परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने संत एवं साधक के सामने एक प्रयोग किया । उसमें उन्होंने एक प्लास्टिक के सफेद बर्तन में रखे हुए पानी में एक हाथ की एक-एक कर पांचों उंगलियां डुबा दीं । तब पानी के रंग में उत्तरोत्तर परिवर्तन दिखाई दिया । उस संदर्भ में विश्लेषण यहां दिया है ।
१. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के पानी में हाथ डुबोने पर पानी के रंग में चरण दर चरण हुआ परिवर्तन
अ. प्रथम तर्जनी पानी में डुबोना : पानी का रंग हलका गुलाबी दिखाई देना
आ. तर्जनी एवं मध्यमा पानी में डुबाना : पानी का रंग अधिक गुलाबी दिखाई देना
इ. तर्जनी, मध्यमा एवं अनामिका पानी में डुबाना : पानी का रंग और अधिक गुलाबी दिखाई देना
ई. तर्जनी, मध्यमा, अनामिका एवं कनिष्ठा (छोटी उंगली) पानी में डुबाना : पानी का रंग और अधिक गुलाबी दिखाई देना
उ. पांचों उंगलियां पानी में डुबाना : रंग अधिक गुलाबी दिखना
२. परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने हाथों की उंगलियों को पानी में डुबाेने पर उस पानी का रंग गुलाबी होने का कारण !
हाथ की कनिष्ठा से अंगूठे तक की सभी उंगलियों में पृथ्वी, आप, तेज, वायु एवं आकाश, यह पंचतत्त्व होते हैं । परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी को प्रथम तर्जनी पानी में डुबोने पर उससे प्रक्षेपित होनेवाले तेजतत्त्व के कारण पानी का रंग हलका गुलाबी हो जाता है । तदुपरांत तर्जनी सहित मध्यमा, अनामिका एवं कनिष्ठा, इसप्रकार एक-एक उंगली पानी में डुबोते जाने पर प्रत्येक उंगली से प्रक्षेपित होनेवाला तेजतत्त्व पानी में आते जाने से पानी के गुलाबीपन में वृद्धि होती जाती है । पानी में उंगली डुबोनेवाले व्यक्ति के आध्यात्मिक स्तर अनुसार विविध रंग दिखाई देते हैं ।
३. उपरोक्त प्रयोग के संदर्भ में श्री. राम होनप द्वारा पूछे गए प्रश्न एवं परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा दिए उत्तर
प्रश्न : सत्संग में उपस्थित कुछ लोगों के सामने उपरोक्त प्रयोग किया, तब आपने पानी में एक-एक कर उंगली डुबोने पर पानी में रंग धीरे-धीरे दिखाई देने लगा । यह प्रयोग पूर्ण होने पर अन्य उपस्थित लोगों के सामने यही प्रयोग दूसरी बार करने पर आपके पानी में उंगलियां डुबोने से पहले ही पानी के ऊपर मुझे सूक्ष्म से गुलाबी रंग दिखाई दे रहा था । उसका कारण क्या है ?
परात्पर गुरु डॉ. आठवले : मेरे शरीर से निरंतर पंचतत्त्वों का प्रक्षेपण होता रहता है । उसी का यह परिणाम था ।’
– श्री. राम पद्माकर होनप, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा.
परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने पानी युक्त प्लास्टिक के बर्तन में जब अपने दाएं हाथ की उंगलियां डुबोईं तब उसमें पंचतत्त्वाें के स्तर पर ध्यान में आए परिवर्तन
पंचतत्त्वों के स्तर पर कृति | उंगलियां डुबोया हुआ पानी | बिना उंगलियां डुबोया हुआ पानी |
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१. पृथ्वी – गंध आना | अच्छी गंध (सुगंध) । उसमें शीतलता होना | गंध नहीं |
२. आप – स्वाद आना | अधिक पीने की इच्छा होना | सामान्य स्वाद |
३. तेज – रंग दिखाई देना | गुलाबी छटा | सदा की भांति पारदर्शक |
४. वायु – पानी में उंगलियां डुबाकर उसका स्पर्श अनुभव करना | अच्छा लगना | – |
५. आकाश – नाद सुनाई देना | सूक्ष्मनाद अल्प सुनाई देना (टिप्पणी) | अधिक मात्रा में सुूक्ष्मनाद होना |
– (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले
टिप्पणी – उंगलियां डुबोए पानी में पृथ्वी, आप, तेज एवं वायु, इन तत्त्वों की मात्रा बढने से उस उस तत्त्व के गुण की अनुभूति अधिक मात्रा में हुई । इसके विपरीत आकाशतत्त्व निर्गुण के निकट होने से उंगलियां डुबोने पर आकाशतत्त्व की निर्गुणता अल्प होने से नाद अल्प सुनाई दिया ।
उंगलियों में आनेवाली गंध : कनिष्ठा से तर्जनी तक गंध कम होती गई एवं अंगूठे में सबसे कम आई ।
यहां प्रकाशित की जानेवाली अनुूभूतियां ‘भाव वहीं भगवान’ इस उक्तिनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूति है । वह सभी को आएगी ही ऐसा नहीं है । – संपादक |