वाराणसी आश्रम में बढा हुआ चैतन्य दर्शानेवाले बुद्धीअगम्य परिवर्तनों के विषय में यहां देखेंगे !
१. वाराणसी आश्रम में चैतन्य की वृद्धि हो रही है,
ऐसा दर्शानेवाले कुछ बुद्धीअगम्य परिवर्तन एवं साधकों को हुई अनुभूतियां !
१.अ. आश्रम के परिसर के निसर्ग में हुए परिवर्तन !
१.अ.१. ‘वाराणसी के आश्रम के प्रांगण में एक अमरूद का वृक्ष है । इस अमरूद के वृक्ष में अनेक स्थानों पर एक ही जगह पर ४ से ५ अमरूद लगते हैं और एक ही टहनी पर एक ही पंक्ति में लगते हैं । इस वृक्ष की ओर देखने पर आनंद एवं उत्साह लगता है ।
१.अ.२. आश्रम के परिसर में आम के ४ वृक्ष हैं । इस वर्ष इन वृक्षों को इतने आम लगे कि उन्हें समाप्त कैसे करना है ? ऐसा प्रश्न हमारे समक्ष था ।
१.अ.३. वैसे थोडी हवा आने पर भी आम गिर जाते हैं । इस बार हवा आई, तब भी पकने से पहले ये आम बिलकुल भी नहीं गिरे ।
१.अ.४. इस वर्ष एक दिन ध्यान में आया कि आम अब निकाल लेने चाहिए और वैसा नियोजन करना तय किया । तदुपरांत १-२ दिन हो गए, तब भी किसी कारणवश हम आम नहीं निकाल पाए । अंत में हमने इस सेवा के लिए समयमर्यादा डाली और उसी दिन सभी आम निकाल लिए । अगले ही दिन जोरों की आंधी आई । यदि हमने पिछले दिन आम न निकाले होते, तो हमें एक भी आम नहीं मिला होता । उस समय ऐसा लगा कि हमारे आम निकालने तक भगवान ने ही आंधी रोक रखी थी ।
१.अ.५. आश्रम में एक जास्वंद के फूलों का पेड है । उसपर अनेक वर्षों पश्चात फूल आए । विशेष बात यह है कि एक ही टहनी पर २ रंगों के फूल आए थे । तब हमें ऐसा प्रतीत हुआ कि ‘एक फूल में प्रभु श्रीराम का तत्त्व है, दूसरे में भगवान श्रीकृष्ण का तत्त्व है ।’
१.अ.६. आश्रम के समीप के घरों के परिसर में लगे बेल, जास्वंद, आम जैसे सात्त्विक वृक्ष भी आश्रम की दिशा में झुक रहे हैं ।
१.अ.७. आश्रम के परिसर में नेवला, गिलहरी, मोर आदि पशु-पक्षी सहजता से विचरण करते हैं । ऐसा प्रतीत होता है कि उन्हें वहां विचरण करने में जरा भी भय नहीं लगता । एक दिन एक सुंदर मोर आश्रम के परिसर में आया । वह सर्वत्र घूमकर आया और फिर आश्रम के फाटक पर कुछ समय बैठ गया । हमें नेवले के भी दर्शन होते हैं, यह एक आध्यात्मिक शुभसंकेत होता है । प्रकृति, साथ ही पशु-पक्षियों द्वारा भी इन कुछ माहों में मिलनेवाले ये शुभसंकेत देखकर ऐसा लगता है कि ‘भगवान इस माध्यम से अस्तित्व का भान करवा रहे हैं ।’
१.आ. फर्श पर पानी की लहरों समान तरंगें आना
वाराणसी आश्रम में पुरानी प्रकार की ‘मोजैक’ फर्श (टाईल्स) हैं । उनपर पानी की लहरों समान तरंगें दिखाई देती हैं । रामनाथी आश्रम की फर्श पर जैसे ये परिवर्तन दिखाई देते हैं, उसीप्रकार ये परिवर्तन यहां की पुरानी फर्श पर भी दिखाई देते हैं । यह आश्रम के आपतत्त्व में वृद्धि होने की अनुभूति है ।
१.इ. आश्रम का नूतनीकरण करते समय सात्त्विक व्यक्तियों का धर्मकार्य से जोडे जाना
१.इ.१. कुछ समय पूर्व वाराणसी में आश्रम का नूतनीकरण किया गया था । उस नूतनीकरण के काम के लिए सात्त्विक मजदूर मिले । उनमें से कुछ मजदूर अब गुरुकृपायोगानुसार साधना कर रहे हैं, तो कुछ ने नामजप आरंभ कर दिया है ।
१.इ.२. नूतनीकरण के लिए जिनसे निर्माणकार्य की सामग्री खरीदी थी, वे वितरक अब पाक्षिक ‘सनातन प्रभात’के लिए विज्ञापन देते हैं ।
१.ई. नूतनीकरण के उपरांत साधक एवं धर्माभिमानियों को हुई अनुभूति
१.ई.१. धर्मप्रेमी कुछ कालावधि के लिए आश्रम में आते हैं, तब ‘आनंद अनुभव होता है’, ‘शांति अनुभव हो रही है’, इसप्रकार की अनुभूतियां उन्हें आती हैं । ‘धर्माभिमानियों के अपनी सेवा पूर्ण कर आश्रम से जाते समय ऐसा प्रतीत होता है कि उनमें भी कुछ तो परिवर्तन हुआ है ।
१.ई.२. कोरोना महामारी के कारण कुछ साधक आश्रम नहीं आ सके थे । वे २ वर्षों उपरांत आश्रम आए, तब उन्होंने बताया कि ‘हमें यहां सनातन के रामनाथी (गोवा) आश्रम की अनुभूति आ रही है ।’
१.ई.३. ‘आश्रम के नूतनीकरण के उपरांत ऐसा लगता है कि बढे हुए चैतन्य के कारण आश्रम के साधकों की सेवा करने की क्षमता में वृद्धि हुई है । वाराणसी में हवामान अत्यंत प्रतिकूल होता है । यहां सर्दियों में बहुत ठंडी होती है, और गर्मियों में बहुत गर्मी । इसका परिणाम सभी पर होता है । सर्दियों के दिनों में सवेरे उठकर अथवा गर्मियों में कडी धूप में समाज के लोग भी घर के बाहर नहीं जाते । आश्रम के साधक मात्र सर्व स्थिति में सेवारत रहने का प्रयत्न करते हैं । साधकों को गुरुदेवजी ने इतना बल दिया है कि साधकों की सेवा पर प्राकृतिक प्रतिकूलता बाधक नहीं बनती । ‘नूतनीकरण के उपरांत, ऐसा ध्यान में आया है कि साधकों के सेवा घंटे भी बढ गए हैं ।