आयुर्वेद की कुछ सुवर्णयुक्त औषधियां

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आयुर्वेद की औषधियों में ‘सुवर्णयुक्त औषधियों (सुवर्णकल्प) की  उत्तम ‘रसायन’ में गणना होती है । ‘सुवर्ण’ अर्थात ‘सोने’ । सुवर्णयुक्त आयुर्वेद की औषधियों में साेने की भस्म होती है । इसलिए इस औषधि का मूल्य अधिक होता है । फिर भी ये औषधियां अत्यंत प्रभावशाली होने से विशेषरूप से आपातकालीन स्थिति में (इमर्जन्सी में) जीवनरक्षक (लाईफ सेविंग) के रूप में उपयोगी होती हैं । आयुर्वेद में ‘रसायन’ अर्थात ‘शरीर के सभी उपयुक्त घटकों को उत्तम बल देनेवाली औषधि ।’ यह शरीर की क्षमता बढानेवाली औषधि होने से इसके गंभीर दुष्परिणाम नहीं होते । कुछ महत्वपूर्ण सुवर्णकल्पों के उपयोग यहां दिए हैं ।

१. वसंत मालती रस (स्वर्ण)

इसी को ‘सुवर्ण मालिनी वसंत’ भी कहते हैं । (साभार : ‘भारत भैषज्य रत्नाकर’, भाग ४; गोली का  आकार : अनुमान से १०० मिलीग्राम) । आयुर्वेद में ‘सर्वरोगे वसन्तः ।’ अर्थात ‘सभी रोगों में वसंतकल्प उपयुक्त है’, ऐसा वर्णन किया है । (‘वसंतकल्प’ अर्थात ‘जिन औषधियों के नामों में ‘वसंत’ है, वह औषधि, उदा. सुवर्ण मालिनी वसंत, लघु मालिनी वसंत’ । आयुर्वेद का ‘रसशास्त्र’ एक उपशास्त्र है । इसमें आई औषधियों को ‘रस’ कहते हैं । ये औषधियां अधिकांशत: गोलियों के स्वरूप में होती हैं । )

१ अ. रोग के कारण अथवा अन्य कारणों से आई कमजोरी दूर होने के लिए उपयुक्त

ज्वर (बुखार) इत्यादि बीमारी में उसके ठीक हो जाने पर जो थकान होती है, उसे दूर करने के लिए इस औषधि का उत्तम उपयोग होता है । यह औषधि शरीर को चाय अथवा कॉफी समान कुछ समय के लिए उत्तेजना देनेवाली नहीं होती, अपितु शरीर के हृदय आदि अवयवों को बल देनेवाली है । १५ दिन से १ माह सवेरे खाली पेट एक गोली का चूर्ण थोडे से शहद के साथ मिलाकर लें । (एक प्लेट में गोली लें और उसे कटोरी से दबा देने पर गोली का चूर्ण बन जाता है ।) औषधि लेने के पश्चात १५ मिनट तक कुछ भी खाएं-पीएं नहीं । कोरोना महामारी के काल में कोेरोना ठीक हो जाने पर ऐसा लगना मानो शरीर की पूरी शक्ति ही निकल गई है, तब इस औषधि के सेवन से बहुत लाभ देखा गया है । इसके असंख्य उदाहरण हैं ।

१ आ. शरीर क्षीण होनेवाले किसी भी विकार में शरीर की शक्ति बढाने के लिए उपयुक्त

क्षयरोग, शुक्रधातु की क्षीणता (बारंबार नींद में वीर्यस्राव होकर थकान आना), पुराने अपचन का विकार (संग्रहणी), गले की गांठ बढना (गंडमाला अर्थात थायरॉयड का बढना), पंडूरोग, पुराना ज्वर (बुखार) इत्यादि विकारों में १५ दिन से १ माह प्रतिदिन एक गोली का चूर्ण सवेरे खाली पेट शहद के साथ सेवन करें ।

१ इ. अतिसार (दस्त/जुलाब)

अनेक दिन होनेवाले अतिसार में अच्छा उपयोग होता है । दिनभर में बहुत बार शौच जाना नहीं पडता है; परंतु जब शौच को जाते हैं तब मानो नल खोलने समान गिरना आरंभ हो जाता है । शौच को बैठते ही एकदम शौच हो जाती है, इस प्रकार के अतिसार में इस औषधि का विशेष उपयोग होता है । इस औषधि के सेवन से अंतडियों की शक्ति बढने लगती है । १५ दिन से १ माह तक प्रतिदिन सवेरे एक गोली का चूर्ण थोडे से शहद में लें । (थोडा-थोडा; परंतु अनेक बार शौच हाे रही हो, तो इस औषधि के स्थान पर  ‘महालक्ष्मीविलास रस’ का अच्छा उपयोग होता है ।)

१ ई. ‘सलाईन’ मिलने तक प्राथमिक उपाय

अनेक बार बारंबार उलटियां और अतिसार (जुलाब) होकर शरीर के इलेक्ट्रोलाईट का क्षय होता है । ऐसे समय पर नाडी बल घट जाता है । इलेक्ट्रोलाईट के क्षय की आपूर्ति करने के लिए ‘सलाईन’ लगानी पडती है । ऐसा पाया गया है कि ‘सलाईन’ उपलब्ध होने तक तुरंत एक गोली का चूर्ण शहद में लेने पर नाडी बल बढ जाता है । वैद्यों के परामर्श से अन्य उपचार अवश्य करें ।

वैद्य मेघराज माधव पराडकर

१ उ. आपातकालीन स्थिति ( इमर्जेंसी) में उपयुक्त

किसी भी आपातकालीन स्थिति में (इमर्जेंसी में) उसी क्षण एक गोली का चूर्ण थोडे से शहद में मिलाकर उसका सेवन करें । शहद न मिलने पर आधे चम्मच देसी घी में मिलाकर उसका सेवन करें । देसी घी न हो तो थोडे से पानी में चूर्ण मिलाकर अथवा गोली दांतों से चबाकर खाएं ।

१ ऊ. बेसुध (बेहोश) होना

बेसुध (बेहोश) पडे अथवा कोमा में गए व्यक्ति को तुरंत अथवा अधिकाधिक १ माह तक दिन में एक  गोली का चूर्ण शहद में मिलाकर होठों के अंदर के भाग पर अथवा मसूडों पर लगाएं । इससे यह रक्त में अवशोषित हो जाता है और अपना कार्य करने लगता है ।

१ ए. औषधि का उपयोग कब न करें ?

सुवर्ण मालिनी वसंत के उपयोग से कई बार कुछ लोगों का रक्तदाब (ब्लड प्रेशर) बढ जाता है और नाक अथवा गुदद्वार से रक्त गिरने लगता है । इससे जिन्हें नाक की नसों के फूटने (नाक से रक्तस्राव होना), रक्तार्श (मूलव्याधि से रक्त गिरना) अथवा अनियंत्रित उच्च रक्तदाब जैसे कष्ट हों, वे इस औषधि का सावधानी से उपयोग करें । ऐसा कष्ट होने पर तुरंत ही औषधि बंद कर दें । अन्य औषधियों से रक्तदाब नियंत्रण में हो, तो इस औषधि का उपयोग कर सकते हैं ।

२. महालक्ष्मीविलास रस

इसमें सुवर्णभस्मासहित अभ्रक भस्म, वंग भस्म, शुद्ध हरताळ, ताम्र भस्म इत्यादि अन्य औषधियां होती हैं । (साभार : ‘भारत भैषज्य रत्नाकर’, भाग ४; गोली का आकार : अनुमान से १०० मिलीग्राम) सुवर्ण मालिनी वसंत के वर्णन में दिए सभी विकारों में इस औषधि का उपयोग करते हैं । उनके साथ ही आगे दिए गए अन्य विशेष स्थानों पर भी इस औषधि का उपयोग हो सकता है ।

२ अ. श्वसनसंस्था के विकार में श्वसनसंस्था को बल मिलने के लिए उपयुक्त

पुरानी सर्दी, दमा (अस्थमा), क्षयरोग जैसे श्वसनसंस्था के किसी भी विकार में इस औषधि से श्वसनसंस्था के सुदृढ होने में सहायता होती है । १५ दिनों से १ माह सवेरे खाली पेट एक गोली का चूर्ण थोडे से शहद में मिलाकर उसका सेवन करें ।

२ आ. तीव्र सिरदर्द

सिर मेें तीव्र वेदना हो रही हो, तो ७ दिन सवेरे खाली पेट एक गोली का चूर्ण शहद के साथ लें ।

२ इ. अतिसार (जुलाब)

थोडी-थोडी; परंतु बहुत बार शौच हो रही हो तो इस औषधि का अच्छा उपयोग होता है । १५ दिनों से १ माह तक, सवेरे खाली पेट एक गोली का चूर्ण थोडे से शहद में मिलाकर लें ।

२ ई. जननेंद्रियों को बल देने के लिए उपयुक्त

शुक्रधातु की क्षीणता (प्रतिदिन सोते समय वीर्यस्राव होने से थकान आना), स्त्रियों के योनीमार्ग से श्वेतस्राव होना जैसे विकारों में जननेंद्रियों को बल देने के लिए १५ दिन से १ माह तक, सवेरे खाली पेट एक गोली का चूर्ण थोडे से शहद में मिलाकर उसका सेवन करें ।’

यह औषधि अपने मन से न लेते हुए वैद्य के मार्गदर्शनानुसार ही लेनी चाहिए; परंतु कई बार वैद्य के पास तुरंत जाने जैसी स्थिति नहीं होती । कई बार वैद्यों के पास जाने तक औषधि मिलना आवश्यक होता है, तो कई बार थोडा-बहुत औषधि-पानी करने पर वैद्य के पास जाने की आवश्यकता ही नहीं होती । इसलिए ‘प्राथमिक उपचार’ के रूप में यहां कुछ आयुर्वेद की औषधियां दी हैं । औषधि लेकर भी अच्छा न लगे तो यथाशीघ्र स्थानीय वैद्य से परामर्श करें ।

– वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१४.७.२०२२)

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