‘तीव्र आपातकाल में केवल साधना ही मनुष्य को बचा सकेगी’, इस विषय में परात्पर गुरु डॉक्टर आठवले द्वारा समय-समय पर किया महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शन !

Article also available in :

परात्पर गुरु डॉ. आठवले

परात्पर गुरु डॉ. आठवले ने आपातकाल में जीवनावश्यक वस्तएं एवं औषधियों के बिना दयनीय अवस्था न हो, इसलिए स्थूल से पूर्वतैयारी करने के विषय में जागृति की । इसके साथ ही आपातकाल का सामना करने के लिए साधकों की आध्यात्मिक स्तर पर तैयारी भी करवा ले रहे हैं । अब कोरोना महामारी के काल में ही बाह्य परिस्थिति इतनी प्रतिकूल हो गई है, तो भावी भीषण आपातकाल में क्या स्थिति होगी ? उस समय साधना द्वारा प्राप्त आत्मबल ही साधकों की रक्षा करेगा, यही परात्पर गुरु डॉक्टर बार-बार बता रहे हैं !

 

परात्पर गुरु डॉक्टरजी द्वारा किए उद्गार सत्य होने की प्रचीति !

सद्गुरु (डॉ.) चारुदत्त पिंगळे

‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी ने हम साधकों को आगे आनेवाले तीव्र आपातकाल के विषय में समय-समय पर मार्गदर्शन किया है । उसके सारस्वरूप सूत्र यहां दिए हैं ।

अ. आपातकाल की तीव्रता इतनी भयंकर होगी कि साधकों को बाहर जाकर प्रचार-प्रसार करना भी संभव नहीं होगा । उन्हें घर में ही बैठना होगा । कोरोना के काल में हमने यह अनुभव किया ही है ।’

आ. पीने के पानी एवं अन्न के लिए दंगे होंगे ।

(कोरोना के काल में रुग्णालय में खाटें, ऑक्सिजन एवं रेमडेसिविर इंजेक्शन की भारी मात्रा में कमतरता हो गई थी । इतना ही नहीं, स्मशानभूमि में भी अंत्यसंस्कार के लिए कतारें लगी थीं । यातायातबंदी एवं निर्बंध, के कारण रोजगार चले गए, आस्थापन बंद हो गए । आगे आनेवाले तीसरे महायुद्ध में और अधिक भीषण परिस्थिति निर्माण होगी । यही परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने अनेक वर्षाें पूर्व बताया था ! – संपादक)

इ. मार्गाें पर शवों के ढेर होंगे । उससे रास्ता बनाते हुए चलना भी कठिन होगा । अपने सगे-संबंधियों एवं मित्रों के शवों को पडे देखकर भी बिना कुछ किए हमें अपने ही प्राण बचाने के लिए भागना होगा ।

(कोरोना महामारी के काल में असे अनेक प्रसंग हुए जब कोरोनाबाधित अभिभावकों के शव लेने की संतान की भी तैयारी नहीं थी ! ‘कोरोनाबाधितों पर अंत्यसंस्कार करने से कोरोना का संसर्ग होगा’, ऐसा भय प्रत्येक के मन में था ! इससे यही स्पष्ट होता है कि परात्पर गुरु डॉक्टरजी का कथन कितने सत्य सिद्ध हुए हैं ! – संपादक)

– (सद्गुरु) डॉ. चारुदत्त पिंगळे, हिन्दू जनजागृति समिति, देहली.

 

आपातकाल में तर जाने के लिए परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने किया मार्गदर्शन

संस्था के आरंभ के काल में अध्यात्म के अभ्यासवर्ग लेते हुए परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी

 

श्रद्धा का महत्त्व

१. आपातकाल में साधकों की साधना की खरी परीक्षा होगी । उस काल में श्रद्धावान ही टिक पाएंगे ।

२. ‘ईश्वर एवं धर्म के प्रति श्रद्धा न होना एवं साधना न करना’, यही खरा आपातकाल है । आगे प्रत्यक्ष आपातकाल आने पर ऐसे अश्रद्ध लोगों को कौन बचाएगा ?

 

साधना करने का महत्त्व

पूर्व में परात्पर गुरु डॉक्टर स्वयं साधकों के स्वभावदोषों के निर्मूलन के लिए सत्संग लेते थे । उन सत्संगों से साधकों की साधना की नींव सुदृढ हो गई ।

१. आपातकाल में ‘मनोबल एवं आत्मबल’ की ही आवश्यकता होगी । इसलिए साधना एवं धर्म का प्रसार करें । धर्माचरण एवं साधना के कारण मनोबल एवं आत्मबल बढेगा ।

२. आपातकाल में प्रशासन एवं शासन व्यवस्था बिखर जाएगी । तब समाज आशा से साधकों की ओर देखेगा एवं साधकों को समाज का नेतृत्व कर दिशा देनी होगी ।

 

आपातकाल में प्रत्येक दाने का विचार करनेवालों का ही भगवान ध्यान रखेगा !

‘वर्ष २००१ – २००२ इस काल में अनाज को धूप दिखाने के पश्चात शाम को उसे एकत्र करते समय अन्यत्र फैले दानों को साधिकाएं चुन रही थीं । तब परात्पर गुरु डॉक्टरजी उनसे बोले, ‘‘तुम एकेक दाना उठा रही हो’, यह तुम्हारी साधना का अच्छा भाग है । आगे आपातकाल में सभी को प्रत्येक दाने का मूल्य समझ में आएगा । ईश्वर भी आपातकाल में प्रत्येक दाने का विचार करनेवालों को ही ध्यान रखेगा ।’’

‘किस वृक्ष के पत्ते अन्न के रूप में खा सकते हैं ?’ अथवा ‘ऐसा कोई वृक्ष है जिससे उसके पत्ते खाने से भूख न लगे’ इसकी जानकारी ढूंढें’, ऐसा भी परात्पर गुरु डॉक्टरजी ने कहा ।

 

आवश्यकता न होते हुए भी अधिक दूध मंगवाने पर
‘आपातकाल में भगवान के नियोजनानुसार साधकों के हिस्से का दूध कम होगा’, ऐसा कहना

‘एक बार किसी कार्यक्रम के अंतिम दिन साधकों की उपस्थिति अल्प होते हुए भी दूध अधिक मंगवाया गया । उस समय परात्पर गुरुदेवजी ने कहा, ‘‘साधक संख्या अल्प होनेवाली थी, तो दूध भी अल्प ही मंगवाना चाहिए था । ‘आवश्यकता न होते हुए भी दूध अधिक मंगवाने से आपातकाल में ईश्वर द्वारा किए नियोजन के अनुसार साधकों को मिलनेवाला उतना दूध कम होनेवाला है’, यह साधकों के ध्यान में नहीं आता !’’

 

साधकों के लिए निवासव्यवस्था का नियोजन

१. महानगरों से ४० से ५० कि.मी. दूरी पर भूमि देखें; कारण इस महायुद्ध में महानगर खाक हो जाएंगे ।

२. वर्तमान में जो अकेले और अलग-थलग रहते हैं, संगठित नहीं होते, उन्हें आपातकाल में कष्ट भोगना होगा । वे अभी से संगठित हो जाएं, तो आगे अपनी रक्षा कर सकेंगे ।

– (सद्गुरु) डॉ. चारुदत्त पिंगळे, राष्ट्रीय मार्गदर्शक, हिन्दू जनजागृति समिति, देहली.

 

आपातकाल में सभी साधकों को संभालने की तैयारी करनेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवले !

अधिवक्ता योगेश जलतारे

सनातन संस्था का प्रत्येक साधक अत्यंत मितव्यययी (किफायती) है । मैंने इस विषय में एक बार परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी से पूछा, ‘‘हम सभी क्षेत्रों में अत्यंत मितव्ययी हैं । हमें तो पैैसों की आवश्यकता नहीं होती, फिर इतनी तैयारी किसलिए ?’’ इस पर वे बोले, ‘‘आज साधक अपने खाने-पीने की व्यवस्था कर सकते हैं । तीसरा महायुद्ध आरंभ होने पर किसी के पास कुछ नहीं होगा । यदि पैसा है, तो अन्नधान्य नहीं होगा अथवा अन्नधान्य है, तो पैसा नहीं । उस समय हमें सभी साधकों को संभालना है । उसके लिए तैयारी करनी है ।’’

तब मुझे लगा, ‘आश्रम में ही क्यों; प्रसार के साधक भी अपने भविष्य के विषय में इतने सतर्क रहकर विचार नहीं करते होंगे’; परंतु परात्पर गुरु डॉक्टर काल के परे जाकर साधकों के हित के लिए प्रयत्नशील हैं ।’

– अधिवक्ता योगेश जलतारे, रामनाथी आश्रम, गोवा.

Leave a Comment