अनुक्रमणिका
- १. व्यष्टि साधना के प्रयत्न
- २. समष्टि साधना
- २ अ. चिकित्सालय में आनेवाले मरीजों को आध्यात्मिक दृश्यश्रव्य चक्रिका (वीडियो सीडी) दिखाना
- २ आ. मरीजों को साधना बताना अथवा उन्हें उनकी बीमारी के पीछे आध्यात्मिक कारण का भान करवाकर उस पर उपाय सुझाना
- २ इ. आधुनिक वैद्य एवं वर्गमित्र में सामाजिक प्रसारमाध्यमों द्वारा ‘बीमारियों के आध्यात्मिक कारण और उपाय’ विषय मेें प्रसार करना
- २ ई. मरीजों को आयुर्वेद एवं अन्य प्राचीन वैद्यकीय उपचारपद्धतियों की जानकारी देना
- २ उ. वैद्यकीय क्षेत्र में हिन्दू धर्महानि के विरोध में जागृति करना
- २ ऊ. हिन्दू वैद्यों का संगठन
- २ ए. ‘आरोग्य सहायता समिति’के अंतर्गत सेवा करना
- २ ऐ. आश्रम स्तर पर लगनेवाली औषधि एवं उनके संदर्भ में सेवा करना
- २ ओ. संत एवं साधक की वैद्यकीय सेवा करना और उस समय उनका सत्संग मिलना
- ३. कृतज्ञता
- आधुनिक वैद्य मनोज वसंतलाल सोलंकी के चिकित्सालय में हुए परिवर्तन
मडगांव (गोवा) के ६८ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर के आधुनिक वैद्य मनोज सोलंकी ने सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की कृपा से वैद्यकीय व्यवसाय के माध्यम से किए साधना के प्रयत्न !
‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की कृपा से मेरे ध्यान में आया, ‘मैं पूर्णकालीन साधना नहीं कर सकता; परंतु उपलब्ध समय के अनुसार साधना करने का मुझे अवसर है । इस स्थिति में यदि आध्यात्मिक प्रगति करनी है, तो मुझे इस समय का पूरा-पूरा उपयोग कर साधना करना अनिवार्य है ।’ सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी की कृपा से ही मैं व्यष्टि साधना और समष्टि साधना के प्रयत्न कर सका ।
१. व्यष्टि साधना के प्रयत्न
वर्ष २००८ में देवद (पनवेल) में हुए शिविर के समय स्वभावदोष एवं अहं के निर्मूलन की प्रक्रिया से मेरे ध्यान में आया कि, ‘इस प्रक्रिया में २४ घंटे अपने स्वभावदोषों और अहं पर ध्यान रखकर प्रयत्न करने हैं । यदि हमें साधना में आगे जाना है, तो प्रामाणिकता से प्रक्रिया किए बिना वह संभव नहीं ।’
१ अ. ‘क्रोध’ स्वभावदोष न्यून करने के लिए योग्य आध्यात्मिक दृष्टिकोण देकर स्वयं को शांत रखने का प्रयत्न करना
क्रोध के कारण हमें मरीज से निकटता साधना कठिन हो जाता है । इसके साथ ही मरीज के उपचार और अपने व्यवसाय पर नकारात्मक परिणाम होता है । मैं अपने क्रोध पर नियंत्रण लाने का कितना भी प्रयत्न करता, तब भी भगवान मुझे कुछ प्रसंगों से मेरी कमियां ध्यान में लाकर देते थे ।
चिकित्सालय बंद होने पर, अथवा किसी महत्त्वपूर्ण काम के समय मरीज के आने पर मुझे चिडचिडाहट होती थी । उस समय मुझे बहुत अस्वस्थ लगता था । इसलिए मैं आनंद नहीं अनुभव कर पा रहा था । तब मेरा चिंतन हुआ । ‘कोई रोगी जानबूझकर देर से नहीं आता । उसे कष्ट हो रहा है; इसलिए वह आता है । हमने वैद्यकीय व्यवसाय में मरीजों की सेवा करने की शपथ ली है; इसलिए मुझे शांति से उन्हें देखना चाहिए ।’ मैं अपने मन को उपरोक्त दृष्टिकोण देकर शांत रखने का प्रयत्न करता था ।
१ आ. अहं-निर्मूलन के लिए किए प्रयत्न
१ आ १. गलत कृति होने पर अन्य आधुनिक वैद्यों द्वारा ध्यान में लाई जानेपर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त कर कहना ‘आगे भी ऐसे ही सहायता करें’ : जब मुझसे हमसे कोई गलत कृति हो जाती और कोई वैद्य उसे ध्यान में लाकर देता है तो अहं के कारण हमें बुरा लगता है । ऐसे प्रसंगों में उस वैद्य को भ्रमणभाष कर चूक ध्यान में लाने के लिए कृतज्ञता व्यक्त कर ‘आगे भी ऐसे ही सहायता करें’, ऐसा कहने पर हमारा अहं न्यून होने में सहायता होती है और चुकों से सीखने की आदत पडती है ।
१ इ. गुणसंवर्धन के लिए किए प्रयत्न
१ इ १. संयम : चिंता करनेवाले मरीज चिंता के कारणवश बारंबार वही-वही प्रश्न पूछते हैं । कभी-कभी उनकी चिंता स्वाभाविक होती है । ऐसे समय पर कभी-कभी अपना संयम छूट जाता है और हमसे प्रतिक्रिया व्यक्त हो जाती है । प्रक्रिया के कारण यह ध्यान में आया कि मुझमें इस गुण का अभाव है और मैं गुणसंवर्धन के लिए प्रयत्न करने लगा ।
१ इ २. प्रीति : मरीज को अच्छी सेवा देने के लिए ‘प्रीति’ गुण बहुत ही उपयुक्त है । प्रीति निर्माण करने के लिए ‘रोगी से अनौपचारिक बोलना, उनके परिवारवालों का हाल-चाल लेना अथवा उनके व्यवसाय की स्थिति समझकर लेना’, ऐसा करने से प्रीति निर्माण होने में सहायता होती है ।
१ इ ३. त्याग : जरूरंतमंद अथवा वैद्यकीय उपचार का खर्च न उठा पानेवाले मरीजों से कम पैसे लेने पर त्याग होने में सहायता होती है और एक विशेष संतोष मिलता है ।’
– आधुनिक वैद्य मनोज वसंतलाल सोलंकी (आध्यात्मिक स्तर ६८ प्रतिशत, आयु ५७ वर्ष), मडगांव, गोवा. (८.१.२०२३)
२. समष्टि साधना
२ अ. चिकित्सालय में आनेवाले मरीजों को आध्यात्मिक दृश्यश्रव्य चक्रिका (वीडियो सीडी) दिखाना
‘मैं अपने चिकित्सालय में आनेवाले हिन्दू मरीजों को विविध आध्यात्मिक दृश्यश्रव्य चक्रिका दिखाता हूं, उदा. नामजप का महत्त्व, साधना; इसके साथ ही गुढीपाडवा, होली, दिवाली इत्यादि त्याेहारों पर दृश्यश्रव्य-चक्रिकाएं ।
२ आ. मरीजों को साधना बताना अथवा उन्हें उनकी बीमारी के पीछे आध्यात्मिक कारण का भान करवाकर उस पर उपाय सुझाना
गर्भधारणा न होनेवाले दंपति सोनोग्राफी (टिप्पणी) करवाते हैं । जब उनकी सभी रिपोर्ट सर्वसामान्य (नार्मल) होते हुए भी गर्भधारणा नहीं होती, तब मैं उन्हें उनकी स्थिति अनुसार दत्त का नामजप करना, श्राद्ध करना इत्यादि उपाय सुझाता हूं । किसी मरीज में ‘चिंता करना, यह स्वभावदोष होगा, तो मैं उसे नामजप के विषय में बताता हूं, इसके साथ ही अगले चरण का कर्करोगग्रस्त (यानी एडवान्स्ड स्टेज कैंसरग्रस्त) रोगी को यह बताते हुए कि यह प्रारब्ध का भाग है, उसे साधना करने के लिए प्रेरित करता हूं ।
टिप्पणी – विशिष्ट ध्वनितरंगों की सहायता से पेट के अवयवोें के चित्र लेकर जांच करना ।
२ इ. आधुनिक वैद्य एवं वर्गमित्र में सामाजिक प्रसारमाध्यमों द्वारा ‘बीमारियों के आध्यात्मिक कारण और उपाय’ विषय मेें प्रसार करना
‘भारतीय वैद्यकीय संस्था’का (‘इंडियन मेडिकल असोशिएशन’क) स्थानीय ‘वॉट्स अप’ गुट एवं वर्गमित्रों के ‘वॉट्स अप’ पर ‘बीमारियों के आध्यात्मिक कारण और उपाय’ के विषय में प्रसार करता हूं । ‘कोरोना का आध्यात्मिक दृष्टिकोण और नामजपादि उपाय, इसके साथ ही जीवन में प्रत्येक घटना, बीमारी के पीछे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक कारण होना, शारीरिक और मानसिक उपायों के साथ ही नामजपादि आध्यात्मिक उपाय करने पर परिपूर्ण उपचार होना’, इस संदर्भ में जानकारी दे रहे हैं ।
२ ई. मरीजों को आयुर्वेद एवं अन्य प्राचीन वैद्यकीय उपचारपद्धतियों की जानकारी देना
मेरे पास आनेवाले मरीज यदि आधुनिक वैद्यकीय शास्त्र से ठीक न होनेवाला हो, तो मैं उसे आयुर्वेद अथवा अन्य प्राचीन वैद्यकीय उपचारपद्धति करने का सुूझाव देता हूं; इसके साथ ही भारतीय वैद्यकीय संस्था के स्थानीय ‘वॉट्सअप’ गुट पर आयुर्वेद और अन्य प्राचीन वैद्यकीय उपचारपद्धति की जानकारी देकर जागृति करता हूं ।
२ उ. वैद्यकीय क्षेत्र में हिन्दू धर्महानि के विरोध में जागृति करना
हमारे ‘भारतीय वैद्यकीय संस्था’के (‘इंडियन मेडिकल असोशिएशन’के) स्थानीय ‘वॉट्स अप’ गुट पर मैंने धर्म को हानि पहूंचानेवाले प्रसंगों के विषय में जागृति की ।
२ उ १. अपने पद का दुरुपयोग कर ईसाई धर्म का प्रचार करनेवाले आधुनिक वैद्यों के विरुद्ध सामाजिक जालस्थल द्वारा जागृति करना : मई २०२१ में ‘भारतीय वैद्यकीय संस्था’के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. जयलाल ने अपने पद का उपयोग ईसाई धर्म का प्रचार करने के लिए किया था । इस संबंध में मैंने जागृति स्थानीय भारतीय वैद्यकीय संस्था के ‘वॉट्सअप’ गुट पर की थी, इसके साथ ही राज्य अध्यक्ष को पत्र लिखकर डॉ. जयलाल के क्षमा मांगने की और पद से त्यागपत्र देने की मांग की थी । इसका कुछ हिन्दू आधुनिक वैद्यों ने समर्थन दर्शाया था । डॉ. जयलाल पर अभियोग प्रविष्ट होकर उन्हें दोषी ठहराकर उन्हें कडी फटकार लगाई गई थी ।
२ उ २. ईसाई धर्म का महिमामंडन करनेवाले तेलंगाना राज्य के वैद्यकीय संचालक डॉ. गुंडू राव के विरोध में जनजागृति करना : दिसंबर २०२२ में तेलंगाना राज्य के वैद्यकीय संचालक डॉ. गुंडू राव ने ‘कोरोना ईसामसीह (जीजस) ने ठीक किया’, ऐसे वक्तव्य कर कोविड योद्धा एवं आधुनिक वैद्यों का अनादर किया था । उस विषय की जागृति ‘स्थानीय भारतीय वैद्यकीय संस्था’के ‘वॉट्सअप’ गुट पर की और लोगों के ध्यान में लाकर दिया कि धर्मनिरपेक्ष देश में ऐसी गतिविधियां हो रही हैं ।
२ ऊ. हिन्दू वैद्यों का संगठन
‘भारतीय वैद्यकीय संस्था’के स्थानीय ‘वॉट्सअप’ गुट पर अभियान चलाने पर धर्माभिमानी हिन्दू वैद्यों से मेरी पहचान हो गई और कुछ ने उसका सार्वजनिकरूप से समर्थन किया । इसके साथ ही कुछ हिन्दू वैद्यों ने अप्रत्यक्ष समर्थन दिया । अन्य पंथों की तुलना में हिन्दू वैद्यों का अपने धर्म के प्रति अभिमान अल्प लगा; कारण उन्हें अपनी छवि एक धर्मनिरपेक्ष के रूप में संजोनी है ।
२ ए. ‘आरोग्य सहायता समिति’के अंतर्गत सेवा करना
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी की कृपा से मुझे ‘आरोग्य सहायता समिति’के माध्यम से सेवा का अवसर मिला । इस समिति के अंतर्गत मैं ‘समाज के और गोवा वैद्यकीय महाविद्यालय (गोवा मेडिकल कॉलेज) के वैद्यों से संपर्क कर लेख तैयार करना, जानकारी एकत्र करना, औषधियों के साथ उसकी जानकारी देनेवाला पत्रक (पैम्फलेट) के अक्षर छोटे आकार के अक्षरों के (‘फाँट’के) लेखन के विरोध में संबंधित शासकीय अधिकारियों को निवेदन देना, समाज के वैद्यों को सम्मिलित करना इत्यादि सेवाएं की हैं । इसके साथ ही इससे पहले मैं गोवा में औषधियों के साथ आनेवाले जानकारी पत्रक में छोटे अक्षरों के लेखन के विरोध में जनहित याचिका प्रविष्ट की थी ।
२ ऐ. आश्रम स्तर पर लगनेवाली औषधि एवं उनके संदर्भ में सेवा करना
मैं ‘आश्रम स्तर पर लगनेवाली औषधियों के संदर्भ में जानकारी एकत्र करना, औषधियां उपलब्ध करवाने की सेवा करता हूं । इसके साथ ही आश्रम स्तरपर सोनोग्राफी का यंत्र खरीदने की सेवा की । मुझे कोरोना के समय आश्रम के लिए प्राणवायु यंत्र के चयन और उसे खरीदने की सेवा का अवसर मिला ।
२ ओ. संत एवं साधक की वैद्यकीय सेवा करना और उस समय उनका सत्संग मिलना
संत और साधकों की वैद्यकीय सेवा (सोनोग्राफी जांच) करने पर मुझे सत्सेवा और सत्संग मिलता है । उनसे सीखने मिलता है । साधकों से निकटता साधने का अवसर मिलता है । इन सभी के लिए मुझे भगवान के प्रति बहुत कृतज्ञता लगती है ।
३. कृतज्ञता
व्यवसाय के माध्यम से सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने मुझसे साधना के प्रयत्न करवा लिए । उनकी कृपा और उनके दिए दृष्टिकोण से मेरे लिए यह संभव हो पाया । उनके प्रति कितनी भी कृतज्ञता व्यक्त करें, वह अल्प ही है ।’
आधुनिक वैद्य मनोज वसंतलाल सोलंकी के चिकित्सालय में हुए परिवर्तन
१. ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी, सनातन के अनेक संत और साधकों के चरणस्पर्श से मेरे चिकित्सालय में सुगंध आ रही है ।
२. प्रतीक्षा कक्ष में मारक और सोनोग्राफी करनेवाले कक्ष में तारक सुगंध आ रही है ।
३. चिकित्सालय में लगाए श्रीकृष्ण के चित्र में गुलाबी छटा और प.पू. भक्तराज महाराजजी के छायाचित्र में निर्गुण स्तर पर परिवर्तन प्रतीत हो रहे हैं ।
४. सोनोग्राफी का यंत्र, मेरी कुर्सी और मरीज की जांच करनेवाले पलंग पर दैवीय कण दिखाई देते हैं ।
५. साधकों को वहां आकर अच्छा लगता है । उन्हें ऐसा नहीं लगता कि वे किसी चिकित्सालय में आए हैं ।
(‘आधुनिक वैद्य मनोज सोलंकी का ऐसा भाव रहता है कि ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवले, संत, साधक और मरीज के माध्यम से ईश्वर ही अपने चिकित्सालय में आए हैं !’ अत: ‘जहां भाव वहां भगवान’, इस उक्ती के अनुसार ईश्वर ने ‘आवश्यकता अनुसार तारक और मारक सुगंध आना, दैवीय कण दिखाई देना’, के माध्यम से अपना अस्तित्व दिखा दिया है ।
डॉ. सोलंकी का संत, साधक और मरीज से निरपेक्ष प्रेम के प्रतीकस्वरूप उनके चिकित्सालय में लगाए श्रीकृष्ण के चित्र में गुलाबी छटा दिखाई दे रही है ।
अधिकांश आधुनिक वैद्य व्यवसाय के रूप में मरीजों की जांच करते हैं । उनका विचार होता है कि वे कैसे मरीज से अधिकाधिक पैसे निकलवा सकते हैं ? इसलिए उनके चिकित्सालय में रज-तमयुक्त स्पंदन होने से वहां अच्छा नहीं लगता । इसके विपरीत डॉ. सोलंकी किसी मरीज को जांचने की सेवा साधना के रूप में करते हैं । उनका आध्यात्मिक स्तर ६८ प्रतिशत है । रोगी की जांच करते समय उनका ईश्वर से अनुसंधान रहता है । इसके साथ ही वे उस समय नामजप करते रहते हैं । उनके चिकित्सालय में संत और साधक जांच के लिए आते हैं । इन सभी कारणों से उनके चिकित्सालय में सात्त्विक वातावरण निर्माण होने से अच्छा लगता है ।’ – संकलक)