्द्रबलं तदेव ।
विद्याबलं दैवबलं तदेव लक्ष्मीपते तेऽङ्घ्रियुगं स्मरामि ।।

(हे लक्ष्मीपति (विष्णो), आपके चरणकमलों का जो स्मरण वही लग्न, वही उत्तम दिन, वही ताराबल, वही चंद्रबल, वही विद्याबल और वही दैवबल, (है ।))

लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः ।
येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः ।।

(नीले-से श्यामवर्ण से युक्त सबका कल्याण करनेवाले ऐसे (भगवान) विष्णु जिनके हृदय में वास करते हैं, उनकी पराजय कैसे संभव है ! उनकी तो सदा विजय ही होगी, उन्हें सर्व (इच्छित) प्राप्त होगा !)

यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः ।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिध्र्रुवा नीतिर्मतिर्मम ।।

(जहां महान योगी (भगवान) श्रीकृष्ण और महान धनुर्धारी अर्जुन हैं, वहां ऐश्वर्य और जय निश्चित है, ऐसा मेरा मत और अनुमान है ।)

विनायकं गुरुं भानुं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरान् ।
सरस्वतीं प्रणौम्यादौ सर्वकार्यार्थसिद्धये ।।

(सर्व कार्यों की सिद्धि हो, इस हेतु प्रथम गणपति, गुरु, सूर्य, ब्रह्मा-विष्णु-महेश और सरस्वतीदेवी को नमस्कार करता हूं ।)

अभीप्सितार्थसिद्धयर्थं पूजितो यः सुरासुरैः ।
सर्वविघ्नहरस्तस्मै गणाधिपतये नमः ।।

(इच्छित कार्य की सिद्धि हो, इस हेतु देव और दानव सभीको पूजनीय तथा सर्व संकटों का नाश करनेवाले गणनायक को मैं नमस्कार करता हूं ।)

सर्वेष्वारब्धकार्येषु त्रयस्त्रिभुवनेश्वराः ।
देवा दिशन्तु नः सिद्धिं ब्रह्मेशानजनार्दनाः ।।

(तीनों लोकों के स्वामी, ब्रह्मा-विष्णु-महेश ये त्रिदेव (हमें) आरंभ किए सर्व कार्यों में यश प्रदान करें ।)

देशकाल

अपने नेत्रों पर जल लगाकर निम्न देशकाल का उच्चारण करें ।

श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य ब्रह्मणो द्वितीये परार्धे विष्णुपदे श्रीश्वेत-वाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे युगे युगचतुष्के कलियुगे कलि प्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भरतवर्षे भरतखण्डे दण्डकारण्ये देशे गोदावर्याः दक्षिणतीरे शालिवाहनशके अस्मिन्वर्तमाने व्यावहारिके क्रोधी नाम संवत्सरे, दक्षिणायने, वर्षा-ऋतौ, श्रावणमासे, कृष्ण पक्षे, अष्टम्यान् तिथौ, इंदू वासरे, रोहिणी दिवस नक्षत्रे, हर्षण योगे, कौलव करणे, वृषभ स्थिते वर्तमाने श्रीचंद्रे, सिंह स्थिते वर्तमाने श्रीसूर्ये, वृषभ स्थिते वर्तमाने श्रीदेवगुरौ, कुंभ स्थिते वर्तमाने श्रीशनैश्चरे शेषेषु सर्वग्रहेषु यथायथं राशिस्थानानि स्थितेषु एवङ् ग्रह-गुणविशेषण विशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ…

(महापुरुष भगवान श्रीविष्णु की आज्ञा से प्रेरित हुए इस ब्रह्मदेव के दूसरे परार्ध के विष्णुपदांतर्गत श्रीश्वेत-वराह कल्पांतर्गत वैवस्वत मन्वंतर के अठ्ठाईसवें युग के चतुर्युगांतर्गत कलियुग के प्रथम चरणांतर्गत आर्यावर्त देश के (जम्बुद्वीप पर स्थित भरतवर्ष के भरत खंड के दंडकारण्य देश में गोदावरी नदी के दक्षिण तट पर बौद्ध अवतार में रामक्षेत्र में) वर्तमान शालिवाहन शक के शुभकृत् नामक संवत्सर के (वर्षाके) दक्षिणायनांतर्गत वर्षा ऋतु के श्रावण माह के कृष्ण पक्षांतर्गत आज की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र के हर्षण योग की शुभघडी पर, अर्थात उपर्युक्त गुणविशेषों से युक्त शुभ और पुण्यप्रद ऐसी तिथि के दिन (टिप्पणी २))

संकल्प

(दाएं हाथ में अक्षत लेकर निम्न संकल्प का उच्चारण करें ।)

मम आत्मनः परमेश्वर-आज्ञारूप-सकल-शास्त्र-श्रुतिस्मृति-पुराणोक्त-फल-प्राप्तिद्वारा श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थं श्रीकृष्णजन्माष्टमी-निमित्तेन श्रीकृष्णदेवताप्रीत्यर्थं पूजनम् अहं करिष्ये । तत्रादौ निर्विघ्नतासिद्ध्यर्थं महागणपतिस्मरणं करिष्ये । शरीरशुद्ध्यर्थं दशवारं विष्णुस्मरणं करिष्ये । कलश-घण्टा-दीप-पूजनं च करिष्ये ।

(‘करिष्ये’ कहने के उपरांत प्रत्येक बार बाएं हाथ से आचमनी भर जल दाएं हाथपर से नीचे छोड दें ।)

(मुझे परमेश्वर की आज्ञास्वरूप सर्व शास्त्र-श्रुति-स्मृति-पुराणों में विदित फल प्राप्त कर परमेश्वर को प्रसन्न करने हेतु श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव के निमित्त भगवान श्रीकृष्ण की प्रीति के लिए मैं उनका पूजन करूंगा । इसमें प्रथम विघ्ननाशन हेतु महागणपति का स्मरण कर रहा हूं । शरिरशुद्धि के लिए दस बार विष्णु का स्मरण कर रहा हूं । साथ ही कलश, घंटा और दीपपूजा कर रहा हूं ।)

श्रीगणपतिस्मरण

वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ।।

(जिसकी सूंड वलयाकार है, काया विशाल है, जो करोडों सूर्यों के प्रकाश जैसे हैं, ऐसे हे (गणेश) देवता, मेरे सर्व काम सदैव विघ्नरहित कीजिए ।)

ऋद्धि-बुद्धि-शक्ति-सहित-महागणपतये नमो नमः ।
(ऋद्धि, बुद्धि और शक्ति आदि सहित महागणपति को नमस्कार करता हूं ।)

महागणपतये नमः । ध्यायामि ।
(महागणपति को नमस्कार कर ध्यान करता हूं ।)

(मनःपूर्वक श्री गणपति का स्मरण कर हाथ जोडकर नमस्कार करें ।)

तदुपरांत शरीरशुद्धि के लिए दस बार श्रीविष्णु का स्मरण करें – नौ बार ‘विष्णवे नमो’ और अंतमें ‘विष्णवे नमः’ ऐसा कहें ।

कलशपूजन

गङ्गे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ।
नर्मदे सिन्धुकावेरी जलेऽस्मिन् सुन्निधिं कुरु ।।
(हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु और कावेरी (नदियों) इस जल में वास करें ।)

कलशाय नमः ।
(कलश को नमस्कार करता हूं ।)

कलशे गङ्गादितीर्थान् आवाहयामि ।
(इस कलश में गंगादितीर्थों का आवाहन करता हूं ।)

कलशदेवताभ्यो नमः ।
(कलशदेवता को नमस्कार करता हूं ।)

सकलपूजार्थे गन्धाक्षतपुष्पं समर्पयामि ।
(समस्त पूजा के लिए गंध, फूल और अक्षत अर्पित करता हूं ।)
(कलश पर गंध, फूल और अक्षत चढाएं ।)

घंटापूजन

आगमार्थं तु देवानां गमनार्थं तु रक्षसाम् ।
कुर्वे घण्टारवं तत्र देवताह्वानलक्षणम् ।।
(देवताओं के आगमन के लिए और राक्षसों के निर्गमन के लिए देवताओं को आवाहनस्वरूप घंटानाद कर रहा हूं ।)

घण्टायै नमः ।
(घंटा को नमस्कार करता हूं।)

सकलपूजार्थे गन्धाक्षतपुष्पं समर्पयामि ।
(समस्त पूजा के लिए गंध, फूल और अक्षत अर्पित करता हूं ।)
(घंटा को गंध, फूल और अक्षता चढाएं ।)

दीपपूजन

भो दीप ब्रह्मरूपस्त्वं ज्योतिषां प्रभुरव्ययः ।
आरोग्यं देहि पुत्रांश्च मतः शान्तिं प्रयच्छ मे ।।
(हे दीप, तुम ब्रह्मस्वरूप हो । ज्योतिषियों के अचल स्वामी हो । (तुम) हमें आरोग्य, पुत्र और शांति प्रदान करो ।)

दीपदेवताभ्यो नमः ।
(दीपदेवता को नमस्कार करता हूं ।)

सकलपूजार्थे गन्धाक्षतपुष्पं समर्पयामि ।
(समस्त पूजा के लिए गंध, फूल और अक्षत अर्पित करता हूं ।)
(समई (दीप) को गंध, फूल और अक्षत चढाएं ।)

अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थाङ्गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ।।
((अंतर्बाह्य) स्वच्छ हो अथवा अस्वच्छ, किसी भी अवस्था में हो; जो (मनुष्य) कमलनयन श्रीविष्णु का स्मरण करता है, वह अंतर्बाह्य शुद्ध होता है ।)
(इस मंत्र से तुलसीपत्र जल में भिगोकर पूजासामग्री तथा अपने शरीर पर जल प्रोक्षण करें ।)

भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान

कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने ।
प्रणतक्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नमः ।।
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम् ।
देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ।।

(वसुदेवपुत्र कृष्ण को, सर्व दुःख हरण करनेवाले परमात्मा को और शरणागतों के क्लेश दूर करनेवाले गोविंदा को मेरा नमस्कार । वसुदेव के पुत्र; साथ ही कंस, चाणूर इत्यादि का निःपात करनेवाले, देवकी को परमानंद देनेवाले और संपूर्ण जगत के लिए गुरुस्थान पर विराजित भगवान श्रीकृष्ण को मैं नमस्कार करता हूं ।)

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्रीकृष्णाय नमः । ध्यायामि ।
(भगवान श्रीकृष्ण को नमस्कार कर ध्यान करता हूं ।)

१. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्रीकृष्णाय नमः । आवाहयामि ।
(भगवान श्रीकृष्णको को नमस्कार कर आवाहन करता हूं ।)
(अक्षता चढाएं ।)

२. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्रीकृष्णाय नमः । आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि ।
(भगवान श्रीकृष्णको आसन के लिए अक्षता अर्पित करता हूं ।)
(भगवान श्रीकृष्ण के चरणों पर अक्षत अर्पित करें ।)
(मूर्ति हो, तो पूजा की थाली में (ताम्हन में) निकालकर रखें और निम्न उपचार समर्पित करें ।)

३. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्रीकृष्णाय नमः । पाद्यं समर्पयामि ।
(भगवान श्रीकृष्ण को, के पादप्रक्षालन के लिए जल अर्पित करता हूं ।)

४. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्रीकृष्णाय नमः । अर्घ्यं समर्पयामि ।
(भगवान श्रीकृष्ण को अर्घ्य के लिए जल अर्पित करता हूं ।)

५. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्रीकृष्णाय नमः । आचमनीयं समर्पयामि ।
(भगवान श्रीकृष्ण को आचमन के लिए जल अर्पित करता हूं ।)

६. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्रीकृष्णाय नमः । स्नानं समर्पयामि ।
(भगवान श्रीकृष्ण को स्नान के लिए जल अर्पित करता हूं ।)

७. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्रीकृष्णाय नमः । पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि ।
(भगवान श्रीकृष्ण को पंचामृतस्नान करवाता हूं ।)
(पंचामृत अथवा दूध डालें । तदुपरांत जल डालें । शेष पंचामृत का नैवेद्य दिखाएं (भोग चढाएं) । तत्पश्चात मूर्ति पर पुनः जल डालकर मूर्ति स्वच्छ धो लें । स्वच्छ वस्त्र से पोंछ ले और आसन पर रखें ।)

८. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्रीकृष्णाय नमः । वस्त्रं समर्पयामि ।
(भगवान श्रीकृष्ण को वस्त्र अर्पित करता हूं ।)
(वस्त्र चढाएं ।)

९. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्रीकृष्णाय नमः । उपवीतं समर्पयामि ।
(भगवान श्रीकृष्ण को यज्ञोपवीत (जनेऊ) अर्पित करता हूं ।)
(जनेऊ अथवा अक्षता चढाएं ।)

१०. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्रीकृष्णाय नमः । चन्दनं समर्पयामि ।
(भगवान श्रीकृष्ण को गंध अर्पित करता हूं ।)
(भगवान श्रीकृष्ण को चंदन अर्पित करें)
(भगवान श्रीकृष्ण को गंध लगाएं ।)

११. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्रीकृष्णाय नमः । मङ्गलार्थे हरिद्रां समर्पयामि ।
(हलदी चढाता हूं ।)

१२. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्रीकृष्णाय नमः । मङ्गलार्थे कुङ्कुमं समर्पयामि ।
(कुमकुम चढाता हूं ।)

१३. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्रीकृष्णाय नमः । अलज्ररार्थे अक्षतान् समर्पयामि ।
(भगवान श्रीकृष्ण को अलंकार के रूप में अक्षत अर्पित करता हूं ।)
(अक्षत चढाएं ।)

१४. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्रीकृष्णाय नमः । पूजार्थे ऋतुकालोद्भवपुष्पाणि तुलसीपत्राणि च समर्पयामि ।
(भगवान श्रीकृष्ण को वर्तमान ऋतु में मिलनेवाले फूल, तुलसीपत्र अर्पित करता हूं ।)
(फूल, पुष्पमाला इत्यादि चढाएं ।)

१५. अंगपूजा
(निम्न मंत्रों से श्रीकृष्ण के अवयवों पर निकट से; परंतु स्पर्श किए बिना अक्षत चढाएं ।)

श्रीकृष्णाय नमः । पादौ पूजयामि ।
(भगवान श्रीकृष्ण के चरणों पर अक्षत चढाएं ।)

सज्र्र्षणाय नमः । गुल्फौ पूजयामि ।
(टखनों पर अक्षत चढाएं ।)

कालात्मने नमः । जानुनी पूजयामि ।
(घुटनों पर अक्षत चढाएं ।)

विश्वकर्मणे नमः । जङ्घे पूजयामि ।
(जंघाओं पर अक्षत चढाएं ।)

विश्वनेत्राय नमः। कटिं पूजयामि ।
(कटि पर अक्षत चढाएं ।)

विश्वकत्र्रे नमः । मेढ्रं पूजयामि ।
(जननेंद्रिय पर अक्षत चढाएं ।)

पद्मनाभाय नमः । नाभिं पूजयामि ।
(नाभि पर अक्षत चढाएं ।)

परमात्मने नमः । हृदयं पूजयामि ।
(हृदय पर अक्षत चढाएं ।)

श्रीकण्ठाय नमः । कण्ठं पूजयामि ।
(कंठ पर अक्षत चढाएं ।)

सर्वास्त्रधारिणे नमः । बाहू पूजयामि ।
(दोनों हाथों पर अक्षत चढाएं ।)

वाचस्पतये नमः । मुखं पूजयामि ।
(मुखपर अक्षत चढाएं ।)

केशवाय नमः । ललाटं पूजयामि ।
(भाल/ललाट पर अक्षत चढाएं ।)

सर्वात्मने नमः । शिरः पूजयामि ।
(मस्तकपर अक्षत चढाएं ।)

विश्वरूपिणे नारायणाय नमः । सर्वाङ्गं पूजयामि ।
(मस्तक से चरणों तक अक्षता चढाएं ।)

१६. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्रीकृष्णाय नमः । धूपं समर्पयामि ।
(श्रीकृष्ण की धूप से आरती उतारता हूं ।)
(उदबत्ती से आरती उतारें ।)

१७. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्रीकृष्णाय नमः । दीपं समर्पयामि ।
(श्रीकृष्ण की दीप से आरती उतारता हूं ।)
(निरांजन से आरती उतारें ।)

१८. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्रीकृष्णाय नमः । नैवेद्यार्थे पुरतस्थापित-पृथुकादि-खाद्योपहार-नैवेद्यं निवेदयामि ।
(श्रीकृष्ण को सामने रखें पोहे इत्यादि अन्नपदार्थों का नैवेद्य निवेदित करता हूं ।)
(दही-पोहे का नैवेद्य निवेदित करें ।)
(दाएं हाथमें दो तुलसीपत्र लेकर उन्हें जल में भिगोकर उनके द्वारा नैवेद्य पर जल से प्रोक्षण करें । तुलसीपत्र हाथ में पकडे रहें और बायां हाथ अपनी छाती पर रखकर निम्न मंत्र के ‘स्वाहा’ शब्द का उच्चारण करते समय दायां हाथ नैवेद्य से देवता की दिशा में आगे ले जाएं ।)

प्राणाय स्वाहा ।
(यह प्राण के लिए अर्पित कर रहा हूं ।)

अपानाय स्वाहा ।
(यह अपान के लिए अर्पित कर रहा हूं ।)

व्यानाय स्वाहा ।
(यह व्यान के लिए अर्पित कर रहा हूं ।)

उदानाय स्वाहा ।
(यह उदान के लिए अर्पित कर रहा हूं ।)

समानाय स्वाहा ।
(यह समान के लिए अर्पित कर रहा हूं ।)

ब्रह्मणे स्वाहा ।
(यह ब्रह्म को अर्पित कर रहा हूं ।)
(हाथ में लिया एक तुलसीपत्र नैवेद्य पर और दूसरा भगवान श्रीकृष्ण के चरणों पर चढाएं । निम्न मंत्र के ‘समर्पयामि’का उच्चारण करते समय आचमनी से दाएं हाथ पर जल लेकर पूजा की थाली में (ताम्हन में) छोड दें ।)

१९. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्रीकृष्णाय नमः । नैवेद्यं समर्पयामि ।
(श्रीकृष्ण को नैवेद्य अर्पित करता हूं ।)

मध्ये पानीयं समर्पयामि ।
(मध्य में पीने हेतु जल अर्पित करता हूं ।) उत्तरापोशनं समर्पयामि ।
(आपोशन के लिए जल अर्पित करता हूं ।)

हस्तप्रक्षालनं समर्पयामि ।
(हस्तप्रक्षालन हेतु जल अर्पित करता हूं ।)

मुखप्रक्षालनं समर्पयामि ।
(मुखप्रक्षालन हेतु जल अर्पित करता हूं ।)

करोद्वर्तनार्थे चन्दनं समर्पयामि ।
(हाथ में लगाने के लिए चंदन अर्पित करता हूं ।)

मुखवासार्थे पूगीफलताम्बूलं समर्पयामि ।
(मुखको गंधित करने हेतु वास हेतु पान-सुपारी अर्पित करता हूं ।)

२०. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्रीकृष्णाय नमः । मङ्गलार्तिक्यदीपं समर्पयामि ।
(श्रीकृष्ण को नमस्कार कर मंगलारती उतारता हूं ।)
(‘आरती कुंजबिहारी की श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की’ भगवान श्रीकृष्ण की यह आरती गाएं ।)

२१. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्रीकृष्णाय नमः । कर्पूरदीपं समर्पयामि ।
(श्रीकृष्ण को नमस्कार कर कर्पूरारती उतारता हूं ।)
(कर्पूरारती उतारें ।)

२२. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्रीकृष्णाय नमः । नमस्कारान् समर्पयामि ।
(श्रीकृष्ण को नमस्कार करता हूं ।)
(साष्टांग नमस्कार करें ।)

२३. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्रीकृष्णाय नमः । प्रदक्षिणां समर्पयामि ।
(श्रीकृष्ण की परिक्रमा करता हूं ।)
(घडी के सुईयों की दिशा में, अर्थात बाएं से दार्इं ओर वर्तुलाकार घूमते हुए परिक्रमा करें ।)

२४. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । श्रीकृष्णाय नमः । मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि ।
(श्रीकृष्ण को मंत्रपुष्पांजलि अर्पित करता हूं ।)
(अंजुलि में फूल लेकर चढाएं । जिन्हें ‘राजाधिराजाय’, मंत्रपुष्पांजलि का यह श्लोक योग्य उच्चारोंसहित आता होगा, वे उस श्लोक के साथ मंत्रपुष्पांजलि अर्पित करें ।)

आवाहनं न जानामि न जानामि तवार्चनम् । पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वर ।।
(हे परमेश्वर, मैं नहीं जानता हूं कि ‘आपका आवाहन वैâसे करें, आपकी उपासना वैâसे करें, आपकी पूजा कैसे करें ।’ इसलिए आप मुझे क्षमा कीजिए ।)

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर । यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे ।।
(हे देवेश्वर, मैं मंत्र, क्रिया अथवा भक्तिहीन हूं । इस पूजा को आप ही परिपूर्ण मान लीजिए ।)

कायेन वाचा मनसेन्द्रियैर्वा बुद्ध्यात्मना वा प्रकृतिस्वभावात् ।
करोमि यद्यत् सकलं परस्मै श्रीकृष्णाय इति समर्पये तत् ।।
(हे श्रीकृष्ण, शरीर, वाणी, मन, (अन्य) इंद्रिय, बुद्धि, आत्मा अथवा प्रकृतिस्वभाव के अनुसार मैं जो-जो करता हूं, वह मैं आपको अर्पित कर रहा हूं ।)

अनेन कृतपूजनेन श्रीकृष्णः प्रीयताम् ।
(इस पूजन से श्रीकृष्ण प्रसन्न हो ।)
(ऐसा कहकर दाएं हाथ पर जल लेकर छोड दें और दो बार आचमन करें ।)
(भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति पर अथवा चित्र पर निम्न उपचार अर्पित करें । पाद्य से लेकर स्नान तक के उपचारों के लिए मूर्ति हो, तो मूर्ति पर और छायाचित्र हो, तो थाली में (ताम्हन में) जल छोडें ।)

चंद्रपूजा

(बीडे के पत्ते पर चंदन से चंद्र का चित्र निकालें । निम्न मंत्र से पूजा करें ।)

सोमेश्वराय सोमाय तथा सोमोद्भवाय च ।
सोमस्य पतये नित्यं तुभ्यं सोमाय वै नमः ।।
(अमृतसमान सोमेश्वर को तथा सोम (चंद्र) को नमस्कार करता हूं और चंद्र से उत्पन्न और यज्ञ में डाली जानेवाली सोमलता को मैं नित्य नमस्कार करता हूं ।)

चन्द्रमसे नमः । ध्यायामि । सर्वोपचारार्थे गन्धाक्षतपुष्पं समर्पयामि ।
(चंद्र का ध्यान कर सर्व उपचार सिद्ध होने के लिए गंध, फूल, अक्षत अर्पित करता हूं ।)

निम्न मंत्र से चंद्र को अर्घ्य दें ।
(अंजुलि में गंध, फूल, अक्षता, जल लें । निम्न मंत्र का उच्चारण कर देवता के सामने थाली में (ताम्हन में) छोड दें ।)

क्षीरोदार्णवसम्भूत-अत्रिगोत्रसमुद्भव ।
गृहाणार्घ्यं शशाङ्केश रोहिणीसहितो मम ।।
(क्षीरसागर से उत्पन्न, अत्रिगोत्र में जन्मे, रोहिणीसहित रहनेवाले, हे चंद्र आप यह अर्घ्य स्वीकार करें ।)

ज्योत्स्नापते नमस्तुभ्यं ज्योतिषां पतये नमः ।
नमस्ते रोहिणीकान्त अर्घ्यं नः प्रतिगृह्यताम् ।।
(हे ज्योत्स्नापते, चांदनियों के के स्वामी (पति), मैं आपको नमस्कार करता हूं । हे रोहिणीपते चंद्र, आप यह अर्घ्य स्वीकार करें । मैं आपको नमस्कार करता हूं ।)

चन्द्रमसे नमः । इदमर्घ्यं दत्तं न मम ।
(चंद्र को मैं नमस्कार करता हूं । यह अर्घ्य मैंने दे दिया । यह अब मेरा नहीं ।)

श्रीकृष्ण को अर्घ्य दें । (अंजुलि में गंध, फूल, अक्षता, जल लें । निम्न मंत्र का उच्चारण कर देवता के सामने थालीमें (ताम्हन में) छोड दें ।)

जातःकंसवधार्था य भूभारोत्तारणाय च ।
पाण्डवानां हितार्थाय धर्मसंस्थापनाय च ।।
कौरवाणां विनाशाय दैत्यानां निधनाय च ।
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं देवक्या सहितो हरे ।।
(कंस का वध करने, भूमि पर विद्यमान दुष्टों का भार न्यून करने, पांडवों का हित संजोने, धर्मसंस्थापना करने, कौरवों का विनाश करने और राक्षसों का नाश करने हेतु अवतार धारण करनेवाले; देवकीसहित आए हे हरि, मैंने दिए इस अर्घ्य का स्वीकार कीजिए ।)

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।
श्रीकृष्णाय नमः । इदमर्घ्यं दत्तं न मम ।
त्राहि मां सर्वलोकेश हरे संसारसागरात् ।
त्राहि मां सर्वपापघ्न दुःखशोकार्णवात्प्रभो ।।
(हे सर्व लोकों के ईश (श्रीकृष्ण), इस संसारसागर से आप मेरी रक्षा कीजिए । सर्व पाप नष्ट करनेवाले हे श्रीकृष्ण, दुःख और शोकसमुद्र से आप मेरी रक्षा कीजिए ।)

सर्वलोकेश्वर त्राहि पतितं मां भवार्णवे ।
त्राहि मां सर्वदुःखघ्न रोगशोकार्णवाद्धरे ।।
(हे जगदीश, भवसागर में पडे मुझको आप पार करा लें । सर्व दुःखों का हरण करनेवाले हे श्रीकृष्ण, आप इस शोकसागर से मेरी रक्षा कीजिए ।)

दुर्गतांस्त्रायसे विष्णो ये स्मरन्ति सकृत्सकृत् ।
त्राहि मां देवदेवेश त्वत्तो नान्योस्ति रक्षिता ।।
(हे परमेश्वरस्वरूप, जो एक बार भी आपका स्मरण करते हैं, उनकी आप दुर्गति से रक्षा करते हैं । हे देवाधिदेव, आप जैसा रक्षणकर्ता दूसरा कोई भी नहीं, आप मेरी रक्षा कीजिए ।)

यद्वा क्वचनकौमारे यौवने यच्चवार्धके ।
तत्पुण्यं वृद्धीमायातु पापं दह हलायुध ।।
(कुमारावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था में मैंने जो कुछ पुण्य किया है, उसमें वृद्धि होने दीजिए और मेरा पाप जल जाने दीजिए, ऐसी हे हलायुध (श्रीकृष्ण) आपके चरणों में प्रार्थना !)

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।
श्रीकृष्णाय नमः । प्रार्थनां समर्पयामि ।
(श्रीकृष्ण को प्रार्थना करता हूं ।)
(हाथ जोडकर प्रार्थना करें और भगवान की कृपा से भगवान श्रीकृष्ण की सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ, इसलिए कृतज्ञता व्यक्त करें । अंत में दो बार आचमन करें ।)

टिप्पणी १ – यहां देशकाल लिखते समय संपूर्ण भारत देश को सामने रखते हुए ‘आर्यावर्तदेशे’, ऐसा उल्लेख किया है । जो ‘जम्बुद्वीपे भरतवर्षे भरतखण्डे दण्डकारण्ये देशे गोदावर्याः’ इस प्रकार से स्थानानुसार अचूक देशकाल जानते होंगे, वे तद्नुसार योग्य देशकाल का उच्चारण करें ।

टिप्पणी २ – उपर्युक्त देशकाल ‘श्रावण कृष्ण अष्टमी (२६.८.२०२४)’ के अनुरूप यहां दिया है । (मूल स्थान पर)

 

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