अनुक्रमणिका
- १. सितोपलादी चूर्ण
- १ अ. खांसी और पुराना ज्वर
- १ आ. क्षय (शरीर कृशकाय होना) और रक्तज कास (रक्तदोष के कारण आनेवाली खांसी)
- १ इ. मंदाग्नि (पचनशक्ति मंद होना अथवा खाया हुआ न पचना) एवं अरुचि (मुंह में स्वाद न होना)
- १ ई. उरोदाह (गले में और छाती में पित्त के कारण जलन होना
- १ उ. गर्भवती महिलाओं के लिए उपयुक्त
- १ ऊ. शिशु की हड्डियां सुदृड और शिशु हृष्ट-पुष्ट होने के लिए
- २. चंद्रामृत रस (गोलियां)
- ३. शृंगाराभ्र रस (गोलियां)
१. सितोपलादी चूर्ण
आयुर्वेद में राजयक्ष्मा (तपेदिक अर्थात टीबी) जैसी गंभीर बीमारियों में श्वसनसंस्था का दूषित कफ बाहर निकालना, शरीर की अग्नि का दीपन करना (पचनशक्ति सुधारना) और समस्त शरीर को बल देने के लिए इस औषधि का उपयोग होता है । ‘राजयक्ष्मा’ इस रोग में समस्त शरीर क्षीण होता जाता है । खांसी, बुखार जैसे लक्षण भी होते हैं । आधुनिक काल के क्षयरोग में इसके कुछ लक्षण पाए जाते हैं । इसलिए क्षयरोग में भी शरीर को शक्ति देने के लिए इस औषधि का उपयोग होता है । आधा से एक चम्मच औषधि दिन में २ बार शहद और घी के साथ लें । खांसी के साथ यदि प्रत्येक बार कफ गिर रहा हो, तो देसी घी के दुगुना शहद लें । खांसी सूखी हो अथवा पेट में जलन हो रही हो तो शहद के दुगुना देसी घी लें । (शहद और देसी घी कभी भी समान मात्रा में न लें ।)
१ अ. खांसी और पुराना ज्वर
श्वसनमार्ग से आसानी से दूषित कफ बाहर निकालना और आवश्यक अच्छा कफ निर्माण करना, यह कार्य इस औषधि के सेवन से होता है । सामान्यत: १ सप्ताह यह औषधि लें ।
१ आ. क्षय (शरीर कृशकाय होना) और रक्तज कास (रक्तदोष के कारण आनेवाली खांसी)
अन्य औषधियों के साथ सितोपलादी चूर्ण भी १ से ३ माह लें । इसके साथ ही १ – १ चिमटी प्रवाळ पिष्टी लेने से अच्छा लाभ होता है ।
१ इ. मंदाग्नि (पचनशक्ति मंद होना अथवा खाया हुआ न पचना) एवं अरुचि (मुंह में स्वाद न होना)
दोनों बार भोजन के १५ मिनट पहले लें । केवल चूर्ण चुभलाकर भी खा सकते हैं ।
१ ई. उरोदाह (गले में और छाती में पित्त के कारण जलन होना
जब कष्ट हो तब एक चौथाई चम्मच चूर्ण और २ चिमटी प्रवाल पिष्टी का मिश्रण चुभलाकर खाएं ।
१ उ. गर्भवती महिलाओं के लिए उपयुक्त
गर्भवती महिलाओं को खांसी में यह उपयुक्त है । इसके साथ ही होनेवाला शिशु हृष्टपुष्ट, तेजस्वी और मेधावी होने में सहायता हो, इसलिए प्रवाल भस्म २ चिमटी और सितोपलादी चूर्ण एक चौथाई (पाव) चम्मच, इस मिश्रण को २ चम्मच देसी घी और १ चम्मच शहद के मिश्रण से ६ – ७ माह प्रतिदिन २ बार लें । यह औषधि आरंभ करने से पहले वैद्य से परामर्श करें ।
१ ऊ. शिशु की हड्डियां सुदृड और शिशु हृष्ट-पुष्ट होने के लिए
२ चिमटी सितोपलादी चूर्ण और १ चिमटी प्रवाल भस्म का मिश्रण सवेरे खाली पेट आधा चम्मच देसी घी और एक चौथाई (पाव) चम्मच शहद के मिश्रण से दीर्घ काल (३ से ६ माह) लें । इससे पहले वैद्य से परामर्श करें ।
२. चंद्रामृत रस (गोलियां)
यह ऐसी औषधि है कि किसी भी प्रकार की खांसी में इसका उपयोग कर सकते हैं । १ – २ गोलियां दिन में २ – ३ बार ५ से ७ दिन लें । गोलियों का चूर्ण शहद में मिलाकर, इसे चुभलाकर खाने से अधिक लाभ होता है । खांसी आते समय १ – २ गोलियां केवल चुभलाकर खाना भी पर्याप्त है ।
३. शृंगाराभ्र रस (गोलियां)
आयुर्वेद में अभ्रक भस्म सर्व शरीरघटकों को पोषण देनेवाली औषधि के रूप में प्रसिद्ध है । शृंगाराभ्र रस औषधि में अभ्रक भस्म मुख्य घटक होने से यह औषधि भी शरीरघटकों को पोषण देने में उपयुक्त है । यह औषधि विशेषरूप से श्वसनसंस्था को बल देनेवाली है । सवेरे-शाम एक-एक गोली का चूर्ण शहद के साथ खाएं ।
३ अ. श्वसनसंस्था के सभी विकारों में श्वसनसंस्था को बल देने के लिए उपयुक्त
१५ दिन से १ माह औषधि लें ।
३ आ. आम्लपित्त एवं पण्डुरोग
अन्य औषधियों के साथ इस औषधि को लेने से शरीर के संबंधित अवयवों को शक्ति मिलती है और यह रोग शीघ्र ठीक होने में सहायता होती है । यह औषधि १५ दिन से १ माह तक लें ।
यह औषधि अपने मन से न लेते हुए वैद्य के मार्गदर्शनानुसार ही लेनी चाहिए; परंतु कई बार वैद्य के पास तुरंत जाने जैसी स्थिति नहीं होती । कई बार वैद्यों के पास जाने तक औषधि मिलना आवश्यक होता है, तो कई बार थोडा-बहुत औषधि-पानी करने पर वैद्य के पास जाने की आवश्यकता ही नहीं होती । इसलिए ‘प्राथमिक उपचार’ के रूप में यहां कुछ आयुर्वेद की औषधियां दी हैं । औषधि लेकर भी अच्छा न लगे तो यथाशीघ्र स्थानीय वैद्य से परामर्श करें ।