ज्वर (बुखार) में उपयुक्त आयुर्वेद की कुछ औषधियां

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१. महासुदर्शन घनवटी

वैद्य मेघराज माधव पराडकर

‘यह औषधि किसी भी प्रकार के ज्वर में (बुखार में) बिना किसी अडचन के उपयुक्त है । (साभार : ‘सिद्धयोग संग्रह’ / ‘आयुर्वेद सार संग्रह’) इस औषधि के कारण शरीर के ज्वर का विषैलापन मल के माध्यम से बाहर निकलने में सहायता होती है । हाल ही में आए बुखार में, साथ ही पुराने बुखार में भी यह औषधि लाभदायी है । जब बुखार आने की संभावना हो, तब यह औषधि ज्वर को प्रतिबंधित करने में सहायक होती है ।

१ अ. ज्वर

ज्वर आने की संभावना होने पर अथवा जब ज्वर हो, तब २ – ३ दिन एक-एक गोली का चूर्ण गुनगुने पानी के साथ दिन में २ – ३ बार लें । ३ वर्ष की कम आयु के बच्चों को एक चौथाई और ३ से १२ वर्ष की आयुवाले बच्चों को आधी, इस मात्रा में औषधि लें । कई बार बुखार में सूखी खांसी आती है । ऐसे समय पर इस औषधि के स्थान पर संशमनी वटी समान अन्य औषधियों का उपयोग करें ।

१ आ. पित्त होना

गले में अथवा छाती में जलन होने पर इस औषधि को चबाकर खाने से लाभ होता है । कष्ट हो, तब १ गोली चबाकर खाएं । गोली बहुत कडवी होती है ।

२. संशमनी वटी

यह औषधि हाल ही में आए बुखार की तुलना में पुराने ज्वर में अधिक अच्छा कार्य करती है ।  (हाल ही में आए बुखार में महासुदर्शन घनवटी औषधि लें ।) इस औषधि में गुळवेल सहित लोहभस्म, सुवर्णमाक्षिक भस्म एवं अभ्रक भस्म होती है । इसकारण रक्त की गुणवत्ता बढाने में सहायता होती है । इस औषधि का उपयोग सर्वसाधारण रोगप्रतिकारक शक्ति बढाने के लिए भी होता है । कोरोना महामारी के काल में यह औषधि बहुत प्रसिद्ध हो गई । गर्भवती, प्रसूता, छोटे बच्चे, नाजुक प्रकृति के मनुष्य, इसके साथ ही वयोवृद्ध भी यह औषधि बेझिझक उपयोग कर सकते हैं । दिन में एक-एक गोली का चूर्ण २ बार लें । ३ वर्ष की कम आयु के बच्चों को गोली का एक चौथाई भाग (पाव) और ३ से १२ वर्ष आयु के बच्चे को आधी गोली दें ।

२ अ. पुराना बुखार

पुराने बुखार में इसका अच्छा उपयोग होता है । ऐसी बुखारों में कई बार प्लीहा (तिल्ली अथवा स्प्लीन) बढ जाती है । उस समय भी यह औषधि उपयुक्त होती है । इस औषधि को १ माह लें ।

२ आ. पण्डुरोग

शरीर क्षीण होना थकान और पण्डुरोग (हिमोग्लोबिन न्यून होना), इनमें भी यह उपयुक्त है । यह औषधि १ से ३ माह लें । इसके साथ ही रक्त बढानेवाली अन्य औषधि भी लें ।

२ इ. अनेक दिनों की खांसी

१ – २ सप्ताह औषधि लें । १ माह से अधिक दिन खांसी हो तो वैद्य से परामर्श करें ।

२ ई. श्वेतप्रदर (योनिमार्ग से सफेद स्राव जाना) और वीर्यस्राव

१ से ३ माह औषधि लें ।

२ उ. स्मरणशक्ति बढाने के लिए, मस्तिष्क और पचनसंस्था को बल देने के लिए, इसके साथ ही किसी भी दीर्घकाल रोग में रक्त की गुणवत्ता बढने से शक्ति आने के लिए १ से ३ माह तक औषधि लें ।

३. जयमंगल रस

यह सुवर्णयुक्त औषधि होने से ज्वर (बुखार) की आपातकालीन स्थिति में (इमर्जन्सी में) उपयोगी होती है । ज्वर (बुखार) १०४ अंश फेरन्हाईट से अधिक होने पर एक गोली का चूर्ण कर, उसे २ चिमटी जीरे के पाउडर और थोडे से शहद में मिलाकर लें । जीरा पाउडर उपलब्ध न हो तो केवल शहद के साथ और यदि शहद भी उपलब्ध न हो तो गोली चबाकर खाएं । (अधिक ज्वर में अपने मन से औषधि न लेते हुए तुरंत वैद्य से मिलना चाहिए; परंतु वैद्य के पास पहुंचने तक प्राथमिक उपचार के रूप में यह औषधि ले सकते हैं ।) इस औषधि में सोने की भस्म के साथ चांदी की भी भस्म होने से इस औषधि का मूल्य अधिक होता है ।’

औषधि अपने मन से न लेते हुए वैद्य के मार्गदर्शनानुसार ही लेनी चाहिए; परंतु कई बार वैद्य के पास तुरंत जाने की स्थिति नहीं होती । कई बार वैद्य के पास जानेतक तुरंत ही औषधि मिलनी आवश्यक होती है, तो कई बार थोडी-बहुत औषधि लेने पर वैद्यों के पास जाने की बारी ही नहीं आती । इसलिए ‘प्राथमिक उपचार’के रूप में यहां आयुर्वेद की कुछ औषधियां दी हैं । औषधि लेने के पश्चात भी ठीक न लगने पर स्थानीय वैद्य से अवश्य परामर्श करें ।

– वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१४.७.२०२२)

४. ज्वर (बुखार) में दही न खाएं !

चूल्हा जलाना है तो सीधे मोटी लकडी को माचिस की तिल्ली नहीं लगाते; कारण ऐसा करने से अग्नि तुरंत नहीं जलेगी । उसीप्रकार ज्वर (बुखार) में शरीर की पचनशक्ति जब मंद हो तब ब्रेड (डबलरोटी), बिस्‍कीट, रोटी, दही, डोसा जैसे पचने में भारी पदार्थ खाने से शरीर को कोई लाभ नहीं होता । इसके विपरीत इन पदार्थों के न पचने से अपचन ही अधिक होता है । ‘दही में प्रोटीन्स अधिक होते हैं । रोगप्रतिकारक शक्ति बढाने के लिए प्रोटीन्स का सेवन आवश्‍यक होता है’, इस अर्धसत्‍य ज्ञान के कारण कोरोना के काल में ज्वर (बुखार) के समय अनेक लोगों को दही खाने की सलाह दी गई । इस दही के कारण पचनशक्ति के मंद हो जाने से फेफडों में पानी हो जाने से मरीज की बीमारी बढ जाने के अनेक उदाहरणे वैद्यों के ध्यान में आए । ऐसे रोगियों को दही बंद कर उनका आहार अग्नि (पचनशक्ति) बढाने के लिए पूरक कर देने से मरीज शीघ्र ठीक होने लगे । संक्षेप में कोेई पदार्थ कितना भी पौष्टिक हो, तब भी शरीर की अग्नि यदि उसे पचा ले, तब ही वह पौष्टिक होता है । दही पौष्‍टिक भले ही है, तब भी ज्वर में उसे न खाएं; कारण ज्वर (बुखार) में पचनशक्ति मंद हो जाती है ।’

– वैद्य मेघराज माधव पराडकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (२९.१०.२०२३)

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